- December 9, 2015
कुत्ते हावी हो रहे पैंथरों पर – डॉ. दीपक आचार्य
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कितनी अजीब खबर है यह, सुनकर भी ग़ज़ब की हैरानी होती है। सुर्खियों में आ गया कि कुत्तों ने पैंथर पर हमला कर घायल-लहूलुहान कर दिया। आजकल यही सब तरफ हो रहा है। वन ही नहीं रहे तो वनचर और वनराज कहाँ रहें। फिर पैंथरों और दूसरी वन्य प्रजातियों का तो अब भगवान भी मालिक नहीं रहा।
कुत्तों से किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि वे ऎसी कारगुजारियाँ कर डालेंगे। पता नहीं आजकल कुत्तों को क्या हो गया है। वे सब काम करने लगे हैं जो उन्हें नहीं करने चाहिएं। पता नहीं कुत्तों में यह दुस्साहस कहाँ से आ गया, किसने हवा भर दी है इन कुत्तों में।
फिर अब तो पता भी नहीं चलता कि किस किसम का कुत्ता किस तरह के दुस्साहस में माहिर है। कुत्तों की इतनी अधिक किस्में दुनिया भर में हो गई हैं कि जितनी बार गिनते रहो, उतनी बार तादाद और किस्में बढ़ती ही चली जा रही है।
अलग-अलग रंगों और आकार-प्रकार तथा जात-जात की मुख मुद्राओं वाले कुत्तों को देखकर पैंथर क्या हर कोई वनचर या इंसान तक चकरा जाए। आज एक किस्म का दिख जाए, कल कोई दूसरा सामने दिख जाए।
पता नहीं इन कुत्तों की नस्ल सुधार और पूरक पोषाहार की व्यवस्था कहाँ से और क्यों हो रही है। आजकल हर तरफ कुत्तों की फितरत बदलती ही जा रही है। कोई पैंथर पर हमला कर लहूलुहान कर देता है और कोई नवजात को मुँह में दबोच कर ले भागता है और बोटी तक नहीं छोड़ता।
बहुत सी जगहों पर कुत्तों की यही धमाल है। पैंथर अकेले रहता है और कुत्ते अकेले के दम पर कुछ कर नहीं पाते, इसलिए झुण्ड में जमा होकर मनचाही करतूत कर डालते हैं।
फिर दूसरे पैंथर भी अपनी बिरादरी के प्रति इतने अधिक लापरवाह हैं कि इस झुण्ड के हाथों अपनी बेईज्जती होने से बचने के लिए चुपचाप सब कुछ सह जाते हैं। सहे भी क्यों नहीं, इन्हें पता होता है कि जरा सा टोक दिए जाने पर कुत्ते एक साथ मिलकर नॉन स्टॉप भौंकना शुरू कर दिया करते हैं, और यह भी अपनी बेईज्जती से कम नहीं हैं।
जहाँ कहीं कुत्ते अकेले होते हैं वहाँ इनका बस नहीं चलता, संख्या बढ़कर समूह के रूप में आ जाने पर ही इनमें श्वानत्व पूर्ण यौवन पर आ जाता है। ऎसा न हो तो अलग-थलग रहकर श्वान कैसा भी कुछ भी न कर सके। यही कारण है कि होशियार लोग श्वानों को कभी एक नहीं होने देते।
कुत्ते कुछ भी कर सकते हैं यदि एक साथ मिल जाएं। तभी तो बेचारे पैंथर पर ये हमला कर दिया करते हैं और इतना अधिक घायल कर दिया करते हैं कि आम आदमी भी सोचने लगता है कि आखिर कुत्तों में इतनी अधिक क्षमता कहाँ से आ गई। आखिर कौन कान भरता है कुत्तों के, कौन कुत्तों को भ्रमित करता है।
खैर जो कुछ हो, जो हो रहा है वह अच्छा नहीं है। यों भी हमारे आस-पास पैंथर और दूसरे वन्य प्राणी घटते जा रहे हैं, दुर्लभ होने की श्रेणी में आ गए हैं। इसलिए इन वन्य प्राणियों का संरक्षण जरूरी है। पर इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि हम इनके प्रति सहिष्णु बनें और उन खतरों से इन्हें दूर रखें जिनसे इन्हें हानि उठानी पड़ती है। यह आज का हमारा प्राथमिक कर्तव्य है। हे पशुपतिनाथ ! ये सब क्या हो रहा है।