- August 17, 2015
अपराध पीडि़तों को अधिकार दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ें -मुख्य न्यायाधीश
जयपुर – राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं राजस्थान विधिक राज्य प्राधिकरण के मुख्य संरक्षक न्यायाधिपति श्री सुनील अम्बवानी ने न्यायिक अधिकारियों, पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों का आह्वान किया कि वे अपराध पीडि़त व्यक्ति एवं बाल पीडि़तों को समय पर अधिकार दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ें जिससे उनको समाज में आत्म सम्मान के साथ जीने का हक मिल सके।
न्यायाधिपति श्री अम्बवानी रविवार को यहां दुर्गापुरा स्थित कृषि प्रबन्ध संस्थान में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण एवं यूनीसेफ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ”पीडि़त प्रतिकर योजना के प्रभावी क्रियान्वयन व बालपीडि़त” विषयक एक दिवसीय सेमीनार के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि पीडि़त प्रतिकर स्कीम से पहले परिवादी या पीडि़त के लिए पुख्ता व्यवस्था नहीं थी और पीडि़त अपने आप को ठगा सा महसूस करता था परन्तु अब पीडि़त प्रतिकर स्कीम के प्रभाव में आने के बाद पीडि़त को मुआवजा प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
न्यायाधिपति श्री अम्बवानी ने कहा कि पीडि़त प्रतिकर स्कीम की पालना की जिम्मेदारी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को सौंपी गई है। उन्होंने कहा कि स्कीम के सफल क्रियान्वयन में जज के अलावा वकीलों की भी अहम भूमिका है। श्री अम्बवानी ने विशेष रूप से बच्चों के लिए कोर्ट को ”फ्रेण्डलीÓÓ होने के लिए कहा।
राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायाधिपति श्री अजय रस्तोगी ने बताया कि अपराध के पीडि़त को राहत व पुनर्वास के लिए राजस्थान मेें वर्ष 2012 में राजस्थान पीडि़त प्रतिकर की स्कीम प्रारम्भ की गई। हाल ही में अप्रेल 2015 में इस स्कीम में संशोधन कर प्रतिकर की राशि बढ़ाई गई एवं बाल पीडि़तों व तेजाब से जलने वाली महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था की गई है।
उन्होंने पीडि़त प्रतिकर योजना में दिए गए मुआवजों के बारे में बताते हुए कहा कि इस वर्ष केवल चार महीनों में एक करोड़ रुपये से अधिक प्रतिकर दिया गया है जो सराहनीय है। जयपुर, जोधपुर व कोटा में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा छुड़ाए गए बन्धुआ मजदूरों को भी इस योजना के तहत लाभान्वित किया गया है।
न्यायाधिपति श्री रस्तोगी ने कहा कि समाज के कमजोर तबकों जैसे वरिष्ठ नागरिकों, श्रमिक, कैदी बच्चों, मानसिक रोग, आदिवासी, यौनकर्मी आदि के कल्याण के लिए विधिक सेवा संस्थाए प्रतिबद्घ है तथा योजनाबद्घ तरीके से उन्हें कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित किया जा रहा है।
यूनीसेफ की प्रतिनिधि एवं शिक्षाविद् श्रीमती सुलागना रॉय ने कहा कि बाल पीडि़तों की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए कोर्ट की प्रक्रिया के दौरान वातावरण बच्चों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि योजनाओं की जानकारी के अभाव में पीडि़तों विशेष रूप से यौन उत्पीडऩ बाल पीडि़त को मुआवजा नहीं मिल पाता है। इसलिए योजना का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए।
राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव श्री सतीश कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं प्रारम्भ की गई हैं, परन्तु अशिक्षा एवं जानकारी के अभाव में उनको पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने वरिष्ठ नागरिकों, बच्चों, बंदियों, श्रमिकों, यौन कर्मियों, मानसिक रोगियों, रोजगारजनित बीमारियों के पीडि़तों आदि के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं बनाई हैं। उन्होंने कहा कि योजनाओं के क्रियान्वयन में आ रही व्यवहारिक समस्याओं के समाधान के प्रयास किए जा रहे हैं।
सेमीनार के प्रारम्भ में मुख्य अतिथि श्री अम्बवानी ने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत की। इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों का साफा पहनाकर एवं पौधा तथा स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया। सेमीनार के दौरान राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा संचालित महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया गया।
सेमीनार में राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश श्री अजीत सिंह, समस्त जिला एवं सेशन न्यायाधीश, समस्त न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला विधि सेवा प्राधिकरण के सचिव, बार काउन्सिल के सदस्य, अधिवक्तागण, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी, यूनीसेफ के प्रतिनिधि आदि उपस्थित थे।
सेमीनार के प्रथम सत्र में पीडि़त प्रतिकर स्कीम के प्रभावी क्रियान्वयन पर चर्चा की गई। यह सत्र न्यायाधिपति डॉ. विनीत कोठारी तथा न्यायाधिपति श्री एन.एन.भण्डारी के निर्देशन में संचालित किया गया।
सेमीनार के दूसरे सत्र में विधिक सेवा के बढ़ते आयाम, बाल मैत्री पूर्ण न्याय व्यवस्था तथा लोक कल्याणकारी योजनाओं पर चर्चा की गई। यह सत्र न्यायाधिपति श्री मोहम्मद रफीक तथा न्यायाधिपति श्री महेश चन्द्र शर्मा के निर्देशन में संचालित किया गया।
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