दारू में बहुत गुण है जी — शैलेश कुमार

दारू में बहुत गुण है जी — शैलेश कुमार

सोने की रावण लंका की,
दारू, नारी ले गया जी।

मदिरा सेवन कंस मथुरा की 
भगिनी हत्या ले गयो जी।

दारू में बहुत गुण है जी

मस्त मदिरा जाम तले,
घरवाली, बेटी बेच डालो जी।

घर को कूड़ेदान बनाओ,
चौराहे पर छाती फैलाओ जी,

क्या करोगे खेतीबाड़ी 
नंगे ऊपर जाना है जी, 

जब ऊपर वाले पूछेगा तो, 
नीचे का नाक कटाओगे जी।

दारू में बहुत गुण है जी

जरासंध,हिरणाकश्यप को देखो
छलकाए जाम, हो गया काम तमाम जी।

दारू में बहुत गुण है जी

ईंट,पाथर,खेत,गाछी सब पचा लेता है जी,
दो कौड़ी  का हो जो तुम,पचाने में क्या लगेगा जी।

दारू में बहुत गुण है जी

सरकार,बेटी,बेटा का भार उठाई है,
तुमको इसमें क्या जाता जी,
शेष रह गई एक घरवाली उसे बंधक लगा दो जी।

दारू में बहुत गुण है जी।

दारू पीते,मंत्री,संत्री होटल में जाम छलकाते हैं जी
छूटा घरवाली, बेटी घूमते,
तुम क्यों लाठी बरसाते जी।

दारू पीते,साहब,बाबू प्लॉट दर प्लाट खरीदते जी
तुम दारू पीकर घर-घड़ारी बेच देते जी,

दारू में बहुत गुण है जी

दारू पीकर गजराज बन जाते
बच्चे वस्त्र विहीन घूमते जी,
तुमको इसमें क्या जाता जी।

दारू में बहुत गुण है जी।

खूब मन भाते तब,कोई मिल जाय पिलाने वाले,
पीते पीते घर बेच दो इसमें तुम्हारा क्या जाता है

दारू में बहुत गुण है जी।

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