• January 19, 2025

ट्रंप का दूसरा कार्यकाल और जलवायु परिवर्तन: क्या अब भी उम्मीद है?

ट्रंप का दूसरा कार्यकाल और जलवायु परिवर्तन: क्या अब भी उम्मीद है?

लखनऊ (निशांत सक्सेना )—- 20 जनवरी, 2025 को ट्रंप फिर से राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल में जलवायु नीति पर जो रुख था, उससे यह साफ है कि उनके आने से अमेरिका में जलवायु परिवर्तन की दिशा में और मुश्किलें आ सकती हैं। उन्होंने पेरिस समझौते से बाहर निकलने का फैसला लिया था, प्रदूषण नियंत्रण के नियमों में ढील दी थी और जीवाश्म ईंधन उद्योग को बढ़ावा दिया था। तो अब सवाल यह है कि क्या उनका दूसरा कार्यकाल जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में और रुकावटें पैदा करेगा?

ट्रंप का जलवायु रिकॉर्ड: एक कदम पीछे

ट्रंप के पहले कार्यकाल में जो कदम उठाए गए, उनसे यह बिल्कुल स्पष्ट था कि उनका ध्यान पर्यावरण को बचाने से ज्यादा आर्थिक विकास पर था। पेरिस समझौते से बाहर निकलने, गाड़ी के प्रदूषण मानकों को कमजोर करने और कड़े प्रदूषण नियमों को हटाने के फैसले से यह साबित होता है कि उनका प्रशासन जलवायु परिवर्तन से जूझने के बजाय इसे नकारने की कोशिश कर रहा था।

लेकिन, सिर्फ वॉशिंगटन में क्या हो रहा है, यही सब कुछ नहीं है। सच तो यह है कि जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में उम्मीद बाकी है, क्योंकि बहुत सारी बातें फेडरल गवर्नमेंट के बाहर भी हो रही हैं। और यही वह सवाल है जो हमें अब पूछना चाहिए—जब तक ट्रंप की सरकार जलवायु पर कोई बड़ा कदम नहीं उठाती, क्या राज्यों, समुदायों और कंपनियों के स्तर पर कुछ किया जा सकता है?

बदलाव के अनहोने कारक

यह सच है कि ट्रंप का प्रशासन जलवायु परिवर्तन के खिलाफ खड़ा था, लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि बदलाव सिर्फ वॉशिंगटन तक सीमित नहीं है। कैलिफोर्निया, न्यूयॉर्क और वाशिंगटन जैसे राज्य लगातार अपने जलवायु लक्ष्यों की ओर बढ़ रहे हैं। इन राज्यों ने खुद को उन नीतियों से बाहर रखा है जो ट्रंप ने लागू की थीं, और इस दिशा में काम करने के लिए नए नियम बनाए हैं। ये उदाहरण दिखाते हैं कि केंद्र सरकार का रुख कितना भी असहायक क्यों न हो, हर स्तर पर जलवायु परिवर्तन के लिए कुछ न कुछ कदम उठाए जा सकते हैं।

इसके अलावा, निजी क्षेत्र भी जलवायु के लिए बड़ा योगदान दे रहा है। कई कंपनियाँ अब पर्यावरण को प्राथमिकता दे रही हैं, क्योंकि बाजार में हर कोई अब ‘ग्रीन’ या पर्यावरण के प्रति जागरूक उत्पादों की मांग कर रहा है। यह सिर्फ सामाजिक जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक समझदार व्यापार निर्णय भी है।

जनसंचार और वोटर्स की भूमिका

इस बार ट्रंप के कार्यकाल में लोगों की राय और उनकी सक्रियता एक अहम भूमिका निभा सकती है। जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ एक विचार नहीं रहा, बल्कि यह वोटरों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। खासकर युवा पीढ़ी, जिनमें मिलेनियल्स और जेन जेड शामिल हैं, उनका इस पर ध्यान और सक्रियता बढ़ी है। वे इस मुद्दे को चुनावों में भी एक अहम पहलू मानते हैं। यह जनसंचार और वोटरों की सक्रियता जलवायु नीति को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है, भले ही ट्रंप की सरकार इस पर काम करने में संकोच कर रही हो।

दुनिया का दृश्य और जलवायु परिवर्तन की लड़ाई

अब यह समझना जरूरी है कि यह सोचना कि सिर्फ ट्रंप के आने से दुनिया की तस्वीर बदल जाएगी, पूरी तरह गलत है। जलवायु परिवर्तन की लड़ाई सिर्फ एक देश के नेताओं पर निर्भर नहीं है। यह सभी देशों की साझेदारी से ही संभव है। अगर हर देश अपने स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कुछ कदम उठाता है, तो बात बन सकती है। और यह भी ध्यान में रखना होगा कि अकेले अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियों से नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर हर एक देश, राज्य, और समुदाय के कदम से फर्क पड़ेगा।

अगर हम उम्मीद करते हैं कि ट्रंप के आने से जलवायु परिवर्तन की लड़ाई खत्म हो जाएगी, तो यह गलत होगा। यह लड़ाई एक व्यक्ति, एक सरकार, या एक देश की जिम्मेदारी नहीं है। यह पूरी दुनिया का काम है, और इसमें हर कोई योगदान कर सकता है—चाहे वो किसी भी देश में हो, किसी भी पार्टी का सदस्य हो, या किसी भी क्षेत्र में काम करता हो। जलवायु परिवर्तन का समाधान सबकी जिम्मेदारी है और अगर सभी मिलकर काम करें, तो हम एक बेहतर भविष्य बना सकते हैं।

निष्कर्ष: चुनौती और उम्मीद

ट्रंप का दूसरा कार्यकाल जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष के लिए एक मुश्किल दौर साबित हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उम्मीद खत्म हो गई है। जलवायु परिवर्तन के लिए बदलाव और कदम, राज्यों, कंपनियों, और समुदायों से ही आएंगे। अगर हम एकजुट होकर इस दिशा में काम करें, तो ट्रंप के प्रशासन का असर कम हो सकता है। याद रखें, जलवायु परिवर्तन की लड़ाई सिर्फ एक नेता पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर निर्भर है।

Related post

Leave a Reply