- June 7, 2021
कैनवास पर रंग बिखेरने वाले हाथ फावड़ा चलाने पर मजबूर — रूबी सरकार
भोपाल— मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले से 50 किलोमीटर दूर जबलपुर-अमरकंटक मार्ग पर पाटनगढ़ गांव को गोंड चित्रकला का जन्म स्थान माना जाता है। जनगण सिंह श्याम के माध्यम से गोंड चित्रकला शैली को यहीं से विस्तार मिला और यहां के कलाकार विदेशों में गये। वर्तमान में इस गांव के अधिकांश स्त्री-पुरुष चित्रकला में निपुण हैं।
लगभग दो सौ चित्रकार गांव में रहकर कलाकर्म से आजीविका चलाते हैं। उनके बनाए गोंड पेंटिंग बड़े-बड़े आर्ट गैलेरियो और यूरोप में ऊंचे दामों में बिकते हैं। लेकिन कोविड-19 के चलते लम्बे लॉकडाउन में अन्य समुदाय की तरह इन असाधारण चित्रकारों के जीवन पर भी असर पड़ा है। इनके पेंटिंग से आय के स्रोत ठप है।
आजीविका के लिए हुनरमंद कलाकार कैनवास पर कूची चलाने की जगह मजबूरी में मजदूरी करने लगे हैं। यह मजदूरी महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत सरकार की तरफ से मिल रहे हो या फिर बड़े किसानों के खेतों में, दोनों से इन्हें इस समय कोई परहेज नहीं है। कुछ चित्रकार जैसे- ननकुशिया श्याम, मयंक श्याम और जापानी श्याम के अलावा भज्जू सिंह श्याम, वेंकट रमन सिंह श्याम सहित अनेकों ने नाम और पहचान मिलने के बाद भोपाल और दूसरे शहरों में अपना आशियाना बना लिया, किंतु लगभग दो सौ चित्रकार अभी भी इसी गांव में रहकर ही कलाकर्म से जुड़े हैं।
कोरोना महामारी के चलते लम्बे समय तक लॉकडाउन की कल्पना किसी ने नहीं की थी। लिहाजा मध्यप्रदेश सरकार भी कलाकारों की स्वतंत्रता और सम्मान के साथ साधन मुहैया कराने में पीछे रही। जिन हुनरमंद कलाकारों का गुजारा कार्यशाला, प्रदर्शनियों और पेंटिंग बेचने से होता था, उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। इसी गांव की चंद्रकली बताती हैं कि मनरेगा के अंतर्गत उसे तालाबों को गहरा करने का काम मिला है। वह बताती है कि उसके पास बहुत कम कृषि भूमि है, इतने में गुजारा मुश्किल हो रहा था। इसलिए यह काम करना पड़ रहा है। अब तो हाथ में इतने जख्म हो गये है कि कूची नहीं चलती। बीच में थोड़े समय के लिए अनलॉक पर छत्तीसगढ़ के तिल्दा में दीवार पेंटिंग का काम मिला था, लेकिन दोबारा लॉकडाउन से बीच में ही उसे छोड़कर वापस लौटना पड़ा। चंद्रकली का एक ही बेटा है, जो कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है।
इसी तरह राजेन्द्र कुमार उइके ने कहा कि हमारे पूर्वज भी गोंड पेंटिंग की साधना करते थे, इसलिए किसी और तरह के काम में बारे में कभी सोचा नहीं। पहले व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर ऑनलाइन पेंटिंग बिक जाती थी। कोरोना महामारी के चलते वह भी बंद है। कोई खरीद ही नहीं रहा है। महामारी बहुत लम्बा खिंच गया, इसलिए दिक्कत बढ़ गई है। दीपिका गर्भवती है, इसलिए वह भारी काम कर नहीं पा रही है। राजकुमार श्याम, देवीलाल टेकाम, संतोषी ध्रुवे मनरेगा के साथ-साथ बड़े किसानों के खेतों में इस समय मजदूरी कर रही है। जबकि इनमें से कई कलाकार सरकारी व गैर सरकारी पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
इन चित्रकारों ने बताया, पिछले साल लॉकडाउन के ऐन पहले आयरलैंड की रहने वाली नॉटेड चारलेट, जो स्वयं पेशे से चित्रकार हैं, वह अपने पति के साथ पाटनगढ़ आई थीं। उन्हें उमरिया स्थित टिकुली कला केंद्र के निदेशक संतोष कुमार द्विवेदी यहां लाये थे। गांव में कला और कलाकारों से मिलकर वह बहुत भावुक हो गई थी। तब उन्होंने यहां के कलाकारों से ए-4 साइज की पेपर शीट वाली 50 पेंटिंग बेसिक कीमत देकर खरीद कर ले गई थीं। बाद में उन्होंने इन पेंटिंग्स को गोंड आर्ट इंडिया वेबसाइट के माध्यम से बेचना शुरू किया। इस तरह 36 पेंटिंग की बिक्री हुई थी। जिसका लाभांश 3824 रुपये प्रति पेंटिंग की दर से एक लाख 37 हजार रुपये उन्होंने चित्रकारों को भेजा था। इससे पहले लॉकडाउन में हम लोगों को बहुत राहत मिली थी। लेकिन इस बार इस तरह का कोई प्रस्ताव भी नहीं आया।
उमरिया टिकुली कला केंद्र के निदेशक संतोष कुमार द्विवेदी ने बताया कि नॉडेट आयरलैंड की महिला हैं। वह अपने पति रिची के साथ लम्बे समय से भारत आती रहती हैं। इन्हें आदिवासी कला, संस्कृति, योग, अध्यात्म, प्रकृति और पुरातात्विक धरोहरों से बहुत प्यार है। भारत से उनके लगाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि नॉडेट योग शिक्षक बन चुकी हैं और आयरलैंड में योग की कक्षाएं भी चलाती हैं। नॉटेड हिन्दी भाषा सीख रही हैं। भारतीय मित्र उन्हें लीला कहकर बुलाते हैं। उनके पति रिची डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाते हैं उन्हें भारत में घूम-घूम कर फोटोग्राफी करना, छोटी-छोटी फिल्में बनाना पसंद है। दोनों साथ मिलकर भारत के लगभग सभी महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थान घूम चुके है। पिछले साल कोविड-19 के प्रथम चरण में पूर्ण लॉकडाउन से पहले जब दोनों भारत आये थे, तब उनका परिचय गोंड पेंटिंग से हुआ था। उन्होंने गोंड पेंटिंग के बारे में जानने और गोंड कलाकारों से मिलने की इच्छा जाहिर की थी, तब एक परिचित ने उन्हें मेरे बारे में बताया था और मैं उन्हें लेकर डिंडोरी जिले के पाटनगढ़ क्षेत्र का दौरा कराया। क्योंकि मध्यप्रदेश में गोंड पेंटिंग के बारे में जानने के लिए इससे बेहतर और कोई जगह नहीं है।
नॉटेड गोंडी संस्कृति को करीब से जानने के लिए चित्रकार चंद्रकली पुषाम के घर पर ही ठहर गई। यहां रूककर उन्होंने न सिर्फ गोंड पेंटिंग की बारीकियों को देखा, समझा और सीखा अपितु गोंड कलाकारों की जिंदगी को भी करीब से देखा। तब वह ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले चित्रकारों की आर्थिक स्थिति देखकर अत्यंत भावुक हो गई थी। श्री द्विवेदी ने कहा कि नॉडेट ने उनसे कहा कि जिस पेंटिंग से पाटनगढ़ के कलाकारों को एक हजार से लेकर डेढ़ हजार रुपये मिलते हैं, वहीं दिल्ली, मुंबई और गोवा जैसे बड़े शहरों के आर्ट गैलरियों में दस गुना दामों में बेचा जाता है। आदिवासी कलाकारों की हालत देख वह द्रवित हुईं और तय किया, कि वह एक वेबसाइट के जरिये गोंड पेंटिंग को बाजार उपलब्ध करायेंगी तथा उससे होने वाली आमदनी से गोंड कलाकारों की मदद करेंगी। इस भावना से प्रेरित होकर नॉटेड ने पिछले साल लॉकडाउन के कठिन समय में कलाकारों की मदद की थी, जो इनके लिए वरदान साबित हुआ।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में गोंड समुदाय की आबादी सबसे अधिक है। पाटनगढ़ में प्रतिभाशाली चित्रकारों के कैनवास पर शब्द और गीत नृत्य करते हैं। चंद्रकली ने बताया, पहले कहानी बनाई जाती है, उसके बाद स्केच बनाया जाता है। फिर उसमें चटक रंग भरा जाता है। यही गोंड पेंटिंग का आकर्षण है। इसे बनाने में चार से पांच दिन का समय लगता है। इन चित्रों की अनूठी शैली ही इसे अद्वितीय बनाती है। आज दुनिया में इन गोंड कलाकारों के काम को पहचाना जाता है। प्रकृति से प्रेरित इन चित्रों में हर जगह प्रकृति नजर आती है। लेकिन इसी प्रकृति को कैनवास पर जीवंत करने वाले जादुई हाथ पेट की आग बुझाने के लिए फावड़ा चलाने को मजबूर हो गए हैं। (चरखा फीचर)