• November 4, 2018

ग्रामीण आजीविका मिशन -नीलम महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत

ग्रामीण आजीविका मिशन -नीलम  महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत

करनाल ———आधुनिकता की इस दौड़ में पुरूषों के साथ-साथ महिलाएं भी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। यूं कहिए कि अब महिलाएं घर के चूल्हा-चौके तक सीमित नहीं हैं बल्कि बड़ी से बड़ी औद्योगिक इकाइयों को बखूबी चला रही हैं।

अगर बात ग्रामीण क्षेत्र की करें तो यहां की महिलाएं भी स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में भरपूर सहयोग दे रही हैं। ऐसी ही इंद्री खंड के गांव कमालपुर रोड़ान की नीलम है जो अपने पति, सास और दो बच्चों के साथ गांव में रहती है। सुसर मकान बनाने के मैटिरियल का काम करते थे।

उनकी दुर्घटना में आकस्मिक मौत के कारण उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। उसके पति ने फिजियोथेरेपिस्ट की पढ़ाई की हुई थी और वे उसी क्षेत्र में काम भी नहीं कर रहे थे परंतु पिता की मौत के बाद उन्होंने अपने पिता के काम को ही करने की सोची पर अनुभव न होने के कारण वो असफल रहे और उस काम में उनको काफी नुकसान उठाना पड़ा।

बहुत से लोगों को पैसा वापिस करना पड़ा जोकि उन्होंने अपने कंस्ट्रक्शन मैटिरियल वाले काम का सारा सामान बेचकर चुकाया। इन सब परिस्थितियों के कारण उनके परिवार पर बहुत आर्थिक बोझ पड़ गया। नीलम स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की हुई थी लेकिन ससुर को घर की महिलाओं का बाहर जाकर काम करना पंसद नहीं था तो वो अपने घर में ही रहकर काम करती थी। वो चाहकर भी अपने पति का हाथ नहीं बंटा सकती थी। उसकी सास भी अपने खेत में काम करके और पशुपालन के माध्यम से अपने परिवार की पूरी मदद करने की कोशिश करती थी मगर परिवार की स्थिति को सुधारने में ये प्रयास पर्याप्त नहीं थे।

जून 2016 में नीलम के गांव में सीआरपी टीम आई, जिसके समझाने पर नीलम दीपक महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ गई थी। पढ़ी-लिखी होने के कारण उसको गांव के 10 समूहों के देखभाल के लिए समूह-सखी का काम मिल गया। उसका मानदेय मिलता था जिससे वो अपने घरेलू खर्चों में भी योगदान देने लगी। उसके पति और सास ने भी उसको पूरा सहयोग दिया। नीलम को समूह में संभावना दिख रही थी कि समूह के माध्यम से उसकी स्थिति सुधर सकती है। वो पूरी लगन से समूह के हर कार्य एवं प्रशिक्षण में बढ़चढ़ कर भाग लेने लगी।

फिर नीलम ने अपने समूह से 5000 रुपये का ऋण लेकर लेडीज सूट का कपड़ा लाकर अपने घर में रखा। 5000 रुपये का ऋण लेकर वो और कपड़ा लाई। 10000 रुपये का ऋण नीलम ने अपनी दुकान के लिए लिया। अब नीलम अपने घर पर सूट सिलने का काम भी करती है, समूह-सखी व सीआरपी का कार्य भी करती है व अब पीआरपी की परीक्षा भी दे चुकी है। वो समूह में 3300 रुपये की बचत कर चुकी है। उसके पति ने अब पार्टनरशिप में फिजियोथेरेपी का काम शुरू कर दिया है।

वह और उसके पति मिलकर अपने परिवार के लिए 18000 से 20000 रुपये मासिक कमा लेते हैं। वो अब घर और बाहर दोनों का कार्य बहुत अच्छे से संभाल रही है। जिसमें उसके पति और सास उसका पूरा सहयोग करते हैं। समूह के जरिए नीलम अपने अंदर की प्रतिभा को निखार पाई है। नीलम की सफलता को देखते हुए उसके गांव के पुरूष अपनी पत्नियों को नीलम के नक्शे-कदम पर चलने को कहते हैं। नीलम को अपने उज्ज्वल भविष्य का सपना अपने समूह के कारण ही देखना मुनासिब हुआ है।

हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के करनाल सह जिला मिशन निदेशक एवं अतिरिक्त उपायुक्त निशांत कुमार यादव का कहना है कि महिलाएं परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में आगे आ रही हैं। मुझे प्रसन्नता इस बात की है कि रसोई, मजदूरी तक सीमित रहने वाली महिलाओं ने अपने समूहों के माध्यम से अपने परिवार की मासिक आय 10 हजार रुपये से ज्यादा पहुंचा दी है।

उन महिलाओं को जिन्होंने समूहों की शक्ति के द्वारा न केवल परिवार का पुराना कर्जा चुकाया बल्कि अपने परिवार के लिए कमाऊ बहू बन अपनी प्रतिभा दिखाई है। हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित समूह संजीवनी बूटी की भांति है जो संगठन की शक्ति से असंभव कार्य को भी संभव बना देते हैं।

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