- April 20, 2022
एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए उत्तरी राज्यों का बेहतर प्रदर्शन ज़रूरी
लखनऊ (निशांत कुमार)—- जलवायु परिवर्तन के मौजूदा और भविष्य में उत्पन्न होने वाले डरावने नतीजों को रोकने के लिये फौरन सार्थक कदम उठाने में भारत के खासकर हिन्दी हृदयस्थल कहे जाने वाले क्षेत्र में स्थित राज्यों की प्रगति काफी असमानता भरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण के मामले में खासकर उत्तर भारत के राज्यों को और बेहतर प्रदर्शन करने की जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल यानी आईपीसीसी ने चार खंडो वाली अपनी छठी असेसमेंट रिपोर्ट का तीसरा हिस्सा अप्रैल के पहले सप्ताह में जारी किया है। इसे इस बात की सबसे व्यापक समीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है कि कैसे दुनिया जलवायु परिवर्तन की रोकथाम कर सकती है। आईपीसीसी के इतिहास में पहली बार किसी रिपोर्ट में प्रौद्योगिकीय नवोन्मेष और मांग पक्षीय से संबंधित अध्ययन को शामिल किया गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की जोखिमशीलता के मद्देनजर इस बात को समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत के ऊर्जा रूपांतरण और डीकार्बोनाइजेशन उपायों से संबंधित कौन-कौन सी सिफारिशें की गई हैं। क्लाइमेट ट्रेंड्स ने देश के हिंदी हृदय स्थल कहे जाने वाले राज्यों की स्थिति को लेकर विशेषज्ञों द्वारा विचार-विमर्श के लिए बुधवार को एक वेबिनार का आयोजन किया।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के असोसिएट फेलो पार्थ भाटिया ने इस अवसर पर कहा कि आईपीसीसी रिपोर्ट में भारत और खासकर हिंदी हृदयस्थल वाले राज्यों में ऊर्जा रूपांतरण से जुड़े प्रमुख सवाल उठाए गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम कैसे अपने ऊर्जा क्षेत्र को भी कार्बनमुक्त करते हैं। अपने बढ़ रहे शहरों और नगरों का डिजाइन कैसे तैयार करते हैं और कैसे मांग के पैटर्न को सतत तरीके से आकार देते हैं। साथ ही हम कैसे ऊर्जा रूपांतरण में न्याय और समानता को सुनिश्चित करते हैं और भारत का विकास कैसे जलवायु के प्रति सतत हो सकता है और भारत कैसे सतत विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा कि हमारे शहर, उनमें रहने वाले लोग और समूह जलवायु एक्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। देश के 826 शहरों और 103 क्षेत्रों में शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य अपनाये जा चुके हैं। यह अच्छी बात है कि उत्सर्जन में जल्द कमी लाये जाने के लिए विकल्प मौजूद हैं। हालांकि वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये वर्ष 2050 तक कोयले के इस्तेमाल में 90%, तेल के प्रयोग में 25% और गैस के इस्तेमाल में 40% तक गिरावट करनी होगी। इसके अलावा वर्ष 2050 तक संपूर्ण बिजली का उत्पादन कार्बनरहित या फिर बहुत कम कार्बन वाले जीवाश्म ईंधन से करना होगा।
पार्थ ने जलवायु परिवर्तन की मौजूदा स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि वर्तमान में प्रदूषणकारी तत्वों का उत्सर्जन सर्वोच्च स्तर पर है। हमने ग्लोबल कार्बन बजट का ज्यादातर हिस्सा 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बने रहने के 50-50 प्रतिशत अवसरों पर ही खर्च कर दिया है। दुनिया पहले ही 1.1 डिग्री सेल्सियस के करीब गर्म हो चुकी है। नतीजतन 3.3 से 3.6 मिलियन लोग जलवायु परिवर्तन की उच्च भेद्यता वाले हॉटस्पॉट में रहने को मजबूर हैं। इसके साथ ही मौसम की चरम स्थितियां भी लगातार बढ़ रही हैं। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां विकास संबंधी मौजूदा चुनौतियों को और भी बढ़ा रही हैं। जलवायु परिवर्तन सिर्फ वातावरण से जुड़ा हुआ मामला नहीं है बल्कि यह हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर भी बुरा असर डाल रहा है। अगर हमने सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन न्यूनीकरण के लिए फौरन ठोस कदम नहीं उठाए तो हम खुद तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोकने में नाकाम हो जाएंगे।
एम्बर में सीनियर इलेक्ट्रिसिटी पॉलिसी एनालिस्ट आदित्य लोल्ला ने कहा कि उत्तर भारत के राज्यों की बात करें तो अक्षय ऊर्जा रूपांतरण के मामले में उनका प्रदर्शन अलग-अलग है। जहां कुछ राज्यों का प्रदर्शन अच्छा है, वहीं कुछ का बहुत ही खराब है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश की तुलना करें तो राजस्थान अभी 14 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन कर रहा है जबकि उत्तर प्रदेश सिर्फ 4 गीगावॉट पर ही अटका हुआ है। उत्तर प्रदेश की 90% बिजली कोयले से ही आती है। अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण की बात करें तो उत्तर भारत के कई राज्य उसमें भी काफी पीछे चल रहे हैं। महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा बिजली की मांग है। उत्तर प्रदेश में कोयले पर निर्भरता बहुत ज्यादा है इसलिए वहां पर कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करने की बात नहीं सोची जा सकती। अगले 10 साल में कोयले पर ही निर्भरता रहेगी क्योंकि कोई अक्षय ऊर्जा का उत्पादन उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत में अब ऐसी स्थिति आ गई है कि हमें प्रदूषणकारी तत्वों का उत्सर्जन भी कम करना है और विकास की रफ्तार भी बनाए रखनी है। अभी हालात यह हैं कि हम मौजूदा ढर्रे पर चलकर आगे नहीं बढ़ सकते क्योंकि तब हालात बिगड़ जाएंगे। भारत में बिजली की मांग भी आने वाले समय में बहुत तेजी से बढ़ने वाली है। हम उसे कैसे पूरा करेंगे, इस पर काम करने की जरूरत है। अक्षय ऊर्जा एक किफायती विकल्प जरूर है लेकिन इस पर पूरी तरह से निर्भरता रातों-रात नहीं हो सकती।
झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर एसके समदर्शी ने झारखंड में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों का जिक्र करते हुए कहा कि इस राज्य ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में अब तक बहुत निराशाजनक प्रदर्शन किया है। मगर मौजूदा स्थिति यह है कि झारखंड अगले 5 वर्षों के अंदर 20 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की योजना बना रहा है। इसके अलावा यह राज्य ऊर्जा संरक्षण से संबंधित एक नीति भी अपनाने जा रहा है। देश का 27% कोयला उत्पादन झारखंड में ही होता है मगर एक अच्छी बात यह है कि झारखंड अब कोल बेड मिथेन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह एक ऐसी प्रौद्योगिकी है जिससे ज्यादा प्रदूषण नहीं होता।
पर्यावरण वैज्ञानिक एवं संचारक डॉक्टर सीमा जावेद ने आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि रिपोर्ट से बताती है कि दुनिया जलवायु परिवर्तन से होने वाली तबाही को कैसे रोक सकती है और हमें यह भी बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिए दुनिया को 2030 तक अपने कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 45% तक कम करना होगा। साथ ही कोयले पर आधारित बिजली को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की जरूरत है, तभी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। अगर हमने ऐसा नहीं किया तो हम इस दुनिया को तबाही से बचाने में नाकाम हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक लगातार इस बात को कह रहे हैं कि पिछले 2000 सालों की तुलना में पिछले एक दशक में तापमान बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसकी वजह से असहनीय गर्मी उत्पन्न हो रही है। कोविड-19 महामारी के दौरान इसमें कमी आई थी लेकिन अब फिर से वह पुराने स्तर पर पहुंच चुका है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की वजह से झटका लगा है मगर फिर भी दुनिया के बहुत से देश ऐसे हैं जो अक्षय ऊर्जा को अपनाने के लिए बहुत तेजी से कदम उठा रहे हैं। हमें जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुत सी ऐसी प्रौद्योगिकियों को अपनाना होगा जो अभी नवजात हैं।
फिनलैंड की लप्पीनरांता-लहती यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलॉजी में शोधकर्ता मनीष राम ने आईपीसीसी मिटिगेशन रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा रूपांतरण के विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा आईपीसीसी मिटिगेशन रिपोर्ट में विद्युतीकरण को तेजी देने के लिये सौर ऊर्जा तथा अन्य प्रदूषणमुक्त प्रौद्योगिकियों को अपनाने की बात कही गयी है। साथ ही c1-c4 सिनेरियो को लेकर बहुत बड़े पैमाने पर वैश्विक प्रयास की आवश्यकता भी बतायी गयी है।
उन्होंने कहा कि भारत के राज्यों में ऊर्जा रूपांतरण का सवाल है तो रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सवाल उठाये गये हैं। जैसे कि, दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश को 21वीं सदी में कैसे सस्टेनेबल एनर्जी की तरफ रूपांतरित किया जाए, भारत के राज्यों में बहुत बड़े पैमाने पर असमानता है। उत्तर भारत के अनेक राज्य इस रूपांतरण के मामले में पिछड़े हुए हैं। जहां तक दुनिया के सबसे बड़े मेट्रोपॉलिटन एरिया को इस सदी के मध्य तक ऊर्जा के लिहाज से सतत बनाने की संभावनाओं का सवाल है तो इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विद्युतीकरण के माध्यम से ऊर्जा आपूर्ति में सोलर पीवी की बहुत महत्वपूर्ण और मजबूत भूमिका है।