- November 8, 2021
नकद का स्थान नहीं ले पाएगा डिजिटल भुगतान
बिजनेस स्टैंडर्ड ———– डिजिटल भुगतान में तेज बढ़ोतरी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था कम से कम अगले कुछ साल नकदी पर निर्भर बने रहने के आसार हैं। इसी पर ऑटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम) विनिर्माता और नकदी लाने-ले जाने वाली कंपनियां दांव लगा रही हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले साल ज्यादातर समय चलन में मौजूद मुद्रा में वृद्धि 20 फीसदी से ज्यादा रही, लेकिन यह साल 29 अक्टूबर तक गिरकर 8.5 फीसदी रह गई। पिछले साल मुद्रा में भारी बढ़ोतरी की वजह महामारी से संबंधित अनिश्चितताएं थीं, जिसमें लोगों ने आकस्मिक जरूरतों के लिए नकदी रखने को प्राथमिकता दी। इस समय 28.5 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में है। मगर बढ़ोतरी की रफ्तार सुस्त पड़ी है क्योंकि अतिरिक्त नकदी की जरूरत कम है।
पांच साल पहले नोटबंदी के दौरान महज 18 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में थी। हालांकि इन पांच वर्षों के दौरान कम से कम महानगरों और शहरी इलाकों में डिजिटल भुगतान नकदी की जरूरत को पीछे छोड़कर मुख्यधारा में आ गए हैं। केवल अक्टूबर में 4 अरब से अधिक यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस या यूपीआई लेनदेन हुए। यह इस भुगतान प्लेटफॉर्म की शुरुआत के बाद अब तक का सर्वोच्च स्तर है, जिसे त्योहारी सीजन से मदद मिली है। मूल्य के लिहाज से इस भुगतान प्लेटफॉर्म पर अक्टूबर में रिकॉर्ड 100 अरब डॉलर या 7.71 लाख करोड़ रुपये के लेनदेन हुए।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के सीईओ दिलीप अस्बे का अनुमान है कि इस साल यूपीआई लेनदेन 40 से 42 अरब पर पहुंच सकते हैं, जो पिछले साल 22 अरब थे। इस कैलेंडर वर्ष में अब तक यूपीआई 57.71 लाख करोड़ रुपये के 29.94 अरब लेनदेन को प्रोसेस कर चुका है। हर साल 1 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचने का लक्ष्य है। आईएमपीएस और फास्टैग जैस खुदरा डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म पर भी लेनदेन की कीमत और मात्रा रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई।
भले ही शहरी इलाकों में डिजिटल भुगतान आम हो गया है मगर लेकिन मझोले एवं छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में अब भी लेनदेन का जरिया नकदी ही है। कस्बाई और ग्रामीण अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती है। ई-कॉमर्स कंपनियां कैश लॉजिस्टिक कंपनियों पर निर्भर हैं। पेनियरबाई के एमडी और सीईओ आनंद बजाज ने कहा, ‘अर्थव्यवस्था और उपभोग में बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन यूपीआई के अंतिम उपयोगकर्ताओं की संख्या चरम पर पहुंच चुकी है। सात लाख करोड़ रुपये के लेनदेन के नतीजतन अब उपयोगकर्ताओं की संख्या में धीरे-धीरे इजाफा हो रहा है। इसके अलावा हमने महामारी के दौरान देखा है कि सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को सीधे रकम भेजी। अर्थव्यवस्था में इस अतिरिक्त नकदी से नागरिकों को उपभोग संभालने में मदद मिली। 90 करोड़ बैंक खातों में केवल 40 करोड़ सक्रिय डेबिट कार्ड इस्तेमाल किए जाते हैं। जीरो एमडीआर का शेष खाता धारकों को कार्ड जारी करने पर बड़ा असर पड़ सकता है। यूपीआई के मामले में भी जीरो एमडीआर है। इसी वजह से चलन में नकदी ऊंचे स्तरों पर बनी हुई है।’
भारत में दुनिया में तीसरे सबसे ज्यादा एटीएम हैं, लेकिन देश आबादी सघनता के हिसाब से सबसे कम एटीएम वाले देशों में शामिल है। नकदी वेलोसिटी यानी सीआईसी के प्रतिशत के रूप में एटीएम निकासी डेढ़ गुना है, जो दुनिया में सबसे कम में शुमार है। यह कनाडा और चीन में 8 है।
नकदी लॉजिस्टिक्स कंपनी सीएमएस इन्फोसिस्टम्स और एटीएम सेवा प्रदाता एजीएस ट्रांजैक्ट आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की योजना बना रही हैं। इन्हें भविष्य में एटीएम की संख्या में भारी बढ़ोतरी के आसार नजर आ रह हैं। सीएमएस के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में भारत में एटीएम की संख्या 2,55,000 थी, जो चीन में करीब 6,25,000 और अमेरिका मेंं करीब 4,30,000 थी। हालांकि प्रति लाख आबादी पर एटीएम का वैश्विक औसत 47 और अमेरिका में 123 है। इसके मुकाबले भारत में औसत महज 22 है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रति लाख आबादी पर केवल 7 से 14 एटीएम हैं।