- November 27, 2020
देश की राजनीति में मील का पत्थर थे अहमद पटेल ! : सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार)
राजनीति के क्षेत्र में ऐसा विरलै ही देखा गया है कि कोई भी राजनेता मलाई वाली कुर्सी से दूर रहना चाहता हो। जब कि सियासत की दुनिया में महान रणनीतिकार के रूप में विख्यात हो। जबकि ऐसा सदैव ही देखा गया है कि कोई भी राजनेता जब संगठन में कार्य करता हुए आगे बढ़ता है तो वह सत्ता की कुर्ती पर अहम मंत्रालय प्राप्त करने की अपेक्षा रखता है। जिसका उसको संगठन में कार्य करने का ईनाम के रूप में देखा जाता है। जबकि अहमद पटेल एक ऐसे राजनेता थे जिन्होंने मलाईदार विभाग से दूरी बनाना और संगठन में ही कार्य करने को वरीयता दी। सबसे बड़ी बात यह है कि बेहद शालीन एवं शांत स्वाभाव के मृदुभाषी अहमद पटेल की सदैव मुस्कान उनको देश के तमाम राजनेताओं से अलग करती थी।
अहमद पटेल की छवि एक ऐसे राजनेता की थी जोकि बेहद शांत स्वाभाव के थे। पूरे जीवनकाल उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी उनकी इस अदा के कायल थे। क्योंकि अहमद पटेल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को कभी भी अपना विरोधी नहीं मानते थे। अहमद पटेल एक ऐसे राजनेता थे जिनकी छवि तेज दिमाम के राजनेता के रूप में थी। अहमद पटेल की गिनती राजनीति की दुनिया में बड़े रणनीतिकार के रूप में होती थी।
21 अगस्त 1949 को गुजरात के भरूच के अंकलेश्वर तहसील के पिरामण गांव में जन्मे अहमद पटेल को सियासत का चाणक्य माना जाता था। अहमद पटेल तीन बार लोकसभा सांसद और चार बार राज्यसभा सांसद रहे। उन्होंने अपना पहला चुनाव वर्ष 1977 में भरूच लोकसभा सीट से लड़ा था। इस चुनावी मुकाबले में अहमद पटेल 62 हजार 879 मतों से जीते थे। अहमद पटेल 1977 में चुनाव जीतकर सबसे युवा सांसद बने थे। उस दौरान उनकी उम्र महज 26 साल थी। इस चुनाव के बाद उनकी जीत का अंतर लगातार बढ़ता चला गया।
1980 में अहमद पटेल ने यहीं से 82 हजार 844 वोटों से मुकाबला अपने नाम किया। 1984 में अहमद पटेल ने 1 लाख 23 हजार 69 वोटों से जीत दर्ज की थी। वर्ष 2001 से सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार भी रहे। अहमद पटेल वर्ष 1986 में गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इसके अलावा पटेल 1977 से वर्ष 1982 तक यूथ कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रहे। सितंबर 1983 से दिसंबर 1984 तक अहमद पटेल ने ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के जॉइंट सेक्रटरी की जिम्मेदारी भी संभाली।
अहमद पटेल ने कांग्रेस के संगठन में अपनी बहुत गहरी पैठ बनाई। इंदिरा गांधी की सन् 1980 में जबरदस्त वापसी के बाद कांग्रेस अहमद पटेल को कैबिनेट में शामिल करना चाहती थी लेकिन अहमद पटेल ने संगठन से अपना मोह जाहिर करते हुए इंदिरा गांधी को अपने इरादे जाहिर कर दिए की मैं मंत्री पद न लेकर संगठन में ही कार्य करना चाहता हूँ। यही तस्वीर एक बार फिर से राजीव गांधी के समय में भी देखने को मिली जब 1984 का चुनाव हुआ तो अहमद पटेल को फिर से मंत्री पद ऑफर किया गया लेकिन उन्होंने इस बार भी संगठन को ही प्रथिमता देते हुए मंत्री परिषद को ठुकरा दिया। जिससे कि अहमद पटेल का राजनीति की दुनिया में सम्मान और भी ज्यादा बढ़ गया। इसके बाद फिर एक बार समय आया जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरसिम्हा राव विराजमान हुए तब नरसिम्हाराव ने भी अहमद पटेल को मंत्री पद की पेशकश की तो फिर से अहमद पटेल ने मंत्री पद को ठुकराते हुए संगठन की ओर अपने कदम बढ़ा दिए।
स्वाभिमान के क्षेत्र में भी अहमद पटेल के आसपास कोई भी राजनेता दूर-दूर तक नहीं टिकता। जब अहमद पटेल गुजरात से लोकसभा से चुनाव हार गए तो उन्हें सरकारी घर खाली करने के लिए लगातार नोटिस मिलने लगे। अगर अहमद पटेल चाहते तो किसी भी राजनेता से अंदर खाने मदद ले सकते थे क्योंकि सभी राजनेताओं से उनके अच्छे संबन्ध थे। लेकिन अहमद पटेल ने किसी से भी मदद नहीं ली और अपने कदम को हमेशा की तरह आगे बढ़ा दिया इस कदम से उनकी छवि में और निखार आया जिससे उनकी छवि एक महान स्वाभिमानी व्यक्ति की बन गई जोकि राजनीति के इतिहास में पन्नों पर दर्ज हो गई।
यूपीए के दोनों कार्यकाल में उन्होंने पार्टी और सरकार के बीच तालमेल का काम बेहतर तरीके से किया। देर रात तक काम करना और किसी भी कांग्रेसी कार्यकर्ता को किसी भी वक्त फोन कर कोई भी काम सौंप देना पटेल की आदतों में शामिल था। वह बहुत ही मजबूत तरीके से काम करते थे। अहमद पटेल एक ऐसे राजनेता थे जोकि कभी भी आरोप-प्रत्यारोप पर विश्वास नहीं करते थे। वह सदैव ही रणनीति के आधार पर ही कार्य करने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को कहते थे। उनका मानना था कि राजनीति में जनता के साथ जमीन से जुड़ा रहना ही देश की राजनीति की कुंजी है।
पटेल सदैव ही आम-जनमानस के साथ जुड़ाव के प्रति तत्पर रहते थे। उनकी रणनीति का अहम हिस्सा यह होता था कि जन-जन तक सीधे संवाद किया जाए तथा धरातल पर उतर कर राजनीति की जाए न कि कमरों के अंदर बैठकर। अहमद पटेल देश की जनता की नब्ज़ के साथ राजनेताओं को जुड़ने के लिए लगातार प्रेरित करते रहते थे। मृत्यु के बाद अहमद पटेल की इच्छा थी कि उनको अपनी माता एवं पिता के पास ही दफनाया जाए। इसलिए उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें भरूच जिले के पिरामण गांव के उसी कब्रिस्तान में दफनाया गया जहाँ उनके माता-पिता की कब्रें हैं।
देश के तमाम बड़े राजनेता उनकी अंतिम यात्रा में पहुँचे। और अपने-अपने अनुसार श्रृद्धांजलि प्रकट की। उनके जीवन में एक बाद अहम यह थी कि पार्टी से हटकर दूसरी अन्य पार्टियों के भी राजनेता उनके शिष्टाचार के कायल थे।