- March 8, 2015
आधी आबादी को अपना अधिकार कब मिलेगा ?- डॉ प्रियदर्शिनी अग्निहोत्री ,प्रोफेसर (भोपाल, म०प्र०)
देश को स्वतंत्र हुए 6 दशक बीत चुके हैं और देश ने परिवर्तन के कई नये आयामो को स्थापित किया है। एक साधारण परिवार की महिला होने के नाते मैं गौरवान्वित महसूस कर सकतीं हूँ की नागरिकों को मिले समान अधिकारों के साथ ही भारतीय महिलाओं को भी शिक्षा, संपत्ति और विरासत में बराबरी का अधिकार है।
महिलाओं के लिए देश के राजनीतिक मानचित्र पर अभी भी बहुत कुछ नहीं बदला है। राजनीति में बराबरी के अधिकार से वंचित हैं। मेरा मानना है कि भारतीय राजनीति में महिला सशक्तिकरण को लेकर गौरवान्वित महसूस करने में अभी भी लंबे समय तक इंतजार करना होगा।
आधी आबादी को अपना अधिकार कब मिलेगा ? महिलाओं की राजनीति में भागीदारी के दावे तो सभी दलों ने किए हैं, पर क्या संसद और विधानसभाओं में उचित प्रतिनिधितव दिया जाएगा ? परिवर्तन के प्रति जागरूकता दिखाते हुए क्या राजनीतिक दल लैंगिक विषयों के प्रति संवेदनशील होंगे ? अगर वर्तमान परिपेक्ष्य में बात की जाए तो तरक्की का कोई भी ऐसा चित्र अछूता नहीं है जहाँ महिलाओं ने अपनी योग्यता को सफलता के साथ सिद्ध न किया हो।
राजनीतिक परिदृश्य में देखा जाए तो वर्तमान में संसद में महिलाओं को 12% प्रतिनिधित्व भी बमुश्किल मिला है। मतलब 15वीं लोकसभा में कुल 59 महिलाएं है। जहां वर्तमान चुनाव में 8% महिलाएं थीं। सभी राष्ट्रीय और चेरेटी दल खुद को एक तिहाई महिला आरक्षण विधेयक का पैरोकार बता कर सिफ तालियां ही बटोरते है और सदन में इस बिल पर नूरा कुश्ती खेलते नजर आते हैं।
मित्रों ! इसे मैं दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए शर्मनाक ही कहूँगी कि संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले एक तिहाई सदस्य आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं जबकि आधी आबादी प्रतिनिधि्त्व के इंतजार में ही है। यदि संसद में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण मिल जाए तो 180 महिलाएं चुन कर आ सकती है। जो कि भारतीय राजनीति में सकारात्मक भूमिका अदा कर बदलाव ला सकती है।
मेरा मानना है कि इससे राजनीतिक शुद्धीकरण भी हो सकता है। एक सच यह भी है कि पुरुष किसी भी तरह महिलाओं को सत्ता में भागीदार नहीं बनाना चाहते। आज भी देश में महिला उम्मीदवार को अपनी योग्यता और विश्वसनियता पुरुष उम्मीदवार की तुलना में सिद्ध करनी होती है।
सभी को एक सत्य स्वीकार करना होगा कि महिलाओं को समान नागरिक अधिकार इसलिए दिए गए हैं ताकि महिलाएं किसी भी निर्णायक प्रक्रिया में महिलाओं के दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण तरीके से रख सके। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि संसद में जो महिलाएं हैं उनमें से ज्यादातर या तो राजनीतिक परिवारों से हैं या औद्योगिक घरानों से हैं जो कि धन की ताकत रखती है या फिर ग्लैमर की दुनिया से नाता रखती है।
एक साधारण परिवार की महिला होने के दायित्व को ध्यान में रखते हुए मेरे सोचने और विश्लेषण
करने का प्रयास सही है कि सभी राजनीतिक दल साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं के
राजनीतिक सशक्तिकरण को महत्व दें महिलाएं ये अपेक्षा करें की संकुचित मानसिकता का त्याग
कर सभी दल, विधायिका में महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान करें ।
इस सवाल पर मुझे तो संसद का हर सत्र रस्मी लगता है।