- September 19, 2015
गृह मंत्रालय : एनएचआरसी-एसएचआरसी सम्मेलन : हायतौबा मचाने वाले निहित स्वार्थी व्यक्तियों और संगठनों की निंदा :- केन्द्रीय गृह मंत्री
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि यहां तक कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी सवाल उठाये जाते हैं, जब देश के कानून के अनुसार यथोचित प्रक्रिया के बाद अपीलीय न्यायालय द्वारा सजा दी जाती है। उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति किस प्रकार किसी के अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का दावा कर सकता है, जबकि उन्होंने दूसरों के मानवाधिकारों रौंद कर बंदूक उठा ली है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हमारे तंत्र में कमियां हैं और न्यायिक प्रक्रिया में देरी के कारण लोगों को सलाखों के पीछे उतने समय तक रहना पड़ता है, जो उनके द्वारा किए गए अपराध के लिए अधिकतम सजा की निर्धारित अवधि की तुलना में अधिक हो जाता है। श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह गंभीर चिन्ता का विषय है और वह इसके समाधान के लिए प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए राज्य सरकारों को भी आवश्यक निर्देश दिए गए हैं।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि मानवाधिकार हमारी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और भारतीय संतों ने “सर्वे भवंतु सुखिनः” की अवधारणा पर जोर दिया है। श्री सिंह ने कहा कि मानवाधिकार पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अस्तित्व में आने से भी पहले भारतीय संस्कृति न केवल मानवाधिकारों से, बल्कि पशुओं के अधिकारों से भी अवगत थी। उन्होंने यह भी कहा कि मानव तस्करी एक गंभीर चिन्ता का विषय है और मानव तस्करी के शिकारों को उनके परिवारों के साथ फिर से जोड़ने, विदेश से वापस लाने और पुनर्वासित करने के लिए एक विस्तृत मानदण्ड आधारित प्रक्रिया होनी चाहिए।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं की स्वायत्तता कायम रहनी चाहिए। श्री सिंह ने कहा कि गृह मंत्रालय सम्मेलन की चर्चाओं के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सुझावों की ओर ध्यान देते हुए कार्रवाई के लिए बहुमूल्य सुझावों पर विचार करेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों के बीच समन्वय और सहयोग को मजबूत किया जाना चाहिए।
अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सायरियाक जोसेफ ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने की मांग की, ताकि विभिनन मानवाधिकार आयोगों के नियमों को केन्द्र और राज्य सरकारों पर बाध्यकारी बनाया जा सके। उन्होंने ऐसे राज्यों और क्षेत्रों में खास रूप में मानवाधिकारों का प्रावधान बनाने की मांग की, जहां सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (एएफएसपीए) लागू है और इसके कारण ऐसे क्षेत्रों में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम निरर्थक साबित हो जाता है।