ग्रीन फेथ के परचम तले जलवायु निष्क्रियता के ख़िलाफ़ धार्मिक संगठन हुए एकजुट

ग्रीन फेथ के परचम तले जलवायु निष्क्रियता के ख़िलाफ़ धार्मिक संगठन हुए एकजुट

लखनऊ (निशांत) — दुनिया में ऐसी कोई भी धार्मिक परंपरा नहीं जो प्रकृति के विनाश का प्रतिबंध न लगाती हो। लेकिन इस प्रतिबन्ध के बावजूद, दुनिया भर की सरकारें और वित्तीय संस्थान प्रक्रति का दोहन कर रही हैं और उस पर लगाम लगाने की जगह ढील देती नज़र आती हैं। ये कहना है कैथोलिक धर्म प्रचारक नेता थेया ओर्मेरोड का, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ एक बहु-धार्मिक संगठन और ग्रीनफेथ इंटरनेशनल नेटवर्क की स्थापना की। वो आगे कहते हैं कि तमाम सरकारें और वित्तीय संगठन अब अपनी जलवायु कोले कर निष्क्रियता से धार्मिक संगठनों को मजबूर कर रहे हैं कि वो मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर से बाहर निकल सड़क पर आ कर प्रकृति को हो रहे नुक्सान के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठायें।

इसी क्रम में, आज, ग्रीनफेथ इंटरनेशनल नेटवर्क के परचम तले 38 देशों में 300 से अधिक ग्रासरुट स्तर पर धार्मिक कार्यों में सक्रिय संस्थाओं और धर्मगुरुओं के नेतृत्व में हज़ारों लोगों ने सरकारी नेताओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों के आगे आगामी COP26 में एक महत्वाकांक्षी जलवायु मांगों की श्रृंखला रखने का आह्वाहन किया।

अब तक के इस सबसे बड़े ग्रासरुट स्तर के बहु-विश्वास/धार्मिक ‘क्लाइमेट डे ऑफ़ एक्शन’ (जलवायु कार्रवाई दिवस) को 100 मिलयन से अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले 120 से अधिक धार्मिक समूहों का साथ मिला हुआ है। इन सब ने एकजुट हो कर दुनिया को एक स्पष्ट संदेश दिया है कि वैश्विक स्तर पर तमाम नेता जलवायु संकट को दूर करने के लिए पर्याप्त कार्य नहीं कर रहे हैं।

इसीलिए, वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए आवश्यक कार्यवाही है और सरकारों और वित्तीय संस्थानों द्वारा वास्तविक जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं के बीच के भारी अंतर से चिंतित हो कर इन ज़मीनी स्तर पर सक्रिय धार्मिक कार्यकर्ताओं ने जलवायु संकट की मार से दुनिया भर में समुदायों को बचाने के इरादे से एक प्रभावशाली मांगों का एक सेट जारी किया।

यह गतिविधि भारत समेत ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चिली, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, केन्या, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, अमेरिका और वानुअतु सहित 38 देशों में हुई।

जिन 300 से अधिक धार्मिक नेताओं ने सार्वजनिक रूप से इन मांगों का समर्थन किया, उनमें वैटिकन के कार्डिनल पीटर टर्कसन; बौद्ध लेखक जोआना मैसी; मुस्लिम-अमेरिकी विद्वान इमाम ज़ैद शाकिर; अफ्रीकी काउंसिल ऑफ रिलीजियस लीडर्स के महासचिव डॉ. फ्रांसिस कुरिया; कैंटरबरी के पूर्व आर्कबिशप रोवन विलियम्स ; डॉ. अज़्ज़ा कराम और रब्बी डेविड रोसेन, क्रमशः महासचिव और रेलीजिएंस फॉर पीस (शांति के लिए धर्मों) के सह-अध्यक्ष; और परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती शामिल हैं।

बात भारत से कुछ प्रमुख हस्ताक्षरकर्ताओं की करें तो इनमें भगवती सरस्वती, महासचिव, ग्लोबल इंटरफेथ WASH एलायंस, चिदानंद सरस्वती, अध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ए के मर्चेंट, जनरल सेक्रेटरी और नेशनल ट्रस्टी, टेम्पल ऑफ अंडरस्टैंडिंग इंडिया फाउंडेशन; लोटस टेम्पल, वारिस हुसैन, सहायक सचिव, जमात-ए-इस्लामी हिंद, और डॉ. शेरनाज कामा, निदेशक, पारज़ोर फाउंडेशन – पारसी जोरास्ट्रियन, प्रमुख नाम हैं।

ग्रीन्फेथ के नाम से यह कथन नई जीवाश्म ईंधन अवसंरचना और उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई के लिए अपने समर्थन को तुरंत समाप्त करने के लिए सरकारों और बैंकों का आह्वान करता है, कि वे स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच के लिए प्रतिबद्ध हों, ताकि ग्रीन (हरित) रोजगार सृजित करने की नीतियों को लागू किया जा सके और प्रभावित श्रमिकों और समुदायों के न्यायसंगत संक्रमण हो सके, ताकि जलवायु प्रभावों की वजह से स्थानांतरगमन करने के लिए मजबूर लोगों के समर्थन के लिए नीतियों और फंडिंग सुरक्षित हों पाएं, और आदि।

ग्रीनफेथ के साथ एक इंडोनेशियाई मुस्लिम कार्यकर्ता नाना फ़रमान ने कहा, “जलवायु-प्रेरित बाढ़, सूखा, और जंगल की आग अब दुनिया भर में, रोज़ आने वाले सर्वनाश हैं। हमेशा हमारे बीच ऐसा होता है कि जिन्होंने समस्या में कम से कम योगदान किया हो उनको सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है: नस्लीय और जातीय अल्पसंख्यक, गरीब, बुजुर्ग, छोटे बच्चे, महिलाएं। ये मांगें नैतिक मापदंड हैं जिनके द्वारा सरकार या वित्तीय क्षेत्र की प्रतिबद्धताओं को मापा जाना चाहिए।”

ग्रीनफेथ इंटरनेशनल नेटवर्क के सदस्यों ने नोट किया कि जैसे कोविड-19 महामारी की वजह से लाखों लोगों को अपनी नौकरियों और स्वास्थ्य को खो दिया है, वहीँ जीवाश्म ईंधन उद्योग ने जलवायु और पर्यावरण संरक्षण को कमजोर करने के लिए लॉबी (पैरवी) करते हुए अरबों डॉलर के आपातकालीन बेलआउट फंडिंग प्राप्त किए हैं। इसके अलावा, ब्राजील में पिछले साल के दौरान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और इंडोनेशिया, जो दुनिया के सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय वर्षावनों का घर हैं, सरकारों ने दरअसल कृषि व्यवसायियों के लिए लॉगिंग में तेजी लाना आसान बना दिया है।

डॉ. एरिएन्न वान एंडेल, चिली के एलियांज़ा इंटरेलिजियोसा वाई एस्पिरिचुअल पोर इल क्लाइमा की समन्वयक, ने कहा कि, “दशकों से ये जानने के बावजूद कि यह समस्या कितनी गंभीर है, जो होने को ज़रुरत है और जो हो रहा है के बीच का अंतर नैतिक रूप से निंदनीय है। जीवाश्म ईंधन विकास और वनों की कटाई में वृद्धि जारी है। स्वदेशी लोगों और पर्यावरण रक्षकों को सत्य के साथ होने पर हिंसा का सामना करना पड़ता है, जबकि सरकारें और निगम मुँह मोड़ लेते हैं। ”

यह पहली बार है जब ग्रासरुट स्तर के धार्मिक संगठन इस तरह की स्पष्ट मांगों के साथ इस पैमाने पर जुट रहे हैं। यहाँ कुछ नियोजित कार्यों का एक स्नैपशॉट है:

• संसद के सामने जब एक सार्वजनिक कार्रवाई जिसमे सरकार से कोयले के विकास को समाप्त करने और 2030 तक नेट शून्य उत्सर्जन के लिए प्रतिबद्ध होने के लिए मांग करी जाएगी तब ऑस्ट्रेलिया के पार, चर्च अपनी घंटियाँ बजाएंगे और बौद्ध मंदिर अपने औपचारिक समारोहों के घंटे बजाएंगे।

• मिनेसोटा, अमेरिका में, 200 से अधिक पादरियों और धार्मिक लोग मिसिसिप्पी नदी पर मिलेंगे और राष्ट्रपति बिडेन से प्रस्तावित लाइन 3 तेल पाइपलाइन, डकोटा एक्सेस पाइपलाइन और अन्य जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं को अस्वीकार करने के लिए मांग करेंगे।

• नैरोबी में, एक बहु-धार्मिक युवा समूह राष्ट्रीय स्तर पर जीवाश्म ईंधन की खोज को समाप्त करने के लिए केन्या के ऊर्जा मंत्री से सार्वजनिक रूप पर मांग करेंगे और साथ ही 1,000 पेड़ लगाएंगे।

• बाहा’ई और बौद्ध मंदिरों के साथ-साथ सैंटियागो और चिली में, कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट चर्च अपनी सरकार से जलवायु और पर्यावरणीय विरोध के दमन को समाप्त करने के लिए आह्वान करते हुए घंटी बजाएंगे।

दक्षिणी अफ्रीकी फेथ समुदाय पर्यावरण संस्थान की निदेशक और ग्रीनफेथ इंटरनेशनल नेटवर्क की फाउंडिंग पार्टनर, फ्रांसेस्का डी गस्पारिस ने कहा, “दुनिया को तुरंत मजबूत, कर्तव्यपरायण कार्रवाई की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन पर धार्मिक समुदायों ने बयान, फतवे, ज्ञानवर्धक विश्वकोश (encyclicals) और बहुत कुछ जारी किया है। अब बाध्यकारी कानून की जरूरत है।”

डे ऑफ़ एक्शन के आयोजकों ने एक ग्रासरुट, बहु-धार्मिक आंदोलन का निर्माण जारी रखने और सरकारों और वित्तीय संस्थानों पर COP26 और उससे आगे डिलीवर करने के लिए दबाव डालने के अपने इरादे की घोषणा की। ग्रासरुट स्तर पर संघटन का आकार, राजनीतिक और वित्तीय मांगों की स्पष्टता और प्रत्यक्षता के साथ मिलकर, जलवायु-विरोधी धार्मिक समूहों के लिए सीधी चुनौतियों के साथ, जलवायु परिवर्तन पर धार्मिक कार्रवाई में वृद्धि और गहनता का प्रतिनिधित्व करता है।

ग्रीनफाइट के कार्यकारी निदेशक रेवरंड फ्लेचर हार्पर ने कहा, “दुनिया भर के धार्मिक उग्रवादी सत्तावादी सरकारों और ग्रह को नष्ट करने वाले अर्क उद्योगों का समर्थन कर रहे हैं। जो ये कट्टरपंथी विश्वास समूह कर रहे हैं, उसके बारे में कुछ भी नैतिक नहीं है। सभी जगह ग्रासरुट धार्मिक लोग अपने धर्मों को रीक्लेम (पुनः प्राप्त) करने के लिए बढ़ रहे हैं।”

Related post

नेहरू से हमें जो सीखना चाहिए

नेहरू से हमें जो सीखना चाहिए

कल्पना पांडे————-इतने सालों बाद हमे शर्म से ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि धार्मिक आडंबरों, पाखंड…
और सब बढ़िया…..!   अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

और सब बढ़िया…..! अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

अतुल मलिकराम ——– सुख और दुःख, हमारे जीवन के दो पहिये हैं, दोनों की धुरी पर…
भाग्यशाली मैं ….  – अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

भाग्यशाली मैं …. – अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

(व्यंग लेख ) अतुल मलिकराम  :-   आज कल जीवन जीने का ढंग किसी राजा महाराजा जैसा…

Leave a Reply