- March 14, 2017
उपभोक्ता दिवस आज– उपभोक्ता का ही हो रहा उपभोग
आकांक्षा सक्सेना —- पता नहीं क्यों हर अच्छे कार्य और दिवस की शुरुआत आंदोलन से ही हुई, चाहे वो महिला दिवस हो या उपभोक्ता दिवस !!
सबसे पहले उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत अमेरिका के रूल्फ नाडेर के नेतृत्व में हुई। 1862 को अमेरिकी कांग्रेस में जॉन एफ कॉनेडी द्वारा उपभेक्ता संरक्षण विधेयक पास किया गया फलस्वरूप 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस की शुरुआत हुई ।
अपने देश में उपभोक्ता हितों के रक्षा हेतु गोविन्द दास की अध्यक्षता में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक का मसौदा अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने तैयार किया। जिसका उद्देश्य उपभोक्ता के हितों की रक्षा व शोषण से बचाना था । उनको अपने अधिकारों और जिम्मेदारी हेतु जागरूक बनाना था , इसी कड़ी में बीएम जोशी द्वारा एक स्वंयसेवी संगठन के रूप में 1974 पुणे में ग्राहक पंचायत की स्थापना की गई जिसके फलस्वरूप उपभोक्ता कल्याण परिषद का गठन हुआ ।
9 दिसम्बर 1896, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पारित हुआ। अत: आम उपभोक्ता के लिये सरल और सुगम बनाने हेतु संरक्षण नियम को 1987 में संशोधित किया गया जिसे 5 मार्च 2004 को अधिसूचित किया गया । फलस्वरूप भारत सरकार ने 24 दिसम्बर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस घोषित किया साथ ही अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस सन् 2000 में पूरे भारत में पहली बार मनाया गया ।
प्रतिवर्ष 15 मार्च के दिन को हम विश्व उपभोक्ता दिवस के रूप मनाते हैं लेकिन सच पूछो तो हम आज भी सावधानी नहीं बरतते हैं, जब भी सोने के आभूषण खरीदने जाते हैं तो आभूषणों की हॉल मार्किंग, उत्पादों पर भारतीय मानक, आईएसआई का निशान और खरीददारी करते समय उत्पाद का अधिकतम खुदरा मूल्य, एमआरपी और उत्पाद समाप्ति की तारीख भी देखने से परहेज करते हैं । यह हमारी बड़ी भूल है । हमें स्वयं के साथ-साथ दुकानदार को भी जागरूक करना होगा ।
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक के तहत दोषी पाये जाने पर एक माह से तीन माह तक की कैद और 10,000 रूपये तक का जुर्माने, धारा 27 के तहत कारावास और धारा 25 के तहत कुर्की का भी प्रावधान है ।
देश में इतने मजबूत कानून के बावजूद भी उपभोक्ता रोज छले जाने पर विवश है। देश में लगाये गये बिजली के इलेक्ट्रोनिक मीटर के तेज भागने के कारण बन्द पड़े घर में बिजली का बिल दो हजार रुपया आ रहा है । सरकार को ऐसी घटिया सिस्टम से इस तरह के शोषण से उपभोक्ता को बचाने के लिए कदम उठाना होगा।
आज दुकानों पर खुले चाय बिक रहे उनमें इतना प्रिजर्वेटिव होता है कि लोगों को भयाभय अलसर हो रहा है। इन सभी चीजों की जाँच क्यों नहीं होती ?
आज अरहर की दाल 200 रूपये मंहगी होने के बावजूद शुद्ध नहीं है , उसमें चटरी और मटरी की दाल मिला दी जाती है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नही है, सरसों का तेल डालडे की तरह जम रहा हो और रिफाईण्ड से सब्जी में स्वाद नहीं तो इस अवस्था में कौन जिम्मेवार है ? इसके लिए खाद्य और आपूर्ति विभाग को पूर्णरूपेण जिम्मेवार ठहराकर सजा देने चाहिए या नहीं ?
दवाई लेने जाओ तो पूछते हैं कि एक रूपये वाली गोली दूँ या पाँच वाली, नकली दवाओं का बाजार भरा पड़ा है, खाँसी का सिरफ लेने जाओ तो वह किसी नशे से कम नहीं, आदमी को आदत हो जाती है, पेट दर्द, कब्ज और भूख बढ़ाने वाले ना जाने कितने ही नकली उत्पाद हमको दीमक की तरह चट कर रही है ।
देखिये ! लम्बाई बढ़ाने वाले, मोटापा कम करने वाले प्रोडक्ट बाजार में हैं जो केवल उपभोक्ता को भंयकर बीमारियों की चपेट में ले रहें हैं । प्राकृतिक सौन्दर्य और स्वस्थ बाल को खराब करने वाले कितने नकली लोशन बाजार में पांव जमाये हुए हैं लेकिन खुद प्रचार करने वालों के पति गंजे है।
ट्रेन में जो चाय बिकती है,खुले बाल्टियों में चने बिकते हैं,प्रश्न है वह कितना स्वच्छ और सुरक्षित हैं?
ठेलों पर जो भी खाने- पीने की वस्तुयें बिकती हैं, उन पर ना जाने कितने कार्बनिक प्रदूषित कीड़े जमे होते हैं।
अगर सरकार की तरफ से पर्यावरण की दृष्टि से पारदर्शी कागज उपलब्ध करवाई जाय, जिसके ऊपर बिक्रय सामग्रियों नाम लिखा हो, इसमें उपभोक्ता संरक्षित होने की संभावना भी है, इसी विधि से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छ और सुरक्षित भारत का सपना पूरा हो सकेगा।
अगर सरकार इसे स्कूलों और कॉलेजों की किताबों में एक विषय के तौर पर जोड़ दे तो देश का हर एक बच्चा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकेगा ।
अगर देश में उपभोक्ताहित के लिये टोल फ्री नम्बर 1800-11-14000 डायल करने की व्यवस्था हो तो प्रत्येक उपभोक्ता अपनी समस्याओं का उचित समाधान पा सकता है ।
अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस तभी सफल माना जायेगा, जब हम भी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभायें।
आइये खुद भी जागरूक बने और लोगों को भी जागरूक बनायें।
(ब्लॉगर- समाज और हम)
विकास पालीवाल
नवसंचार समाचार , फिरोजाबाद