निजी क्षेत्र की कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी में गिरावट

निजी क्षेत्र की कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी  में गिरावट

क्या भारतीय प्रवर्तकों का नजरिया विदेशी कंपनियों या संस्थागत निवेशकों के मुकाबले अपनी कंपनियों को लेकर थोड़ी कम तेजी का है। भारत के निजी क्षेत्र की कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी लगातार घट रही है और सितंबर 2015 के आखिर में यह 43.4 फीसदी पर आ गई। एक साल पहले की समान अवधि में यह 44.4 फीसदी और मार्च 2008 की तिमाही में 48.7 फीसदी के सर्वोच्च स्तर पर थी।

ऐसा ही रुख सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) में देखने को मिल रहा है, जहां प्रवर्तकों की की हिस्सेदारी घट रही है क्योंकि सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम चलाया हुआ है। पीएसयू में प्रवर्तकों की प्रभावी हिस्सेदारी पिछले दशक में 750 आधार अंक या करीब 10 फीसदी घटी है और यह पिछली तिमाही के आखिर में 67.1 फीसदी रह गई, जो साल 2005 में औसतन करीब 75 फीसदी रही थी।

इसकी तुलना में विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार में खरीदारी के जरिए अपनी भारतीय इकाइयों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रही हैं। सूचीबद्ध विदेशी कंपनियों मसलन हिंदुस्तान यूनिलीवर, बॉश, एसीसी, अंबुजा सीमेंट और नेस्ले इंडिया आदि में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी सितंबर 2015 की तिमाही के आखिर में 64.4 फीसदी थी, जो मार्च 2005 में 51.6 फीसदी के निचले स्तर पर रही थी।

सितंबर 2015 के आखिर में देश की निजी कंपनियों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 28.5 लाख करोड़ रुपये की थी, जो सितंबर 2014 के 26.7 लाख करोड़ रुपये और मार्च 2005 के 3.4 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले ज्यादा है। इसकी तुलना में सितंबर 2015 में वैश्विक कंपनियों की अपनी भारतीय इकाइयों में हिस्सेदारी 6.8 लाख करोड़ रुपये थी। वहीं सूचीबद्ध पीएसयू में सरकार की हिस्सेदारी 11.1 लाख करोड़ रुपये थी।

विश्लेषकों ने कहा कि देश की कई कंपनियां व कारोबारी समूह अपनी विभिन्न परियोजनाओं के लिए रकम की किल्लत महसूस कर रही थी, इसी वजह से प्रवर्तकों की हिस्सेदारी घटी है। एडलवाइस कैपिटल के प्रमुख (इक्विटी मार्केट्स) नितिन जैन ने कहा, ज्यादातर भारतीय कंपनियों व कारोबारी समूह ने पिछले दशक में आक्रामकता के साथ विस्तार किया और ताजा पूंजी जुटाने के लिए इन्होंने इक्विटी बेचने व कम लागत वाले विकल्पों को प्राथमिकता दी।

यह विशेष रूप से पूंजी की किल्लत झेल रहे कारोबारों मसलन बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं व बुनियादी ढांचे के लिए सही है। यह विश्लेषण बीएसई 500 में शामिल 476 कंपनियों के तिमाही के आखिर के शेयरधारिता आंकड़े और बाजार पूंजीकरण पर आधारित है। प्रभावी मालिकाना हक हर वर्ग के निवेशक या मालिक की शेयरधारिता की बाजार कीमत पर आधारित है।

जहां हिस्सेदारी घटी है, उनमें से कई मामलों में कंपनियां प्रवर्तक की हिस्सेदारी बेचकर बाजार से पूंजी जुटाने के लिए बाध्य हुई। उदाहरण के लिए पूंजी का संकट झेल रही जीएमआर इन्फ्रा, जेपी एसोसिएट्स व रिलायंस कम्युनिकेशंस जैसी कंपनियों ने साल 2014 में काफी ज्यादा इक्विटी जारी की थी। यह रकम ताजा शेयर के जरिए क्यूआईबी से जुटाए गए थे, जिससे कंपनी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी घटी। भारतीय प्रवर्तकों ने अपनी हिस्सेदारी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों व देेसी संस्थानों मसलन बीमा कंपनियों व म्युचुअल फंडों को बेची।

Related post

जनवरी 2024 में 1,41,817 कॉल : कन्वर्जेंस कार्यक्रम के तहत 1000 से अधिक कंपनियों के साथ साझेदारी

जनवरी 2024 में 1,41,817 कॉल : कन्वर्जेंस कार्यक्रम के तहत 1000 से अधिक कंपनियों के साथ…

 PIB Delhi—एक महत्वपूर्ण सुधार में, राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) ने शिकायतों के समाधान में तेजी लाने…
‘‘सहकारिता सबकी समृद्धि का निर्माण’’ : संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 : प्रधानमंत्री

‘‘सहकारिता सबकी समृद्धि का निर्माण’’ : संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 : प्रधानमंत्री

 PIB Delhi:——— प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 25 नवंबर को नई दिल्ली के भारत मंडपम में दोपहर…

Leave a Reply