चौरी चौरा— पहचान के मुंहताज

चौरी चौरा— पहचान के मुंहताज

उत्तर प्रदेश —- एक चौरा और दूसरा चौरी। दोनों मिले तो हो गए चौरीचौरा। जंग-ए-आजादी में किसान क्रांति का प्रतीक बना लेकिन सौ साल गुजरने पर भी उस पहचान को तरस रहा है, जिसका वह हकदार है। फिलहाल चौरा नगर बन चुका है जबकि चौरी अभी गांव है। शताब्दी वर्ष ने नई पहचान की उम्मीद जगाई है।

अंग्रेजों के जमाने में चौरीचौरा नाम से रेलवे स्टेशन बन। उसी समय थाना भी खुला जिससे किसानों ने 4 फरवरी 1922 को फूंक दिया था। तहसील भी चौरीचौरा नाम से है। 2012 से विधानसभा सीट भी मिल गई। यह सबकुछ टुकड़ों में हुआ।

कभी शासन-प्रशासन में चौरी और चौरा की मुकम्मल पहचान की फिक्र नहीं दिखी। दोनों के बीच का हजार मीटर का फासला 100 साल में भी नहीं भर सका। मुंडेरा बाजार नगर पंचायत में शामिल हो चुका चौरा अब गोरखपुर विकास प्राधिकरण का हिस्सा है जबकि चौरी अभी ग्राम पंचायत है।

चौरा के निवर्तमान प्रधान बबलू असलम का कहना है कि टाउन एरिया में शामिल होने से विकास के अधिक अवसर मिलेंगे। वहीं चौरी के निवर्तमान प्रधान दिनेश कहते हैं कि गांव को धरोहर के रूप में सहेजने की पहल होनी चाहिए। कालापानी की सजा पाने वाले सेनानी डॉ.द्वारिका प्रसाद पांडेय के पुत्र सूर्य प्रकाश पांडेय बताते हैं कि आजादी वाले दिन स्टेशन पर तिरंगा फहराया गया था। उसी समय पहल हो गई होती तो इतना इंतजार न करना पड़ता।

पहचान देने की कोशिश

जिला प्रशासन ने अब मुंडेरा बाजार नगर पंचायत का नाम चौरीचौरा करने का प्रस्ताव शासन को भेजा है। साथ ही इतिहास की चूक को भी दुरुस्त करने की कवायद शुरू हुई है। डीडीयू के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चतुर्वेदी कहते हैं कि शताब्दी वर्ष में चौरीचौरा को उसका हक मिलने की उम्मीदें दिखने लगी हैं।

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