- October 22, 2019
टी वी चैनल और प्रिंट को गुलाम बनाने के बाद अब सोशल मीडिया को गुलाम बनाने कि साजिश
नई दिल्ली: सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने और उसे आधार से लिंक किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मद्रास, एमपी और बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर नीति बनाने के लिए सरकार को तीन महीने का समय दिया है.
कोर्ट ने यह साफ किया है कि नियम बनाते समय लोगों की निजता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. जनवरी के आखिरी हफ्ते में मामले पर अगली सुनवाई होगी.
फेसबुक और व्हाट्सऐप की याचिका पर आदेश
कोर्ट ने यह आदेश फेसबुक और व्हाट्सऐप की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया. दोनों कंपनियों ने अपने यूज़र प्रोफाइल को आधार से जोड़ने पर अलग-अलग हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करवाने के लिए याचिका दाखिल की थी.
उनकी तरफ से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी की दलील थी कि सोशल मीडिया को आधार से लिंक करना निजता के अधिकार का हनन होगा.
खुद सुप्रीम कोर्ट आधार का इस्तेमाल सिर्फ आवश्यक सरकारी सेवाओं में करने का फैसला दे चुका है. इसलिए, इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट को ही सुनवाई करनी चाहिए.
इसका विरोध करते हुए तमिलनाडु सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की दलील थी, “सोशल मीडिया कंपनियां सिर्फ अपने व्यापार को लेकर चिंतित हैं.
सोशल मीडिया के ज़रिए मानहानि से लेकर तमाम गंभीर अपराध होते हैं. इन्हें जवाबदेह बनाना होगा.“
केंद्र की तरफ से बोलते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “सरकार नहीं चाहती कि वह लोगों की आपसी बातचीत की निगरानी करे.
समस्या सोशल मीडिया कंपनियों के असहयोग की है. किसी जांच में जब उनसे सहयोग मांगी जाती है तो वह आनाकानी करते हैं.“
पहले सरकार को इस पर नीति बनानी चाहिए- कोर्ट
पिछली सुनवाई में जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा था कि यह मामला ऐसा नहीं है कि इस पर कोर्ट सीधे कोई आदेश दे.
पहले सरकार को इस पर नीति बनानी चाहिए. आज सरकार ने कोर्ट को बताया कि मामले पर मंत्रियों के समूह में चर्चा जारी है. 3 महीने में नियम सामने आ जाएंगे. कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना था कि समस्या सिर्फ सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे की ही नहीं है, झूठी जानकारी फैलने से लोगों को होने वाली दिक्कत के बारे में भी सोचा जाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा था, “सोशल मीडिया पर किसी को इस बात की इजाज़त क्यों हो कि वह दूसरे के बारे में झूठ फैलाए? उसके सम्मान को चोट पहुंचाए.
सरकार अपने बारे में कुछ कहे जाने पर कार्रवाई कर लेती है, लेकिन आम आदमी क्या करे?”
कंपनियां अपने रवैये में बदलाव करें- सरकार
कोर्ट में झूठ फैलाने वाला मूल मैसेज बनाने वाले तक पहुंचने पर भी हुई.
व्हाट्सऐप का कहना था कि मैसेज इनक्रिप्टेड होने के चलते उसके अधिकारी भी दो लोगों में हुई बातचीत को नहीं पढ़ सकते. सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा, “मैसेज डिक्रिप्ट करने की टेक्नोलॉजी न होने का बहाना नहीं बनाया जा सकता. IIT से जुड़े विशेषज्ञ इस पर सहयोग करने को तैयार है. ज़रूरत इस बात की है कि कंपनियां अपने रवैये में बदलाव करें.“