- September 14, 2017
कायस्थ —-नई दिशा और नई सोच–शैलेश कुमार
चित्रगुप्त की उत्पति : – विष्णु के मस्तिष्क से उत्पति पुत्र। विष्णु ने कहा यह पुत्र -कायस्थ के नाम से जाना जाएगा। ********************************************************************
-मस्तिष्क को संस्कृत में –काया कहा गया है। जबकि -संस्कृत भाषा-काया का अर्थ –देह,शरीर है।
यहां ब्राम्हण काल ने फिर अपने ही ग्रंथ को तोड़मड़ोड़ किया है और अपने को सर्वोच्च सिद्ध किया है।
यम संहिता –अहिल्या कामधेनु के 9 वां अध्याय —- ब्रह्मा के पुत्र यम या यमराज जब मरुधरा से मृतिको को सही न्याय देने में अक्षम सिद्ध हो रहे था तो ब्रह्मा जी नाराज हो कर तपस्या में लीन हो गए।
इस काल में उनके मस्तिष्क में –अदृश्य चित्र -उछला जिसे (गुप्त ) रखा गया। उन्होंने कहा चित्र को गुप्त रहने के कारण कायस्थ है। यहाँ गुप्त रूप से चित्र इसलिए उभरा क्योंकि इनका जन्म हो चुका था। जिसका जन्म हो चुका होता है, उसी का चित्र या छाया बनता है।
ब्रह्मा ने चित्रगुप्त को यमराज के साथ न्यायिक व्यवस्था सुव्यवस्थित करने का दायित्व सौंपा।
ब्रह्म खंड– ब्रह्मा के मस्तिष्क में –जो चित्र -उछला वह अदृश्य था (गुप्त ) इसलिए इसका नाम कायस्थ रखा गया।
पद्मय पुराण –धर्मराज के सहयोग के लिए चित्रगुप्त को समीप लाया गया। जिससे की अच्छे और बड़े का भेद किया जा सके। गरुड़ पुराण में भी यही वर्णित है।
भविष्य पुराण — ब्रह्मा —ओ मेरे पुत्र ! मनुष्यों के गुण और अवगुण का सही न्याय करने हेतु तुम्हारा जन्म हुआ है और यह काम करना है।
महाभारत के अनुशासन पर्व अध्याय 130 –चित्रगुप्त का कार्य -मनुष्यों के अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर परितोष और सजा देना है।
(टिप्पणी :– यहां ब्राह्मण भी चित्रगुप्त के शासनाधीन आ गया ,ब्रह्म मुखाग्नि पुत्र होते हुए भी –विष्णु के मस्तिष्क पुत्र से भय कम्पित है क्योकि न्याय ब्रह्म चित्रगुप्त ही हैं ,जो खुद जानते है।)
चित्रगुप्त के परिवार :— चित्रगुप्त ब्रह्मा के दमाद और विष्णु के पुत्र हैं :-
प्रथम पत्नी : सूर्य देवता की पौत्री और श्राद्धदेव मुनि की पूर्ति नंदिनी अरावती :
1. धर्मध्वजा —श्रीवास्तव कायस्थ
2. धर्मयुज —गौर कायस्थ
3. संदयलू –सक्सेना कायस्थ
4. युगांधर —माथुर कायस्थ
द्वितीय पत्नी : शोभवति ,ब्रह्मा के दामाद सुशर्मा ऋषि की पुत्री :-
1. सुमति –कर्ण कायस्थ।
2. दामोदर –निगम कायस्थ
3. भानुप्रकाश –भटनागर
4. युगांधर –अम्बष्ट (सिन्हा ,सहाय )
5. दीनदयालू –अस्थाना कायस्थ
6. सदानंद —कुलश्रेष्ठा कायस्थ
7. राघवराम —-वाल्मीकि कायस्थ
8. विभानु —सूरजध्वज कायस्थ।
आर्यनकाल की स्पस्टता : –
कायस्थ :- लिपिकीय वर्ग में पहचान। परम्परागत रूप से राज्य में प्रशासनिक लेखन , लेखावद्ध के रूप में पहचान।
भारत के मध्य काल , मुगलकाल और ब्रिटिश राज्य में मंत्रियों के मुख्य सलाहकार पर पदस्थापित।
वर्ण की पहली अवस्था में ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य ही था। कायस्थ को मिश्रित जाति (शूद्र ) में रखा गया। सेन वंश में 5 वीं 6 वीं तथा 11 वीं 12 वीं शदी में बंगाली कायस्थ तथाकथित ब्राह्मण व क्षत्रिय का अंग माना गया।
ब्राह्मण काल में –कुछ विद्वानों ने इसे ब्राह्मण का अंग ही स्वीकार किया है । जिसका काम लेखा -बही और वैदकी (डॉक्टर्री ) था लेकिन जाति में वर्णित नहीं किया गया।
बंगाल में इसलिए बहुत से ब्राह्मण परिवार अन्य वर्ण में मिल कर वर्तमान के कायस्थ और वैद्य समुदाय में मिल गए।
ब्राह्मण काल में –कायस्थ को निरपेक्ष बहीखाता लिखने का दायित्व सौंपा गया जो 7 शदी के आगे अपरिवर्तित रहा।
12 शदी में राजतरंगनी के लेखक -कल्हण ने लिखा है -कश्मीर के विभिन्न राजवंशों में कायस्थ प्रधानमंत्री का पद भार वहन किया है।
13 शदी में कायस्थ महत्वपूर्ण पदों के निर्णायक कार्यकारी थे। अब यह दो समुदाय में विभक्त हो गया – कर्ण शब्द समुदाय की उत्पति इसी शदी में हुआ।
अबुल फैज़ल इब्न मुबारक ने लिखा है — सम्राट अकबर का प्रधानमन्त्री कायस्थ पाल साम्राज्य का शाशक था।
4 शदी में गुप्त साम्राज्य आरम्भ हुआ। बंगाल में उपनिवेश का सुनियोजन हुआ। इंडो -आर्यन कायस्थ और ब्राह्मण को प्रथम स्थान मिला। गुप्त काल में कायस्थों को राज्य मामले का प्रबंधक बनाया गया।
मध्यकालीन भारत—उत्तर भारत के मुग़ल दरबार में सरकारी भाषा बन गया। कुछ इस्लाम बन गए तो कुछ मुस्लिम कायस्थ। मुग़ल दरबार का वित् मंत्री -नवरत्न में एक राजा टोडरमल भी थे। जिन्होंने मुग़ल राजस्व को नियमित किया।
मुस्लिम शासन काल में कायस्थ जमींदार थे। मुस्लिम शासन काल से प्रमाणित होता है की कायस्थ गवर्नर , प्रधानमंत्री और कोषालय अधिकारी के लिए योग्यवान प्रतिष्ठापक थे।
अपने बुलंद चरित्र के कारण मुस्लिम सुल्तनत काल में बहुत से बंगाली कायस्थ जमींदार और जागीरदार थे।
अबू अल फैज़ल के अनुसार बहुत से हिन्दू जमींदार बंगाली कायस्थ थे।
17 शदी में मुग़ल वंश से स्वतंत्रता घोषित करने वाले जेस्सोर का महाराजा प्रतापादित्य पहले कायस्थ थे।
ब्रिटिश शासन काल में भी लगातार लोक प्रशासन , सर्वोत्तम कार्यकारी व न्यायिक अधिकारी की भूमिका में थे।
ब्रिटिश के संपर्क में आने के बाद भारत के अन्य भाग के कायस्थ -व्यापार में लिप्त हो गए। 1911,में ब्राह्मण और कायस्थ भारतीय मिल, माइंस और फैक्ट्री के 40% का मालिक हो गए।
भारतीय स्वतन्त्रता और धार्मिक क्षेत्र की भूमिका में कुछ महत्वपूर्ण व्यक्ति –स्वामी विवेकानंद,श्री अरविंदो और महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस।
आधुनिक भारत : -बंगाल ,नेपाल ,उत्तर भारत ,पूर्व भारत और मध्य भारत में पाए जाते हैं । बर्तमान में कायस्थों 8-10 करोड़ की अनुमानित संख्या है। स्वतन्त्रता से लेकर और बाद में कायस्थों की प्रमुख भूमिका रही है। प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ,द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री।
कायस्थ को उच्च वर्गों के रूप में समझा जाता है। इसके कारण सरकारी सहायता से वंचित और उपेक्षित महूसस कर रहे है ।
वर्ण व्यवस्था
विभिन्न विचारों के आधार पर क्षत्रिय वर्ग का उच्च शिक्षित और विद्वान् श्रेणी है।
अन्य मान्यता के अनुसार कायस्थ ब्राह्मण से छोटा और क्षत्रिय से बड़ा है।
बंगाल , कायस्थ और ब्राह्मण सबसे बड़े जाति से सम्मानित है। मुस्लिम विजय के बाद अवशेषों पर कायस्थ वंश –सेन ,पाल , चंद्र और वर्मन का शासन था। इस तरह स्थानापन क्षेत्रीय या वीरों का वर्ग हुआ।
महाराष्ट्र में चन्द्रसेनिया कायस्थ प्रभु ने आरोप लगाया है की इस तरह क्षेत्रीय वंश का हैहय वंश ने शासन किया।
हर्बर्ट होप रिसले के परिकल्पना के आधार पर ब्रिटिश शासन काल में ब्रिटिश कोर्ट ने फैसला सुनाया की कायस्थ शूद्र है।
तथापि बंगाल ,बॉम्बे और संयुक्त राज्य के कायस्थों ने चुनौती दिया।
किताबों ,पम्फ्लेट्स ,परिवारिक इतिहास और जर्नल के माध्यम से सरकार पर क्षेत्रीय बनाने का दबाव डाला।
1890 में इलाहाबाद के ब्रिटिश कोर्ट ने फैसला सुनाया की कायस्थ क्षेत्रीय थे।
1927 में ब्रिटिश हाई कोर्ट पटना ने फैसला दिया की कायस्थ बड़े वर्ग है।
1931में ब्रिटिश जनगणना में कायस्थ को उच्च वर्गों में रखा गया-(क्षेत्रीय और ब्राह्मण-दो जातियों से उत्पति )
———-(इंटरनेट विकिपीडिया से हिंदी अनुवाद) ———