आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति में शोध-कार्यों को बढ़ावा देने की जरूरत-राज्यपाल

आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति में शोध-कार्यों को बढ़ावा देने की जरूरत-राज्यपाल

पटना——– ‘‘हमारे जीवन पद्धति में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष-चार पुरूषार्थांे का वर्णन है, इन पुरूषार्थ चतुष्टयों की प्राप्ति आरोग्यता पर ही आधारित है। यह आरोग्यता आयुर्वेद से ही संभव है। वर्तमान समय में उपलब्ध चिकित्सा-पद्धतियों में आज भी आयुर्वेद अद्वितीय एवं उत्कृष्ट है।

आज आयुर्वेद की स्वीकार्यता भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी बढ़ती जा रही है। जरूरी है कि आयुर्वेद की धरती भारत में एक बार पुनः आयुर्वेद का पुनरोदय हो।’’-उक्त उद्गार, महामहिम राज्यपाल श्री लाल जी टडंन ने श्यामजी मंदिर परिसर (बाजार समिति) स्थित सभागार में ‘विश्व आयुर्वेद परिषद्’, बिहार इकाई द्वारा आयोजित चर्म-रोग पर आधारित दो-दिवसीय सेमिनार का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये।

राज्यपाल ने कहा कि यह प्रथम बार संभव हुआ है कि भारत में अलग से आयुष मंत्रालय की स्थापना की गयी है एवं आयुष मंत्री बनाये गये हैं। साथ ही दिल्ली में आयुर्वेद का अखिल भारतीय संस्थान प्रारंभ किया गया है। भारतीय प्रधानमंत्री की पहल पर ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ की भी घोषणा हुई है।

श्री टंडन ने कहा कि आज संपूर्ण विश्व में दोषपूर्ण जीवन-शैली के कारण मनुष्य विविध
प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता जा रहा है। जैसे-जैसे हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, विकृतियाँ हमारे निकट आती जा रही हैं। इसीलिए आवश्यक है कि हम आयुर्वेद द्वारा बतायी गई जीवन-शैली का पालन करें। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के विकास को नई पीढ़ी को एक चुनौती के रूप में लेते हुए हर संभव प्रयास करना चाहिए।

राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि कीे देवता के रूप में पूजा होती है।
उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के सुश्रुत को सर्जरी का जनक (Father of Surgery) होने का गौरव प्राप्त है।

राज्यपाल ने कहा कि जब हम गाँधीजी का 150वाँ जयंती वर्ष मना रहे हैं, तब यह जरूरी
है कि हम उनके द्वारा बताये गये प्राकृतिक चिकित्सा और स्वदेशी भावना के मार्ग पर चलने का संकल्प लें।

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद भारतीय संस्कृति का मेरूदंड है। राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेदिक रसायन एवं भस्मादि दवाएँ काफी महँगी हैं, परन्तु प्राकृतिक जड़ी-बूटियों की काढा़ आदि औषधियाँ आम गरीबों की भी सहज पहुँच में हैं, जिनके उपयोग से गंभीर असाध्य बीमारियों से भी मुक्ति मिल जाती है।

राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेद में नाडी़ देखकर रोगों के जड़-मलू को पहचानने वाले वैद्य रहे हैं। इनकी संख्या आज भले कम है, परन्तु गंभीर अध्ययन एवं शोध के जरिये आयुर्वेद को आधुनिक परिस्थितियांे के अनुरूप विकसित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चर्मरोगों में आयुर्वेदिक दवाएँ ‘रामबाण’-सी काम करती हैं।

कार्यक्रम में बोलते हुए स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पाण्डेय ने कहा कि राज्य में आयुर्वेदिक
काॅलेजों के विकास के लिए हरसंभव प्रयास किये जायेंगे। कार्यक्रम में विधायक श्री अरूण कुमार सिन्हा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

कार्यक्रम में राज्यपाल ने ‘स्मारिका’ भी लोकार्पित की तथा स्व॰ वैद्य रमाकांत पाठक की
स्मृति में आयोजित ‘निबंध-प्रतियोगिता’ के सफल प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया।
कार्यक्रम का संचालन आयुर्वेद चिकित्सक श्री शिवजतन ठाकुर ने किया। इस अवसर पर
विश्व आयुर्वेद परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ॰ बी॰एम॰ गुप्ता, परिषद् के राज्य अध्यक्ष डाॅ॰ आर॰पी॰ उपाध्याय, डाॅ॰ अशोक कुमार दूबे, डाॅ॰ एम॰एम॰ मिश्रा तथा डाॅ॰ प्रजापति त्रिपाठी आदि भी उपस्थित थे।

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