क्या जातीय राजनीति की परिकरमा करेगा बंगाल…? —- सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं समाज चिंतक)

क्या जातीय राजनीति की परिकरमा करेगा बंगाल…? —- सज्जाद हैदर  (वरिष्ठ पत्रकार एवं समाज चिंतक)

यह सत्य है कि राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी सदैव ही सियासत की रूप रेखा को नए रूप-रंग में गढ़ने का प्रयास करते हैं। ऐसा इसलिए कि प्रत्येक राजनेता अपने सियासी समीकरण को अपने हित के अनुसार पूरी तरह से ढ़ालने का प्रयास करते हैं जिसमें प्रत्येक प्रकार के सियासी दाँव पेंच का बखूबी प्रयोग भी किया जाता है। क्योंकि राजनीति के क्षेत्र में सियासी पार्टियों का उद्देश्य यह होता है कि वह किसी भी प्रकार से चुनावी महौल को गढ़कर अपने हित के अनुसार तैयार कर सकें। सत्य यही है कि राजनीति का रूप भी पूरी तरह से नया रूप धारण कर चुका है। जिसका दृश्य भी जनता के सामने समय-समय पर आने लगा है। जिसको बड़ी ही सरलता के साथ समझा जा सकता है। सत्य यह है कि यदि आप एक क्षण के लिए भी सियासत के चाल चित्र तथा चेहरे पर अपनी पैनी नजर डाल दें तो पूरा दृश्य साफ एवं स्पष्ट रूप से आपके सामने प्रस्तुत हो जाएगा।

जातीय आधार पर हो रही गोलबंदी किसी भी देश के भविष्य के लिए शुभ कदापि नहीं है। यदि विश्व में जातीय राजनीति पर प्रकाश डालें तो इससे जनता के बीच आपसी सौहार्द को भारी क्षति हुई साथ ही जनता के बीच गहरी खाई तैयार हो गई जिससे विकास कार्य को भारी क्षति हुई लेकिन इसके ठीक उलट नेताओं को भारी सियासी लाभ हुआ इसका मुख्य कारण यह है कि उस देश की जनता दो भागों में बंटकर आपस में ही पिस कर एक बड़े दल-दल में जा फंसी। इसलिए वह नेताओं से सवाल पूछना भूल गई। साथ ही अपना हक भी मानने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। इसलिए कि वह आपस में लड़कर पूरी तरह से बिखर गई जिससे कि राजनेताओं को खुला मैदान मिल गया।

विश्व के ताकतवर देशों की स्थिति आज सबके सामने है। श्वेत तथा अश्वेत के बीच खुदी हुई गहरी खाई में दोनों समुदाय पूरी तरह से धंसे हुए हैं। अमेरिका से लेकर अफ्रीका एवं चीन जैसे देश भी इससे अछूते नहीं हैं। बिखराव की राजनीति का दृश्य पूरी तरह से विनाशकारी है। ऐसी राजनीति जनता के लिए बहुत ही घातक है। लेकिन सत्ता के सरोकार वाले राजनेताओं से इससे कुछ भी लेना देना नहीं है क्योंकि बात है समीकरण साधने की। इसलिए सियासी रहनुमा अपना सियासी समीकरण बहुत ही चतुराई के साथ साध लेते हैं। क्योंकि नेताओं के द्वारा गढ़े हुए जातीय चक्रव्यूह में जनता पूरी तरह से फंसती चली जाती है।

पश्चिम बंगाल में आने वाले समय में चुनाव होने वाले हैं जिसका ढ़ांचा बहुत ही मजबूती के साथ अभी से ही गढ़ा जाने लगा है। जातीय समीकरण को साधने में नेतागण पूरी तरह से लग चुके हैं। धार्मिक स्थानों की परिकरमाएं अभी से तेज हो चुकीं हैं। देवी देवताओं के पवित्र स्थानों के चक्कर नेतागण लगाने लगे हैं। उधर दरगाह शरीफ के भी चक्कर लगाने आरंभ हो चुके हैं। साथ ही धार्मिक स्थानों से जुड़े हुए धर्म गुरू भी चुनावी अवसर को अपने हाथों से नहीं जाने देना चाहते। इसका मुख्य कारण है कि किसी भी प्रकार से मतदाताओं को अपने पाले में किया जाए।

यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। क्योंकि जहाँ कार्य तथा न्याय एवं विकास के नाम पर वोट माँगा जाना चाहिए वहाँ धर्म के नाम पर वोट मांगे जाने की प्रक्रिया दिखाई दे रही है। धर्म के आधार पर वोट मांगने से जनता का क्या भला होगा यह समझने की आवश्यकता है। क्योंकि धर्म के नाम पर अगर विकास तथा प्रगति होती तो आज कोरोना से जूझता हुआ संसार हाँफता हुआ अपनी सांसे न फुला रहा होता। अगर धर्म एवं धार्मिक स्थलों से विकास एवं प्रगति हो सकती तो आज सभी धर्म गुरू अपने-अपने धर्म के अनुसार मंत्र से कोरोना का उपचार कर चुके होते।

इसलिए अब यह समझ लेना चाहिए कि धर्म की आड़ में हो रहे खेल से बाहर निकलने की जरूरत है। चूँकि अब हम 21वीं सदी में गतिमान हैं। हमें शिक्षा की जरूरत है। हमें रोजगार की आवश्यकता है। हमें सर्वोत्तम चिकित्सा व्यवस्था की आवश्यकता है। जब हम जीवित रहेंगे तभी धर्म का पालन भी कर सकते हैं। अर्थात अगर हम जीवित ही न रहे तो धर्म का क्या पालन कर सकते हैं…? यह समझने की आवश्यकता है। इसलिए सभी मतदाताओं को धार्मिक बंधन से मुक्त होकर बाहर निकलकर झांकने की आवश्यकता है। क्योंकि कुँए के मेंढ़क के जैसे जीवन व्यतीत करना नर्क के समान है। इसलिए प्रत्येक धर्म के अनुयायियों को अपने-अपने धर्म से बाहर निकलकर समस्याओं को मुद्दा बनाकर निराकरण की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

बंगाल की सियासत में भी धार्मिक स्थलों का अहम स्थान है इसी कड़ी में फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने एक सियासी संकेत दिया है। अब्बास सिद्दीकी की मुलाकात AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी हुई है। सियासत के चश्में अगर देखा जाए तो यह कोई साधारण मुलाकात नहीं है। राजनीति के जानकारों की माने तो इस मुलाकात को पश्चिम बंगाल की सियासत में टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा है। बंगाल के हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ मुस्लिम समुदाय के बीच एक प्रमुख दरगाह है। जोकि मुस्लिमों के बीच बड़ी ही आस्था का विषय है। इसी आस्था के कारण मुस्लिम समुदाय दरगाह से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। यदि राजनीति की दृष्टि से देखें तो दक्षिण बंगाल में इस दरगाह का विशेष दखल है।

जातीय राजनीति के आधार पर यदि गणना की जाए तो पश्चिम बंगाल की सियासत में कुल आबादी का 31 फीसदी मतदाता मुस्लिम जाति से संबन्धित है। इस दरगाह को मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा स्थान माना जाता है। लंबे वक्त से सिद्दीकी ममता बनर्जी के करीबियों में से एक रहे हैं। हालांकि कुछ वक्त से सिद्दीकी ममता के खिलाफ दिखाई दे रहे हैं जिसमें उनका ओवैसी से मिलना बंगाल की सियासत में अहम साबित हो सकता है। इसका मुख्य कारण यह है कि जिस प्रकार से ओवैसी की पार्टी ने बिहार में अपनी चुनावी बिसात बिछाई वह पूरी तरह से साफ दिखाई दे रही है। इसके बाद ओवैसी की पार्टी ने हैदराबाद के नगरनिगम के चुनाव में जिस प्रकार का समीकरण खड़ा किया वह भी किसी से भी छिपा हुआ नहीं है।

ऐसे में सिद्दीकी से औवैसी की मुलाकात को मुस्लिम मतदाताओं को एकत्रित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। बड़ी बात यह है कि पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने से पहले ममता बनर्जी की लोकप्रियता में फुरफुरा शरीफ की बड़ी भूमिका थी। इसी बिंदु को ध्यान में रखते हुए जानकारों का मानना है कि अगर फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ममता बनर्जी के विरोध में खड़े हो जाते हैं तो बंगाल की राजनीति में बड़ा अंतर दिखाई दे सकता है। इसका मुख्य कारण यह है कि लगभग 100 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का भारी संख्या में होना।

राजनीति के क्षेत्र में बढ़ी हुई हलचल का यह मुख्य कारण यह है कि एआईएमआईएम प्रमुख ने मुलाकात करने के बाद कहा कि फुरफुरा शरीफ पीरजादा अब्बास सिद्दीकी जो भी फैसला लेंगे वह हमें मंजूर होगा। ओवैसी ने अब्बास सिद्दीकी के अलावा पीरजादा नौशाद सिद्दीकी पीरजादा बैजीद अमीन शब्बीर गफ्फार समेत कई अन्य प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं से मुलाकात की।

बता दें कि पश्चिम बंगाल में कुल 294 विधानसभा सीटें हैं साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 211 लेफ्ट को 33 कांग्रेस को 44 और भाजपा को मात्र 3 सीटें मिली थीं। लेकिन इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया। टीएमसी ने जहां 43.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया वहीं भाजपा को 40.3 प्रतिशत वोट मिले।

भाजपा को कुल 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343 वोट मिले जबकि टीएमसी को 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 मत मिले। इस आधार पर फुरफुरा शरीफ दरगाह के मुख्य मुस्लिम चेहरा अब्बास सिद्दीकी की भूमिका बंगाल के चुनाव में अहम हो जाती है। क्योंकि जातीय आधार पर राजनीति की बिछ चुकी बिसात ने जनता के बीच जातीय आधार पर अपना वर्चस्व बहुत मजबूत किया है। जिसका लाभ सियासी नेता लेने की जुगत में सदैव ही लगे रहते हैं। क्योंकि सभी राजनेता अपनी-अपनी रणनीति के आधार पर जातीय समीकरण को पूरी तरह से साधते हैं कोई मंदिर में पूजा करना आरंभ कर देता है तो कोई दरगाह के चक्कर लगाने आरंभ कर देता है। जिससे कि धार्मिक आधार पर जनता का वोट प्राप्त किया जा सके।

अतः बंगाल की धरती पर यदि धार्मिक आधार पर मतों का बिखराव हुआ तो ओवैसी तथा भाजपा दोनों का फायदा होना निश्चित है क्योंकि खासकर बंगाल की धरती पर ग्रामीण क्षेत्र का अधिकतर मतदाता अधिक पढ़ा-लिखा नहीं है। जिसके आधार पर वह सीधे-सीधे धार्मिक गुरूओं पर ही आधारित रहता है। इसी आधार पर धार्मिक स्थलों की पैठ मतदाताओं में सीधे-सीधे हो जाती है। जिसके आधार पर धार्मिक गुरू काफी दूरी तक अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं। इसलिए जातीय आधार पर मतों का अगर बिखराव हुआ तो भाजपा तथा ओवैसी की पार्टी को बंगाल के चुनाव में सीधा-सीधा लाभ होना तय है।

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