दूरसंचार और विमानन क्षेत्र अपने टैरिफ में वाजिब बढ़ोतरी करें—जेटली की दलील गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा

दूरसंचार और विमानन क्षेत्र  अपने टैरिफ में वाजिब बढ़ोतरी करें—जेटली की दलील गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा

*** जियो ने जमाया धौंस — उसकी सेवाओं का मूल्य प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से 20 फीसदी कम होगा क्योंकि प्रवर्तक कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास 760 अरब रुपये से अधिक का नकदी भंडार

*** दूरसंचार उद्योग पर 5000 अरब रुपये का कर्ज—एबिटा केवल 1,500 अरब रुपये

*** विमानन उद्योग पर कुल 630 अरब रुपये का कर्ज
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बिजनेस स्टैंडर्ड———- सरकार ने वित्तीय संकट से जूझ रही दूरसंचार और विमानन क्षेत्र की कंपनियों को कीमतों को लेकर जंग में पडऩे के बजाय अपने टैरिफ में वाजिब बढ़ोतरी के लिए कहा है। अलबत्ता ये कंपनियां किसी तरह झुकने को तैयार नहीं हैं। इनमें से कई कंपनियों ने इस स्थिति के लिए सरकार के समर्थन की कमी को जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही उनका आरोप है कि प्रतिद्वंद्वी कंपनियों ने प्रतिस्पर्द्धा को खत्म करने की रणनीति अपनाई है।

दूरसंचार उद्योग भारी कर्ज की समस्या से जूझ रहा है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक उद्योग पर 5000 अरब रुपये का कर्ज है जबकि उसका एबिटा केवल 1,500 अरब रुपये है। इसमें से 60 फीसदी से अधिक उसे स्थगित स्पेक्ट्रम भुगतान के एवज में चुकाना पड़ रहा है।

विमानन उद्योग पर कुल 630 अरब रुपये का कर्ज है। इसके परिणामस्वरूप जेट एयरवेज खुद को उबारने के लिए निवेशक की तलाश में है। कंपनी इसके लिए बहुलांश हिस्सेदारी भी बेचने को तैयार है। दूसरी ओर एयर इंडिया सरकार के रहमोकरम पर चल रही है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम दूरसंचार और विमानन उद्योगों को लेकर चिंतित हैं जो कीमत युद्घ के कारण खुद को तबाह करने की राह पर हैं। उन्हें अपने टैरिफ में वाजिब बढ़ोतरी करने की जरूरत है हमारा मानना है कि हवाई किराये में दस फीसदी की बढ़ोतरी से कंपनियों की वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होगा। लेकिन वे ऐसा करने को तैयार नहीं हैं।’

पिछले महीने वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग के एक कार्यक्रम में चेतावनी दी थी कि जरूरत से ज्यादा प्रतिस्पर्द्धा के प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। जेटली की दलील थी कि गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा से कंपनियां अपने उत्पादों के दाम इस तरह रखेंगी कि उद्योगों में गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि हर कोई अगुआ कंपनी की राह पर चलना शुरू कर देगा।

एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया को दूरसंचार क्षेत्र में तहलका मचाने वाली रिलायंस जियो के साथ कीमत युद्घ लडऩा पड़ रहा है। एक पुरानी दूरसंचार कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘जियो ने पहले ही करीब एक तिहाई मोबाइल राजस्व पर कब्जा कर लिया है। उद्योग में अब तीन ही कंपनियां बची हैं, इसलिए हर किसी को 33 फीसदी हिस्सा मिल सकता है।

सरकार को अब उसे टैरिफ को व्यावहारिक बनाने के लिए कहना चाहिए। लेकिन जियो आधे बाजार पर कब्जा करना चाहती है और हमसे उम्मीद करती है कि हम नंबर एक की कुर्सी छोड़ दें। हम झुकने वाले नहीं हैं और लड़ते रहेंगे।’

जियो ने खुलमखुल्ला घोषणा की है कि उसकी सेवाओं का मूल्य प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से 20 फीसदी कम होगा। कंपनी के जानकारों का कहना है कि कीमतें बढ़ाने की जिम्मेदारी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों पर है। जियो धन के लिए अपनी प्रवर्तक कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज का सहारा ले सकती है जिसके पास 760 अरब रुपये से अधिक का नकदी भंडार है। दूसरी ओर भारती अपने टावर कारोबार को बेचकर 5.4 अरब डॉलर जुटा सकती है। साथ ही वह अपने अफ्रीकी कारोबार के आईपीओ के जरिये अपने कर्ज को कम कर सकती है।

सीओएआई के महानिदेशक राजन मैथ्यू का कहना है कि स्पेक्ट्रम नीलामी की कीमतें बहुत ज्यादा हैं और उन्होंने राहत के लिए सरकार को लिखा है। उद्योग ने सरकार से स्थगित स्पेक्ट्रम के भुगतान को दो साल टालने और भुगतान पर ब्याज की दर एसबीआई के एमसीएलआर दर से जोडऩे का अनुरोध किया है।

मैथ्यू ने कहा, ‘दूरसंचार विभाग और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) में हर कोई हमारी मांग से सहमत है लेकिन कर्ज पुनर्गठन होना अभी बाकी है।’ आश्चर्यजनक रूप से सीओएआई के सदस्य जियो ने इस मांग का विरोध किया है। विमानन क्षेत्र में किफायती कंपनियों और फुल सर्विस सेवा देने वाली कंपनियों के बीच जबरदस्त कीमत युद्घ चल रहा है।

किफायती सेवा देने वाली एक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अगर फुल सर्विस कंपनी का किराया हमारे बराबर या हमसे कम है तो हमारे पास कीमत बढ़ाने का विकल्प नहीं है।’ उन्होंने कहा कि सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की है।

एटीएफ ईंधन पर कर में कटौती नहीं की गई जिसमें परिचालन लागत का करीब 50 फीसदी हिस्सा जाता है। अलबत्ता पूर्ण सेवा देने वाली कुछ कंपनियों का कहना है कि इंडिगो जैसी बड़ी कंपनियां अपनी क्षमता बढ़ा रही हैं और कीमत कम रख रही हैं। इससे उनके राजस्व पर असर पड़ रहा है और उनके लिए अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो रहा है। उनके पास किराया कम करने के अलावा कोई चारा नहीं है क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो वह अपना बाजार खो देंगे।

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