कांग्रेस सरकारों के समक्ष चुनौतियों का पहाड़ —— सुरेश हिन्दुस्थानी

कांग्रेस सरकारों के समक्ष चुनौतियों का पहाड़ —— सुरेश हिन्दुस्थानी

मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तित होकर अब कांग्रेस के हाथ में पहुंच गई है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के नेताओं ने अपने घोषणा पत्र में जिस प्रकार से वादों की झड़ी लगाई है, वह एक प्रकार से असंभव सा ही दिखाई देता है। यह बात सही है कि जनता सरकार से अपेक्षा करती ही है, लेकिन जनता की समस्त समस्याओं का समाधान करना किसी के लिए भी संभव नहीं है। क्योंकि समस्याएं प्रतिदिन उत्पन्न होती हैं। बढ़ती ही जाती हैं।

कांग्रेस के चुनाव प्रचार के दौरान जिस प्रकार से लोक लुभावने सब्जबाग दिखाए हैं। वही भविष्य में कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनने वाले हैं। इसका कारण यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के अंदरुनी हालात पूरी तरह से ठीक नहीं हैं। हो सकता है कि मुख्यमंत्री के लिए चली खींचतान आगे भी दिखाई दे। इसलिए कांग्रेस के समक्ष सबसे बड़ी विसंगति यह है कि वह अपना घर संभाले या जनता की अपेक्षाओं को पूरा करे।

कांग्रेस में मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर किस प्रकार की खींचा तानी चली, यह हम सभी ने देखा है। राजनीतिक दृष्टि से अध्ययन करें तो यही दिखाई देता है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस को पूर्ण बहुत नहीं मिला, उसे बैसाखी का सहारा लेना पड़ा। उसके बाद भी मुख्यमंत्री चयन में कांग्रेस नेतृत्व को खासी मेहनत करनी पड़ी। अंतत: ऊपर से कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया है। इसी प्रकार राजस्थान में धमाचौकड़ी के बाद अशोक गहलौत बना दिए गए हैं। छत्तीसगढ़ में पूर्ण बहुमत होने के बाद भी कांग्रेस को मुख्यमंत्री का चयन करने में पसीने आ रहे हैं, फिलहाल संकेत यही हें कि छत्तीसगढ़ के एक मात्र कांग्रेसी संासद ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री पद के लिए चयनित किया गया है। बाकी तीन कांगे्रस नेताओं को निराशा हाथ लगी है। यानी अंदरखाने में बहुत कुछ चल रहा है।

कांग्रेस में इस प्रकार के दृश्य उपस्थित होने से यह तो संकेत मिलता ही है कि कांग्रेस के अंदर ही कई नेताओं के अपने राजनीतिक दल दिखाई दे रहे हैं। जहां तक राजस्थान की बात है तो पिछले परिणाम आने के दो दिन तक पूरे देश ने देखा था कि मुख्यमंत्री के रुप में कांग्रेस के युवा चेहरे सचिन पायलट के समर्थकों ने ऐसा प्रदर्शन किया, जैसा सत्ता धारी दल के विरोध में किया जाता है, लेकिन यह प्रदर्शन सत्ता बनाने के लिए किया जा रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सचिन पायलट के समर्थन में प्रदर्शन और तोड़-फोड़ की गई। कुछ इसी प्रकार की स्थिति मध्यप्रदेश में भी दिखाई दी, जिसमें सिंधिया समर्थकों ने जमकर नारेबाजी की।

लोकतांत्रिक भारत देश में इस प्रकार का आंदोलन निश्चित रुप से लोकतंत्र के लिए गहरे अवरोध उत्पन्न करने का ही काम करेगा। प्रश्न यह भी है कि जिस कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र की दुहाई जाती रही है, वह आज पूरी तरह से अलोकतांत्रिक प्रमाणित हो रहा है। मुख्यमंत्री चयन के लिए सबसे अच्छा और संवैधानिक विकल्प यही है कि जो विधायक चुन कर आए हैं, वह अपने नेता का चयन करें।

बहुमत वाली पार्टी के विधायक दल का नेता ही मुख्यमंत्री बनने का संवैधानिक अधिकार रखता है, लेकिन कांग्रेस में खेल ही दूसरे प्रकार का होता है। यहां ऊपर से नेता का नाम तय होकर विधायकों के सामने नाम घोषित किया जाता है। क्या यही लोकतंत्र है? यकीनन नहीं। पिछले तीन दिनों से राजस्थान में सड़कों पर लोकतंत्र दिखाई दे रहा है। ऐसे में यह लम्बे समय तक सस्पेंस बना रहा कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री कौन बनता है? इस तरह मुख्यमंत्री पद को लेकर चार दिन से चल रही खींचतान तो फिलहाल समाप्त हो गई है।

तीनों प्रदेशों में कांग्रेस को मुख्यमंत्री चयन करने में जिस स्थिति का सामना करना पड़ा, वह स्थिति कांगे्रस के भविष्य के लिए खतरे की घंटी ही कही जाएगी। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भले ही बन जाएं, लेकिन नए मुखिया की आगे की राह आसान नहीं है। उन्हें जनता की अपेक्षाओं और उम्मीदों पर खरा उतरना होगा। उन वादों को पूरा करना होगा, जो चुनाव के समय जनता से किए गए थे। सबसे पहले किसानों के कर्ज माफी का वादा पूरा करना होगा, जिसके लिए विपक्ष पहले दिन से हमलावर बना हुआ है। इसी प्रकार बिजली बिल की दर, बेरोजगारी पेंशन सहित ऐसे कई वादे हैं, जो कांग्रेस के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा करने के लिए काफी लग रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने अपने लिए स्वयं ही परेशानी का बीज बोया है। यह बीज अंकुरित भी होगा और बड़ा वृक्ष भी बनेगा। ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने वादों के रुप में हाथी पाल लिया है। जिसे संभालने में ही कांग्रेस को कठोर परिश्रम करना होगा।

छत्तीसगढ़ को छोड़ दिया जाए तो दो राज्यों के चुनाव परिणामों में कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ा। कांग्रेस की यह विजय आसान नहीं कही जा सकती। यह चुनाव परिणाम कांग्रेस को स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि लोकसभा चुनाव की राह आसान नहीं है। जिस प्रकार से विपक्ष नरेन्द्र मोदी की सरकार को हटाने के सपने देख रहा है, वह इतना आसान नहीं है। कारण मध्यप्रदेश और राजस्थान में विपक्ष बहुत ही मजबूत है। जो नई सरकार को इस बात के लिए आगाह करती रहेगी कि जनता से किए गए वादों को जल्दी पूरा किया जाए।

पांच विधानसभा चुनाव के नतीजों का भी यही संदेश है कि अगले साल होने वाले आम चुनावों को लेकर कोई आश्वस्त नहीं रहे, पलड़ा अब किसी भी तरफ झुक सकता है। जनता क्या फैसला करने वाली है, इसका आभास इस बार भी उसने किसी को नहीं दिया। राजस्थान के बारे में न जाने कब से यह कहा जा रहा था कि वहां कांग्रेस सबको चारों खाने चित कर देगी, लेकिन जब रुझान आने शुरू हुए तो कांग्रेस एक-एक सीट के लिए संघर्ष करती दिखाई दी। चुनाव की कहानी में इतना ट्विस्ट डालने का श्रेय अगर किसी को है तो जनता को है, जिसने अंत तक अपने पत्ते नहीं खोले।

चुनाव नतीजों ने यह बता दिया है कि ऐसे महत्वपूर्ण मौकों पर जनता का फैसला उन तमाम अनुष्ठानों से निष्प्रभावित रहता है, जो अक्सर चुनाव जीतने के लिए बड़े जोर-शोर से किए जाते हैं। उस पर न तो कोई जादू बहुत दिन तक चल पाता है, न कोई सम्मोहन। चुनावी भाषण, नारे और वादे भी एक हद से ज्यादा असर नहीं कर पाते।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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