• November 1, 2022

जब मानव अधिकारों के हनन की बात आती है तो हमें पक्ष लेना चाहिए; तटस्थता अत्याचारी की मदद करता है —–उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़

जब मानव अधिकारों के हनन की बात आती है तो हमें पक्ष लेना चाहिए; तटस्थता अत्याचारी की मदद करता है —–उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़

(nhrc.nic.in)

नई दिल्ली——— राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने 12 अक्टूबर, 2022 को डॉ. अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, नई दिल्ली में अपना स्थापना दिवस मनाने के लिए एक समारोह का आयोजन किया। आयोग की स्थापना इसी दिन 1993 में हुई थी। मुख्य अतिथि के रूप में सभा को संबोधित करते हुए, भारत के उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि मानव अधिकारों के लिए गंभीर चुनौतियां मुख्य रूप से अधिकांश नागरिकों के शांत और मूक अस्तित्व के कारण उत्पन्न होती हैं, जो वास्तव में एक ऐसा विषय है जिस पर ध्‍यान
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार की आड़ में मानव अधिकारों से समझौता किया जाता है। गरीब और कमजोर वर्ग के लोग इस खतरे का आसानी से शिकार हो जाते हैं। भ्रष्टाचार पर लगातार हो रही कार्रवाई इस दिशा में एक अच्‍छा संकेत हैं और कमजोर वर्ग इसके प्रमुख लाभार्थी हैं। दिए जाने की जरूरत है। लोकतंत्र को सारमय बनाने के लिए मानव अधिकार सर्वोत्कृष्ट हैं।
इस दर्शन का प्रचार करने के लिए एनएचआरसी की सराहना करते हुए कि मानव अधिकार एक ऐसे शासन में पोषित और विकसित होते हैं जहाँ कानून का शासन होता है न कि शासक का कानून, श्री धनखड़ ने कम से कम समय में एक न्यायिक आदेश के तहत पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा पर आयोग की रिपोर्ट, जिसमें यह रेखांकित किया गया था कि शासक का कानून, कानून का शासन नहीं है जो राज्य में मानव अधिकारों का अभिशाप है, के लिए आयोग को श्रेय दिया।

भारत के उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब मानव अधिकारों के हनन की बात आती है, तो हमें पक्ष लेना चाहिए। तटस्थता अत्याचारी की मदद करता है, पीड़ित की नहीं। मौन हमेशा अत्याचारी को प्रोत्साहित करता है, उत्पीड़ित को कभी नहीं करता। ऐसे परिदृश्य में, सक्रिय होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और हमें हस्तक्षेप करना चाहिए।

भारत के उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब मानव अधिकारों के हनन की बात आती है, तो हमें पक्ष लेना चाहिए। तटस्थता अत्याचारी की मदद करता है, पीड़ित की नहीं। मौन हमेशा अत्याचारी को प्रोत्साहित करता है, उत्पीड़ित को कभी नहीं करता। ऐसे में सक्रिय होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और हमें हस्तक्षेप करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सौभाग्य से भारत के पास केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर मानव अधिकार नियमों का एक दृढऔर मजबूत तंत्र है। कोविड महामारी पृथ्‍वी पर मानव अधिकारों के लिए एक गंभीर चुनौती थी। मजबूत स्वास्थ्य ढांचे का दावा करने वाले देश ध्वस्त हो गए। हमारे देश में सभी स्वास्थ्य और भोजन की दृष्टि और रणनीति के साथ इस खतरे को प्रशंसनीय रूप से समाहित किया गया था। राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थान, गनहरी के ग्लोबल अलायंस ऑफ़ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशन, गनहरी से एनएचआरसी, भारत द्वारा प्रत्यायन का “ए” दर्जा प्राप्त करना सराहनीय है क्योंकि यह मानव अधिकारों के संबंध में हमारे राष्ट्र के उत्कृष्ट ट्रैक रिकॉर्ड को भी दर्शाता है।
उन्होंने विभिन्न परामर्शियों के लिए एनएचआरसी की भी सराहना की और कहा कि मीडिया को उनके बारे में आवाज़ उठानी चाहिए ताकि मानव अधिकारों का संरक्षण किया जा सके। मानव अधिकारों का संरक्षण केवल सरकार या एनएचआरसी की ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की एक साझा जिम्मेदारी है। हालांकि, उन्होंने कहा कि आयोग को राज्य मानव अधिकार आयोगों को जहां कहीं भी आवश्यक हो, उन्हें प्रेरित करने और सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने प्रत्येक नागरिक से मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन में सहयोग करने का भी आग्रह किया।

इससे पहले, एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने कहा कि हमें लाभ के वितरण और वितरणात्मक न्याय के बीच संतुलन बनाना होगा। समाज के वंचित वर्गों के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक उत्थान के लिए अधिक सकारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है। यह स्पष्ट करने का समय आ गया है कि सेवाओं में गैर-प्रतिनिधित्व वाले वर्गों को आरक्षित श्रेणी के भीतर ही आरक्षण प्रदान किया जाता है ताकि विकास का लाभ सभी को मिल सके
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि हमें लैंगिक समानता और सभी के लिए समान अधिकार हासिल करना है, खासकर महिलाओं के लिए। धर्म या प्रथागत प्रथाओं की आड़ में उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है और नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में परिकल्पित समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ना वांछनीय है। सभी प्रकार से लैंगिक समानता के बिना मानव अधिकारों की प्राप्ति एक दूर का सपना बनकर रह जाएगी।

उन्होंने कहा कि साइबरस्पेस ने व्यक्तिगत गोपनीयता सहित मानव अधिकारों पर आघात किया है, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक और मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। साइबरस्पेस का 96% डार्क वेब दुनिया में सबसे शक्तिशाली मानव और यौन तस्करी माध्यम के रूप में उभरा है। महिलाओं और बच्चों, आदिवासियों और कमजोर वर्गों की तस्करी बंद होनी चाहिए।
जेलों में अपराधों से छुटकारा पाने के लिए तत्काल जेल सुधारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए, एनएचआरसी अध्यक्ष ने कहा कि जेल, अपराधियों के सुधार के लिए हैं, हालांकि, दुर्भाग्य से, वे अपराध करने के स्थान बन गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय स्वशासन जनता के प्रति वैधानिक दायित्वों को लागू करने के लिए बाध्य हैं। उनमें से कई कचरा निपटान और सीवेज उपचार संयंत्रों की व्यवस्था भी नहीं कर रहे हैं और सड़कों पर मैनहोल की परवाह नहीं करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांश नदियों और नालों में पानी की गुणवत्ता निर्दिष्ट मानकों को पूरा नहीं करती है और देश के कई शहरों में स्वच्छ हवा नहीं मिलना मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। पड़ोसी राज्यों में पराली (पराली) को जलाना तुरंत बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह हर सर्दियों में दिल्ली के नागरिकों का दम घोंट देता है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने खतरनाक कचरे की सीमा पार आवाजाही, पर्यावरण की गिरावट, ग्लोबल वार्मिंग और पीने योग्य पानी की कमी जैसी वैश्विक चुनौतियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि किसी भी देश को दूसरे देश में कचरा फेंकने का अधिकार नहीं है।

उन्होंने कहा कि तकनीकी प्रगति के कारण मानव अधिकारों के उल्लंघन के नए रुझान देखे जा रहे हैं। साइबरस्पेस ने व्यक्तियों की गोपनीयता सहित मानव अधिकारों पर आघात किया है, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक और मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। ई-कॉमर्स के प्रचलन से सीमा-पार लेनदेन होते हैं। ई-कॉमर्स में धोखाधड़ी, डेटा हैकिंग और क्रिप्टो-मुद्रा में फिरौती की मांग के मामले अपराधियों की पहचान करने और उन्हें ट्रैक करने की कठिनाई को कई गुना बढ़ा देते हैं।
नसिक स्वास्थ्य अस्पताल के दौरे, जेलों और समाज के कमजोर वर्ग के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए 20 सलाह सहित आयोग की गतिविधियों के बारे में जानकारी देते हुए, एनएचआरसी अध्यक्ष ने कहा कि पिछले वर्ष के दौरान 1.21 लाख से अधिक शिकायतें प्राप्त हुईं और पुराने और ताजा मामलों सहित 1.28 लाख से अधिक का निर्णय लिया गया। आयोग ने 250 मामलों में लगभग 100 मिलियन रुपये की मौद्रिक राहत की सिफारिश की। अब तक, 30 वर्षों में, आयोग ने 2.3 बिलियन रुपये के मुआवजे की सिफारिश की है।

एनएचआरसी के महासचिव, श्री देवेंद्र कुमार सिंह ने उन सभी के प्रति आभार व्यक्त किया, जिन्होंने समारोह में भाग लिया और इसे निर्बाध रूप से आयोजित करने में समर्थन दिया। उन्होंने मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने और मानव अधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्टिंग में मीडिया की भूमिका की सराहना की, जिससे आयोग को ऐसी घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेने में मदद मिलती है।
एनएचआरसी के सदस्य न्यायमूर्ति एम. एम. कुमार, डॉ. डी. एम. मुले और श्री राजीव जैन, डीजी (अन्‍वेषण), श्री मनोज यादव, अध्यक्ष और राज्य मानव अधिकार आयोग के सदस्य, न्यायपालिका के सदस्य, राजनयिक, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, नागरिक समाज के प्रतिनिधि, मानव अधिकार संरक्षकों, अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ, समारोह में भाग लिया, जिसके बाद राज्य मानव अधिकार आयोगों और राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के साथ संबंध को मजबूत करने के लिए एक संवाद हुआ।

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