- November 27, 2015
चुनौती – 3.5 % वित्तीय घाटे कि आपूर्ति : समस्या : 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें
केंद्र सरकार के सामने अब 3 प्रमुख उद्देश्य हैं। वित्तीय घाटा कम रखना, पूंजीगत व्यय उच्च स्तर पर बरकरार रखना और वेतन में बढ़ोतरी करना, जैसा कि सातवें वेतन आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है।
विश्लेषकोंं की आम राय यह है कि 7वें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार करने से वित्तीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना आने वाले वर्षों में सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। वित्त वर्ष 2017 में 3.5 प्रतिशत वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार को सार्वजनिक निवेश कम करना पड़ेगा, जिससे निवेश चक्र ठीक करने का सरकार का लक्ष्य और जटिल हो जाएगा।
वेतन बढ़ोतरी से केंद्र सरकार के वित्त पर मोटे तौर पर 736 अरब रुपये का बोझ बढ़ेगा, जो जीडीपी का 0.46 प्रतिशत है। अगर रेलवे पर पडऩे वाले 284 अरब रुपये या जीडीपी के 0.19 प्रतिशत बोझ को भी शामिल कर लें तो वेतन बढ़ोतरी से पडऩे वाला कुल बोझ 1 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 0.65 प्रतिशत) हो जाएगा। हालांकि इसका असर छठे वेतन आयोग की तुलना में कम है, जो एचएसबीसी के अनुमान के मुताबिक जीडीपी का करीब 1 प्रतिशत था, लेकिन वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक भुगतान करने पर वित्तीय घाटा कम करने के लक्ष्य पर असर पड़ेगा। सरकार ने वित्त वर्ष 17 में वित्तीय घाटा कम कर 3.5 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है, जो वित्त वर्ष 16 में 3.9 प्रतिशत था, सिटी के मुताबिक यह बड़ी चुनौती होगी।
सिटी के मुताबिक लक्ष्य हासिल करने के लिए सार्वजनिक निवेश में व्यय कम करना होगा। वहीं कुछ विश्लेषकों का कहना है कि पूंजीगत व्यय मेंं कटौती भी घाटे के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। एक नोट में स्टैनचार्ट ने कहा है कि अगर सरकार पूंजीगत व्यय में कटौती करती है, तब भी वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में असफल रहेगी। स्टैनचार्ट के मुताबिक, ‘यहां तक कि बहुत आशावादी परिदृश्य में भी (जिसकी संभावना बहुत कम है) सरकार को पूंजीगत व्यय में जीडीपी के 0.2 से 0.3 प्रतिशत की कटौती करने की जरूरत होगी, जिससे
के लक्ष्य को हासिल किया जा सके और वेतन आयोग की सिफारिशेंं लागू हो सकें। हमें लगता है कि अगर सिफारिशों को पूरी तरह स्वीकार किया जाता है तो पूंजीगत व्यय में कटौती करने के साथ ही वित्तीय एकीकरण के पथ से हटने का विकल्प चुनना होगा।’
सरकार को वित्तीय घाटे के लक्ष्य को टालना या भुगतान रोकना पड़ सकता है, लेकिन वह सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। फिच का कहना है, ‘भारत की वित्तीय स्थिति में सुधार में देरी होने से उसकी लंबे समय से चल रही कमजोरियां उजागर होंगी। सरकार पर कर्ज का बोझ जीडीपी के 65 प्रतिशत के करीब है, जो बीबीबी रेङ्क्षटग वाले सभी देशों से ज्यादा है।’
राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर असर नहीं
वित्त मंत्रालय ने भरोसा जताया कि वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल से पडऩे वाले 1.02 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त खर्च से राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बाधित नहीं होगा। आर्थिक मामलों के सचिव, शक्तिकांत दास ने कहा कि सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट सौंपने के बारे में पहले से पता था और सरकार को इसके बारे में पता था कि यह एक जनवरी 2016 से लागू होना है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए यह ऐसी चीज है जिसकी पहले से उम्मीद थी। हां, रिपोर्ट के ब्योरों के बारे में, भले ही, सरकार को कुछ पता नहीं था। लेकिन सरकार का पहले से मोटा-मोटा अनुमान था कि नए वेतन आयोग की सिफारिशों का क्या असर होगा और इसलिए एक तरह से जोखिम प्रबंधन की व्यवस्था तैयार है।’ उन्होंने कहा कि व्यय का ज्यादातर बोझ अगले वित्त वर्ष 2016-17 पर होगा।
आयोग का प्रस्ताव राजकोषीय चुनौती
रेटिंग एजेंसी फिच का मानना है कि केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में 23.55 प्रतिशत की बढ़ोतरी की सिफारिश पूरी तरह लागू करने से राजकोषीय मजबूती का लक्ष्य पूरा करने की राह में चुनौतियां बढ़ेंगी। फिच रेटिंग्स ने एक बयान में कहा है, ‘वेतन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करने से सरकार के वेतन बिल पर उल्लेखनीय असर होगा।’ फिच ने कहा, ‘अपने आप में इन सिफारिशों को लागू करने से केंद्र सरकार का वेतन पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद के करीब 0.5 प्रतिशत के बराबर बढ़ेगा। यहां यह भी महत्त्वपूर्ण है कि इससे राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर भी असर होगा क्योंकि वे इसका अनुपालन करना चाहेंगे।’ सरकार ने 2016-17 में राजकोषीय घाटा कम कर सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत के बराबर लाने का लक्ष्य रखा है जो 2015-16 के लिए 3.9 प्रतिशत है।