- January 25, 2016
देश प्रेम का दिखावा छोड़ें – डॉ. दीपक आचार्य
गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस, दोनों ही राष्ट्रीय पर्वों के दो-चार दिन पहले जो राष्ट्रभक्ति का ज्वार उमड़ा हुआ दिखाई देता है वह तारीफ के काबिल है लेकिन हमारा यह देश प्रेम दो-चार दिन का उबाल लाकर फिर ठण्डा हो जाता है, यह चिन्ता का विषय है।
राष्ट्रभक्ति का यह अर्थ नहीं है कि हम देशप्रेम के नारों से आसमान गूंजा दें, तिरंगा फहरा दें, तिरंगी टोपियां पहन लें और भारतमाता की जयगान से आसमान ऊँचा उठा लें, देश प्रेम, स्वतंत्रता सेनानियों, आजादी और मुक्ति पर खूब सारे लच्छेदार भाषण झाड़ते रहें और अपने आपको महान देशभक्त के रूप में दिखाते हुए इन दो-चार दिनों में पूरे उत्साह में भरे रहें और साल भर ऎसे काम करें जो देश प्रेम से कोसों दूर हों।
जो लोग देश से प्रेम करते हैं वे उन सारे कामों से दूर रहते हैं जो देश की बुनियाद को कमजोर करते हैं चाहे वह जाति-पाति,ऊँच-नीच, गरीब-अमीर, भाषा, क्षेत्र और दूसरे सारे मामलों में पक्षपात की बात हो या फिर किसी भी देशवासी के स्वाभिमान को चोट अथवा नुकसान पहुंचाने की बात हो।
देशभक्ति का मतलब केवल दिखावा नहीं है बल्कि हम जहाँ हैं, वहाँ कोई काम ऎसा नहीं करें जो देश के लिए घातक हो। देशभक्त वही कहा जा सकता है जो कि मानवीय मूल्यों और मातृभूमि की सेवा के प्रति समर्पित हो। ऎसा नहीं है तो हम देशभक्त नहीं कहे जा सकते।
देश की सीमाओं पर लड़ने की हमें आवश्यकता नहीं है, वहां हमारे जांबाज देशभक्त सैनिक अपना काम अच्छे से कर रहे हैं और हमसे श्रेष्ठ सेवाएं दे रहे हैं।
देशभक्ति के लिए किसी भीड़ को जुटाकर झण्डे लहराने, टोपियां पहन कर इतराने, भाषण झाड़ने और देशभक्ति का प्रचार करने की आवश्यकता नहीं है, इसके लिए बहुत सारे लोग हैं जो वास्तविक काम भी कर रहे हैं और अभिनय भी।
देशभक्ति का सीधा सा मतलब यही है कि जहाँ हम रहते हैं, काम करते हैं वहाँ अपना काम ईमानदारी से पूरा करें, देश को सामने रखें और इस प्रकार गुणवत्ता से काम करें कि देश के लिए काम आए।
हम अपनी ड्यूटी के प्रति पाबंद रहें, पूरे समय काम करें और हर दिन इतना काम करें कि हमारे जिम्मे का कोई सा काम लम्बित न रहे। हमारे संपर्क में आने वाला प्रत्येक देशवासी हमारा अपना है, उसका काम करना, उसे सुकून देना हमारा फर्ज है।
देशवासियो के लिए फर्ज अदायगी के वास्ते न किसी प्रतिज्ञा की आवश्यकता है, न हाथ आगे या ऊँचे कर शपथ लेने की। यह हर देशवासी का नैसर्गिक स्वभाव होना चाहिए कि हम अपने देश के प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी बनें, उसके काम करें और उसे अहसास दिलाएं कि हर देशवासी आपस में भाई-भाई हैं।
एक तरफ हम देशभक्ति और देश के लिए काम करने की बातें करते हैं और दूसरी तरफ हम भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कमीशनबाजी के फेर में लोगों को तंग करते हैं, पैसा न मिलने तक काम अटकाते-लटकाते या बिगाड़ देते हैं, अपना-पराया करते हैं,जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद फैलाते हैं, पैसों, जेवरों और हराम के भोग-विलास के संसाधनों और लचीली देहों से शारीरिक सुख पाने के लालच में आतंकवादियों को पनाह देते हैं, ड्रग माफियाओं के एजेंट की तरह काम करते हैं, देश के विभाजन का ताना-बाना बुनते हैं,संस्कृति और सभ्यता का चीरहरण करते हैं, अपने ही आस-पास रहने वाले और अपने पेशे से संबंधित लोगों से ही कुछ पाने की उम्मीद रखते हैं, बेवजह तंग करते हैं, शोषण करते हुए तनाव देते हैं और अपने आपको अधीश्वर मानकर आसुरी भावों का नंगा खेल रचते हैं, यह सब कुछ हम करते हैं तब हम देशभक्त नहीं बल्कि देशद्रोही हैं जो अपनी देश की जड़ों को ही कमजोर कर रहे हैं।
लानत है ऎसे कर्म करने वाले उन लोगों को जो मातृभूमि को बेचने के षड़यंत्रों मेें लगे हैं। जो भ्रष्ट, कमीशनबाज और रिश्वतखोर है वह देश को भी बेचने में पीछे नहीं रहता। ये ही लोग हैं जो देश के शत्रु हैं।
देश नहीं रहेगा तब ये लोग और हम भी कहाँ रहेंगे, इसकी फिक्र इन बिकाऊ लोगों को नहीं है। वर्तमान समय में देश को आतंकवादियों और हमारे देश के भीतर बैठे भ्रष्ट, बेईमान और कामचोरों को ठिकाने लगाना हर सच्चे देश भक्त का सबसे बड़ा फर्ज है।
बहुत झण्डे फहरा लिए, भाषण दे दिए, अब वक्त आ गया है कुछ करने का। देशभक्ति का राग अलापना और दिखावा करना छोड़ें, पाखण्ड और प्रपंचों को तिलांजलि दें और देश के भीतर हमारी अस्मिता को कमजोर करने वाले देशद्रोहियों और भ्रष्ट तत्वों को बेनकाब करें। यही असली देशभक्ति है जो देश को सुरक्षित, संरक्षित और विकसित करने के लिए जरूरी है।