जंगलों में साजा और अर्जुन के वृक्षों पर तथा गांवों में शहतूत के पेड़ों पर की जा रही रेशम की खेती

जंगलों में साजा और अर्जुन के वृक्षों पर तथा गांवों में शहतूत के पेड़ों पर की जा रही रेशम की खेती

रायपुर  –  जंगलों में साजा और अर्जुन के वृक्षों पर तथा गांवों में शहतूत के पेड़ों पर की जा रही रेशम की खेती से छत्तीसगढ़ राज्य में वर्ष 2014 में 26 करोड़ नग कोसा की पैदावार मिली। इनमें 20 करोड़ नग नैसर्गिक टसर कोसा और 06 करोड़ नग टसर ककून शामिल हैं। मांग के अनुसार रेशम धागा करण के लिए बुनकरों और महिला स्व-सहायता समूहों को कोसा दिए गए, जिनसे चार हजार क्विंटल धागा तैयार हुआ। इन रेशमी धागों से राज्य के बुनकरों द्वारा कोसा कपड़े बनाए जा रहे हैं।

ग्रामोद्योग विभाग के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि वर्ष 2014-15 में रेशम योजनाओं से प्रदेश के 46 हजार हितग्राहियों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिया गया। अधिकारियों ने बताया कि छत्तीसगढ़ में निर्मित कोसा वस्त्रों की मांग राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार बढ़ रही है। इसे ध्यान में रखते हुए टसर रेशम विकास विजन 2020-21 की कार्ययोजना तैयार की जा रही है।

कार्ययोजना के तहत वन विभाग और ग्रामोद्योग विभाग द्वारा आगामी वर्षों में पचास हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कोसा खाद्य पौधों को अतिरिक्त रोपण किया जाएगा। इसके अलावा वन क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध लगभग एक लाख 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कोसा खाद्य पौधों के दोहन से 250 करोड़ नग कोसा उत्पादन कर ढाई हजार मीटरिकटन कोसा रॉ सिल्क का उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है।

इससे बनुकरों को उनके मांग के अनुरूप कोसा उपलब्ध होगा और राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कोसा वस्त्रों की आपूर्ति की जा सकेगी। उल्लेखनीय है कि हितग्राहियों द्वारा उत्पादित कोसा ग्रामोद्योग विभाग से सम्बद्ध रेशम प्रभाग द्वारा समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है। बाजार दर अधिक होने पर हितग्राही कोसा फलों का विक्रय खुले बाजार में करते हैं।

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