• November 28, 2015

असहिष्णुता का यह बवाल ,नहीं सहेगा हिन्दुस्थान – डॉ. दीपक आचार्य

असहिष्णुता का यह बवाल ,नहीं सहेगा हिन्दुस्थान – डॉ. दीपक आचार्य

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सब तरह भारी हो हल्ला है

असहिष्णुता का बोलबाला है

जिस भारत ने दुनिया को संस्कार सिखाए, सभ्यता दी और इंसानियत का पैगाम दिया।

उस भारत में असहिष्णुता की बात कहना भी बेमानी है।

कोई इसे हल्के में ले या भारीपन से, यह सरासर भारतमाता का अपमान ही है।

और हममें से ही कई लोग इस  अपमान के सहभागी होकर जाने क्या संदेश देना चाह रहे हैं।

कहाँ है असहिष्णुता, कोई तो बताए।

बार-बार चिल्लपों मचा रहे लोग और उनकी हाँ में हाँ करते हुए टर्र-टर्र करने वाले मेंढकों, रुदाली में रमे हुए रंगे सियारों को और इस नाउम्मीद भीड़ में अपना खान-पान व नाम तलाशने वाले लोमड़ों को देखिये।

क्या से क्या करने लगे हैं, कुछ न कुछ बकवास करने लगे हैं।

और जता यों रहे हैं जैसे कि भारत में असहिष्णुता का कोई बीज अचानक अंकुरित हो गया हो।

पिछले काफी दिनों से असहिष्णुता का बवाल हर तरफ फन उठा रहा है।

पढ़े-लिखे भी चिल्लाने लगे है और अनपढ़ भी। वज्रमूर्ख, आधे मूर्ख और जड़मूर्खों से लेकर होशियार और  डेढ़ होशियार सारे के सारे इन दिनों व्यस्त हो गए हैं। सभी को असहिष्णुता के नारे लगाने का  धंधा जो मिल गया है। नाम का नाम और बवाल का बवाल।

सभी को लगता है कि जैसे भारत में अचानक कोई भूकंप आ गया है।

सारी समस्याएं नदारद, पुरस्कार लौटाने की नौटंकियां बंद, समाज और देश के लिए कुछ करने की बात नहीं,  आतंकियों के खात्मे की चर्चा नहीं, और लो ये आ गया भूत असहिष्णुता का।

पता नहीं हम लोगों को क्या से क्या हो गया है। हम कहाँ जा रहे हैं, कहां ले जाए जा रहे हैं।

कुछ अरसे से असहिष्णुता उन लोगों का ब्रह्मास्त्र ही हो गया है जिन्हें पब्लिसिटी चाहिए, अपने डूबते हुए सितारों को आसमान चाहिए और गर्दिश में जा रही जिन्दगी को ताजगी।

भारतीय संस्कृति, इतिहास और परंपराओं से अनभिज्ञ, नासमझ और नुगरे लोगों का बना-बनाया सब कुछ चल पड़ा है।

हर बाजार में चर्चे आम हैं असहिष्णुता के।

सब तरफ असहिष्णुता पर चर्चाओं का बवण्डर जोरों पर है।

गांव की चौपाल से लेकर दुनिया के कोने-कोने तक इसी की चर्चा है।

हमने अपनी सारी समस्याओं, अभावों, आवश्यकताओं और बुनियादी जरूरतों को ताक में रख दिया है और पिल पड़े हैं इस शब्द पर जैसे कि पूरी दुनिया की डिक्शनरी में अब यह एक ही शब्द बचा है – असहिष्णुता।

सारे के सारे इसी के सहारे वैतरणी पार करने चले हैं।

जिधर देखो उधर असहिष्णुता शब्द को धारदार हथियार के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा है।

पता नहीं  आजकल यह सब क्यों हो रहा है।

जानकार लोग समझते हैं इसके पीछे आखिर माजरा क्या है।

बाकी सारे लोग भ्रमित होकर इस शब्द का खोल ओढ़े हुए इधर से उधर भाग रहे हैं। भीड़ का अपना चरित्र नहीं होता और रेवड़ों में शामिल भेड़ों के विचरण पर लगाम होती है उनकी जो उन्हें ले जाते हैं।

इन दिनों यही सब तो हो रहा है हमारे आस-पास, सर्वत्र।

भारत को जानें, इसकी संस्कृति और परंपराओं का अध्ययन करें, पाश्चात्यों के पिछलग्गू न बनें।

फिर देखें, अपने आप आत्मा से स्वीकारने लगेंगे कि ब्रह्माण्ड भर में भारत जैसा सहिष्णु और कोई नहीं।

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