अपराध और इंडियन पेनल कोड —- शैलेश कुमार

अपराध और इंडियन पेनल कोड  —-  शैलेश कुमार

वर्तमान मेँ अपराध को दो श्रेणियों मे बांटा गया है:

1. परंपरागत और 2. तकनीकी अपराध

हम परंपरागत अपराध से शुरू करते हैं :-

हमारी विद्यमान सामाजिक, कानूनी, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियाँ ही ऐसी हैं जो व्यक्ति को अपराधी बनने हेतु मजबूर करती हैं ।

अपराध वास्तव में क्या है ?

अनेक विचारकों ने कानूनी, गैर-कानूनी एवं सामाजिक शब्दों में अपराध को परिभाषित किया है जहाँ तक अपराधी का सम्बंध है तो उसके अपराधिक व्यवहार को अच्छी तरह से समझने के लिए क्लासिक, जैविकीय, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आधारों पर व्याख्या की गई है ।

भारत में प्रतिवर्ष भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत लगभग 14.5 लाख संज्ञेय अपराध होते हैं और लगभग 37.7 लाख अपराध स्थानीय एवं विशेष कानूनों के तहत होते हैं ।

पॉल टप्पन के अनुसार अपराध ‘एक सा-भिप्राय कार्य है या अनाचरण है जो दण्ड कानून का उल्लंघन करता है और जो बिना किसी सफाई और औचित्य के किया जाता है ।’

इस परिभाषा में पाँच तत्व महत्वपूर्ण हैं :

प्रथम — किसी क्रिया को किया जाये या किसी क्रिया को करने में चूक होनी चाहिए,

द्वितीय- क्रिया स्वैच्छिक होनी चाहिए और उस समय की जानी चाहिए जबकि कर्ता का अपने कार्यों पर नियन्त्रण है ।

तृतीय — क्रिया साभिप्राय होनी चाहिए, फिर चाहे अभिप्राय सामान्य हो अथवा विशेष। एक व्यक्ति का विशेष अभिप्राय चाहे दूसरे व्यक्ति को गोली मारना व उसको जान से मारना न हो, परन्तु उससे इस जानकारी की आशा की जाती है कि उसकी क्रिया से दूसरों को जोट लग सकती है ।

चतुर्थ — वह क्रिया फौजदारी कानून का उल्लंघन होनी चाहिए जो कि गैर-फौजदारी कानून या दीवानी या प्रशासनिक कानून से भिन्न है जिससे कि सरकार अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही कर सके ।
पंचम – वह क्रिया बिना किसी सफाई या औचित्य की जानी चाहिए।

इस प्रकार यदि यह सिद्ध हो जाता है कि क्रिया आत्मसुरक्षा के लिए या पागलपन में की गयी थी, तो उसे अपराध नहीं माना जायेगा चाहे उससे दूसरों को हानि हुई हो या चोट लगी हो ।

जिरोम के अनुसार अपराध ‘कानूनी तौर पर वर्जित और साभिप्राय कार्य है, जिसका सामाजिक हितों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिसका अपराधिक उद्देश्य है और जिसके लिए कानूनी तौर से दण्ड निर्धारित है ।’

इस प्रकार उसकी दृष्टि में किसी कार्य को अपराध नहीं माना जा सकता जब तक उसमें ये पाँच विशेषताएँ न हों –

पहली – कानून द्वारा वह वर्जित हो । दूसरी– वह साभ्रिपाय हो । तीसरी- वह समाज के लिए हानिकारक हो । चौथी, उसका -अपराधिक उद्देश्य हो । पाँचवी – उसके लिए कोई दण्ड निर्धारित हो ।
अपराध की परिभाषा :- मोरर ने उसे एक असामाजिक कार्य कहा है ।

काल्डवेल ने अपने व्याख्यान में लिखी हैं की — दवे कार्य या उन कार्यो को करने में चूक जो कि समाज में प्रचलित मानदण्डों की दृष्टि में समाज के कल्याण के लिए इतने हानिकारक हैं कि उनके संबंध में कार्यवाही किसी निजी पहल शक्ति या अव्यवस्थित प्रणालियों को नहीं सौंपी जा सकती, परन्तु वह कार्यवाही संगठित समाज द्वारा परीक्षित प्रक्रियाओं के अनुसार’ की जानी चाहिए ।’

थौर्सटन सेलिन ने उसे ‘मानकीय समूहों के व्यवहार के आदर्श नियमाचारों का उल्लंघन कहा है ।’
मार्शल क्लिनार्ड ने यह दावा किया है कि मानदण्डों के सभी विचलन अपराध नहीं होते ।

वे तीन प्रकार के विचलन की बात करते हैं :-

(1) सहन किये जाने वाले विचलन, (2) विचलन जिसकी नरमी से निन्दा की जा सकती है, (3) विचलन जिसकी कड़ी निन्दा की जाती है । वे तीसरे प्रकार के विचलन को अपराध मानते हैं।
‘अपराध’ की उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सभी विचारकों ने इसकी परिभाषा अपने-अपने दृष्टिकोण से दी है ।

जहाँ तक अपराधी का सम्बंध है तो वह किसी न किसी कारण के वशीभूत हो अपराध करता है । यह आवश्यक नहीं कि किसी अपराध के पीछे कोई ठोस कारण ही हो।

हमारी सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था ही ऐसी है कि वह अपराध करने को मजबूर कर देती है । कानून एवं उसकी व्यवस्था भी किसी हद तक किसी निरपराधी को अपराधी में परिवर्तित कर देती है। प्राय: दण्ड नीति भी कई बार किसी को अपराध करने के लिए प्रेरित करती है ।

अपराधिक व्यवहार की सैद्धान्तिक व्याख्याओं को मुख्यत: छह वर्गों में विभाजित किया गया है: (1) जैविक या स्वभाव-सम्बंधी व्याख्याएं, (2) मानसिक अव-सामान्यता, बीमारी और मनोवैज्ञानिक-रोगात्मक व्याख्याएं, (3) आर्थिक व्याख्या, (4) स्थलाकृतिक व्याख्या, (5) मानव पर्यावरणवादी व्याख्या और (6) ‘नवीन’ और ‘रैडिकल’ व्याख्या ।

रीड ने सैद्धान्तिक व्याख्याओं का इस प्रकार वर्गीकरण किया है; (1) क्लासिकल और सकारात्मक व्याख्याएं, (2) शारीरिक, मनश्चिकित्सीय और मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त, और (3) समाजशास्त्रीय सिद्धान्त । इन्होंने समाजशास्रीय सिद्धान्तों को पुन: दो वर्गो में बांटा है: (1) सामाजिक संरचनात्मक सिद्धान्त, (2) सामाजिक प्रक्रिया सिद्धान्त । अपराधिक व्यवहार सम्बंधी इन सभी सिद्धान्तों को मुख्यत: चार भागों में वर्गीकृत कर समझा जा सकता है । (1) क्लासिक, (2) जैविकीय, (3) मनोवैज्ञानिक, (4) सामाजिक ।

‘अपराध और दण्ड’ सम्बधी क्लासिक विचारधारा इटेलियन विचारक बैकेरिया द्वारा अठारहवीं शताब्दी के दूसरे अर्ध में विकसित की गई थी ।

क्लासिक विचारधारा यह मानती थी कि (क) मानव प्रकृति तार्किक एवं स्वतन्त्र है और अपने स्वार्थ से निर्धारित होती है, (ख) सामाजिक व्यवस्था मतैक्यता और सामाजिक अनुबंध पर आधारित है, (ग) अपराध सामाजिक प्रतिमानों का उल्लंघन नहीं बल्कि कानून संहिता का उल्लंघन है, (घ) अपराध का वितरण सीमित है और उसका पता उचित प्रक्रिया से लगाना चाहिए, (ड) अपराध व्यक्ति की तार्किक प्रेरणा से होता है, व अपराधी को दण्ड देते समय ‘संयम’ का सिद्धान्त अपनाना चाहिए ।

क्लासिक व्याख्या की कुछ कमियाँ थी जैसे; पहली, सब अपराधियों के साथ बिना उनकी आयु, लिंग अथवा बुद्धि में भेद करके समान व्यवहार किया जाना । दूसरी, अपराध की प्रकृति को कोई महत्व नहीं दिया गया (अर्थात अपराध साधारण है अथवा जघन्य) । इसी प्रकार अपराधी के प्रकार को भी महत्व नहीं दिया गया (अर्थात् उसका प्रथम अपराध था, या आकस्मिक अथवा पेशेवर अपराधी था) ।

तीसरी, एक व्यक्ति के व्यवहार की व्याख्या केवल ‘स्वतन्त्र इच्छा-शक्ति’ के सिद्धान्त पर करना और ‘उपयोगितावाद’ के सिद्धान्त पर दण्ड प्रस्तावित करना अव्यावहारिक दर्शन है जो अपराध को अमूर्त मानता है और जिसके निष्पक्ष एवं आनुभविक मापन में वैज्ञानिक उपागम का अभाव है ।

चौथी, न्यायसंगत अपराधिक कार्यो के लिये उसमें कोई प्रावधान नहीं था । पांचवीं, इन्हें फौजदारी कानून में सुधार करने में अधिक रुचि थी, बजाय अपराध को नियन्त्रित करने और अपराध के सिद्धान्तों का विकास करने में दण्ड की कठोरता को कम करना, जूरी व्यवस्था के दोषों को हटाना, देश निकाला और फांसी देने के दण्ड को समाप्त करना और कारागृह दर्शन को अपनाना, और नैतिकता को नियमित करना।

क्लासिक सिद्धान्त में नव-कलासिकवादी अंग्रेज अपराधशासियों ने संशोधन कर यह सुझाव दिया कि अपराधी की आयु, मानसिक दशा ओर लघुकारक परिस्थितियों को महत्व दिया जाना चाहिए । सात वर्ष से कम आयु के बच्चों और मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों को कानून से मुक्त रखना चाहिए ।

जैविकीय व्याख्या के अन्तर्गत ‘नियतिवाद’ के सिद्धान्त पर बल दिया गया । लोझासो, केरी और गेरीफलो प्रमुख प्रत्यक्षवादी थे ।

जिन्होने अपराधिक व्यवहार के जैविकी से उत्पन्न होने वाले और वंशानुगत पहलुओं पर बल दिया । लोखासों को ‘अपराधशास्त्र का पिता’ कहा जाता है। इनका मत था कि अपराधी का शारीरिक रूप गैर-अपराधी के शारीरिक रूप से भिन्न होता है, जैसे असममित चेहरा, बडे कान, बहुत लम्बी बाहे पिचकी हुई नाक, पीछे की ओर मुड़ा हुआ ललाट, गुच्छेदार और कुचित बाल, पीड़ की तरफ संज्ञाहीनता, आँखों में खराबी और अन्य शारीरिक अनूठेपन ।

हेनरी गोडर्ड ने विचलन और अपराध का सबसे बडा अकेला कारण मन्द बुद्धिमता बताया । इन्होने कहा कि मन्द बुद्धिमत्ता वंशागत होती है और जीवन की घटनाओ से कम प्रभावित होती है ।

पूंजीवाद सामाजिक दायित्वहीनता को जन्म देता है, और परिणाम स्वरूप अपराध होता है। भौगोलिक व्याख्या अपराध का आकलन भौगोलिक कारको जैसे जलवायु, तापमान और आर्द्रता के आधार पर करती है । वस्तुत: इस बात मे कोई सन्देह नहीं है कि ‘अपराध और अपराधी’ सम्बधी सभी सिद्धान्तों मे कहीं न कहीं एवं कुछ न कुछ कमियां अवश्य हैं । कोई भी सिद्धान्त स्वयं मे पूर्ण नहीं है ।
हमारे समाज में प्राय: सभी श्रेणियों मे अशान्ति बढ रही है क्योकि सामाजिक सम्बधों एवं सामाजिक बंधनो मे विघटन हो रहा है ।

अपराध की उठती हुई तरंग जनता मे भय उत्पन्न कर सकती है, परन्तु हमारी पुलिस और राजनीतिज्ञ बिगड़ती हुई कानून और व्यवस्था की स्थिति से अप्रभावित एवं अछूते रहते हैं ।

हाल ही में कुछ उग्र विचारो वाले विद्वानों ने अपराध सम्बंधी कानूनो को पारित करवाने, पुलिस व्यवस्था को सुधारने, न्यायिक सक्रियता, उत्पीडितों के हितो की सुरक्षा, कारागृह की स्थिति मे सुधार और विचलित व्यक्ति को मानवीय बनाने के सम्बंध में प्रश्न उठाये हैं ।

हमारे समाज में अपराधियों को दण्ड देने एवं उपचार हेतु मुख्यत: दो तरीके अपनाए जाते हैं- प्रथम कारावास, द्वितीय परिवीक्षा पर मुक्ति । यद्यपि कुछ भयंकर अपराधियों को फांसी की सजा भी दी जाती है और कुछ पर जुर्माने भी किये जाते हैं ।

1919-20 तक भारतीय कारावासों में स्थितियाँ भयावह थीं । 1919-20 की भारतीय रेल सुधार कमेटी के सुझावों के पश्चात ही अधिकतम सुरक्षा कारागृह जैसे केन्द्रीय जेल, जिला जेल और उप-जेल में परिवर्तन किये गये । इन परिवर्तनों में शामिल थे वर्गीकरण, कैदियो का पृथक्करण, शिक्षा, मनोरंजन, उत्पादन कार्य का देना और परिवार एवं समाज में सम्पर्क रखने के अवसर ।

तीन राज्यों में तीन मध्यम-सुरक्षा कारागृह या आदर्श कारावास भी स्थापित किये गए जिनमें पंचायत राज, स्व-संचालित केन्टीन और मजदूरी पद्धति पर बल दिया गया, किन्तु इन्हें केन्द्रीय कारागृह मे परिवर्तित कर दिया गय । कारागृह सामान्यत: समान पोशाक पहनने वालों का ससार है । जहाँ के प्रत्येक निवासी पर कलंक लगा होता है और उसे अपरिचित साथियो के साथ निर्धारित कार्यो को नियत समय में करना होता है ।

कैदियों को अपनी शिकायतें व्यक्त करने के लिए प्रभावी माध्यम उपलब्ध कराने चाहिए, अनिश्चित सजा प्रणाली लागू करनी चाहिए, कैदियों को छ: माह से कम समय के लिए कारागृह भेजने को हतोत्साह करना चाहिए, राज्यस्तर पर एक जेल उद्योग ब्यूरो स्थापित करना चाहिए ।

अत: ऐसे कार्यक्रम बनाये जाने चाहिएं जो कैदियों को नया जीवन प्रारम्भ करने के लिए प्रोत्साहित करें ।
एक अन्य विकल्प है- परिवीक्षा कारागृह । परिवीक्षा कारागृह से आशय है अदालत द्वारा अपराधी की सजा को स्थगित करना और कुछ शर्तो पर उसे रिहा करना, जिससे वह समाज में परिवीक्षा अधिकारी की देख-रेख में या उसके बिना समाज में रह सके ।

कारागृह प्रणाली की अपेक्षा परिवीक्षा कारागृह में कुछ लाभ हैं । ये हैं; परिवीक्षा पर रिहा किये गए अपराधी पर कोई कलंक नहीं लगता, परिवीक्षार्थी का आर्थिक जीवन भंग नहीं होता, उसके परिवार को कष्ट नहीं सहन करना पड़ता, अपराधी भी कुंठित नहीं होता और यह आर्थिक रूप से कम महंगी है । इसमें कुछ कमियाँ हें जैसे, अपराधी उसी वातावरण में रहता है जहाँ उसने अपराध किया है, उसे दण्ड का कोई भय नहीं होता । किन्तु यह कमियां तर्कसंगत नहीं हैं ।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि सुधार व्यवस्था को अधिक कुशल बनाने हेतु प्रबंधकी: रुचि एवं मानवतावादी रुचि को ही अपनाकर व्यवस्था में सुधार निश्चित है।

तकनीकी अपराध : साइबर क्राइम

साइबर अपराध तकनीकी प्रगति का परिणाम है। यह एक खतरनाक अपराध है जिसमें इंटरनेट और कंप्यूटर का उपयोग शामिल है।

साइबर अपराध के कई उदाहरणों में धोखाधड़ी, पहचान की चोरी, साइबर स्टॉकिंग, सिस्टम को नष्ट करने के लिए वायरस जैसे मैलवेयर बनाना या भेजना या फिर पैसे कमाने के लिए डेटा चोरी करना, आदि शामिल हैं।

साइबर अपराधों का वर्गीकरण –एक व्यक्ति के खिलाफ अपराध – किसी व्यक्ति के खिलाफ उसके क्रेडिट कार्ड की जानकारी, गोपनीय डेटा और स्पैम ईमेल भेजना, आदि अपराध की श्रेणी में आता है। यह अपराध मुख्य रूप से पैसा कमाने के लिए किया जाता है।

• एक संगठन के खिलाफ अपराध – यह अपराध एक फर्म, कंपनी या संगठन के खिलाफ महत्वपूर्ण डेटा और कर्मचारी के विवरण को चुराने या फिर पैसे बनाने के लिए किया जाता है।
• सरकार के खिलाफ अपराध – यह राष्ट्रीय डेटा और रिकॉर्ड तक पहुंच प्राप्त करके, राष्ट्र के खिलाफ अपराध करना होता है।
• संगठन के स्तर पर, कंपनी के डेटा को चोरी करने या मैलवेयर द्वारा सिस्टम को नष्ट करने से भारी नुकसान होता है ।
विभिन्न प्रकार के साइबर अपराध
• फ़िशिंग – इसमें स्पैम ईमेल भेजकर या फेक वेबसाइट के माध्यम से उपयोगकर्ता की व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करना शामिल है।
• पहचान की चोरी – इसमें क्रेडिट या डेबिट कार्ड या फिर बैंक विवरण के बारे में जानकारी प्राप्त करना शामिल है, जानकारी चुरा लेने के बाद आगे अवांछित धन आसानी से निकाला जा सकता है।
• मैलवेयर अटैक – मालवेयर एक अवैध सॉफ्टवेयर है जिसे कंप्यूटर या सिस्टम को नुकसान पहुंचाने के लिए बनाया गया है। यह मतलब की जानकारी तक पहुँचने के लिए या उस सिस्टम का उपयोग करके कुछ अपराध करने के लिए किया जाता है।
• एटीएम धोखा – इस अपराध में एटीएम मशीन को पूरी तरह से हैक कर लिया जाता है। अपराधियों द्वारा कार्ड पर अंकित डेटा तथा पिन दोनों तक पहुंचने का तरीका विकसित कर लिया है, इससे वह कार्ड का डुप्लिकेट बनाने में सफल होते हैं और पैसे निकालने के लिए वो उसी का उपयोग करते हैं।
• साइबर हैरेसमेंट – अपराधी ऑनलाइन उपायों के माध्यम से व्यक्ति का पीछा करने या परेशान करने में भी काफी सक्रीय है। वे मैलवेयर भेज कर, सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं और सटीक जानकारी प्राप्त करने में सामर्थ होते हैं।
• पोर्नोग्राफी – अश्लील वेबसाइटों के माध्यम से यौन गतिविधि वाले वीडियो को प्रस्तुत करने का कार्य।
• धोखा देना – इस तरह के अपराध में, आपको एक ईमेल मिलता है जो ऐसा लगता है कि किसी प्रामाणिक स्रोत से ही भेजा गया है, लेकिन यह ऐसा होता नहीं है, यह भ्रामक होता है।
• पायरेसी – यह गोपनीय जानकारी तक पहुँचने का एक अनधिकृत तरीका होता है। कई बार सरकारी वेबसाइटों को हैक कर लिया जाता है और फाइलों के महत्वपूर्ण डेटा की पायरेटेड कॉपी बना दी जाती है, जिससे काफी समस्या उत्पन्न होती है या फिर महत्वपूर्ण डाटा नष्ट हो जाता है।
राष्ट्रीय अपराध जांच और अपराध फोरेंसिक पर पहला राष्ट्रीय सम्मेलन
• हमारे राष्ट्र भारत ने पहली बार 4 और 5 सितंबर, 2019 को नई दिल्ली स्थित सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण के मुख्यालय में आयोजित राष्ट्रीय अपराध जांच पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन किया था।
• सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य जांचकर्ताओं, फोरेंसिक टीमों और अन्य अधिकारियों के लिए एक मंच तैयार करना था जो साइबर संबंधित अपराधों से निपटने के लिए विभिन्न तरीकों और उपायों पर चर्चा करें।

साइबर सुरक्षा के प्रकार

• नेटवर्क सिक्योरिटी – नेटवर्क को मैलवेयर द्वारा अटैक किए जाने से बचाता है और इसीलिए हमेशा सुरक्षित नेटवर्क का ही उपयोग करना चाहिए।
• क्लाउड सुरक्षा – क्लाउड संसाधनों में डेटा की सुरक्षा के लिए साधन उपलब्ध कराये जाते हैं।
• सूचना सुरक्षा – डेटा को अनधिकृत या अवैध पहुँच से बचाने में मदद करता है।
• एंड-यूजर सिक्योरिटी – सिस्टम में किसी भी बाहरी डिवाइस को लगाने, किसी भी मेल या लिंक को खोलने के दौरान उपयोगकर्ता को सचेत रहना चाहिए।
• एप्लीकेशन सिक्योरिटी – सिस्टम और सॉफ्टवेयर को किसी भी खतरे से मुक्त रखने में मदद करता है।

हत्या या दहेज हत्या धारा

वाहन चालक सावधान अव आपकी सजा तीन से सात वर्ष तक लापरवाही पूर्वक वाहन चलाने से जिसमें सामने वाला व्यक्ति घायल होता है या फ्रेक्चर होता हैए तो आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 279ए 337ए 338 के तहत मामला दर्ज किया जाता है।

दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मौत के बाद आरोपी के खिलाफ 304 ए के तहत मामला दर्ज किया जाता है।

धारा 307 के बारे में . ऐसा कृत्य करना जिसमें पता होता है कि गोली मारने या हथियार से हमला करने पर व्यक्ति जख्मी होगा। ऐसे में जानलेवा हमला करने का मामला दर्ज होता है। घायल की मौत होने पर धारा बढ़ाते हुए आईपीसी की धारा 302 : हत्या के तहत मामला दर्ज होता है। इसमें आजीवन कारावास की सजा है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 308 … गैर इरादतन हत्या जो हत्या की श्रेणी मे नही आता . एक अवधि के लिए कारावास जिसे तीन वर्ष से सात वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।

आईपीसी धारा 279, 337, 338 सड़क हादसे में घायल और आईपीसी की 307 प्राण घातक हमला के स्थान पर आईपीसी की धारा 308 के तहत मामले दर्ज करना शुरू किया गया है सुप्रीम कोर्ट ने … स्पष्ट किया है की धारा 308 के तहत चोटें ऐसी होनी चाहिए जिनसे मौत हो सकती होए जबकि धारा 324 के तहत चोटें जीवन को खतरे में डाल सकती या नहीं डाल सकती है।

ज‌स्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता में पीठ ने विचार किया कि आईपीसी की धारा 308 कहती है कि जिसने इरादे या ज्ञान के साथ कृत्य किया है और ऐसी परिस्थितियों में किया है कि कृत्य मृत्यु का कारण बनता है वह व्यक्ति स-दोष हत्या का दोषी होगा जिसमे हत्या नहीं हुई हो और यदि किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य से चोट पहुंचती है तब अभियुक्त को कारावास की एक अव‌धि वह सात साल तक की हो सकती है या जुर्माना या दोनों के सा‌थ दंडित किया जा सकता है।

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सूर्यकांत का कहना है की आईपीसी की धारा 308 के तहत दोष सिद्ध करने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि अभियुक्त को हत्या करने का इरादा शज्ञान था जिसका पता वास्तविक चोट और आसपास की परिस्थितियों से लगाया जा सकता है।
स-दोष हत्या के प्रयास और स्वेच्छा से एक तेज धार हथियार से चोट पहुंचाने के बीच अंतर सूक्ष्म और बारीक है। धारा 308 के तहत चोटें ऐसी होनी चाहिए जिससे मौत हो सकती हो जबकि धारा 324 में चोटें किसी के जीवन को खतरे में डाल सकती हैं या नहीं डाल सकती हैं।

व्यपहरण या अपहरण …. भारतीय दंड संहिता की धारा 364 के अनुसार जो भी कोई किसी व्यक्ति की हत्या करने के लिए उसका व्यपहरण या अपहरण करे या उस व्यक्ति को ऐसे व्यवस्थित करे कि उसे अपनी हत्या होने का ख़तरा हो जाए तो उसे आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिए कठिन कारावास जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा

धारा 364 क के अनुसार …. व्यपहरण या अपहरण करे तो मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।

धारा 362 के अनुसार यदि कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है या किन्हीं छल पूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है तो वह उस व्यक्ति का अपहरण करना कहलाता है।

धारा 366 …. किसी स्त्री को विवाह के लिए विवश करने अपवित्र करने के लिए व्यपहृत करना अपहृत करना या उत्प्रेरित करना आदि। सजा दस वर्ष कारावास़ आर्थिक दंड। यह एक गैर.जमानती संज्ञेय अपराध है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

धारा 366 क … जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु की अप्राप्तवय लड़की को अन्य व्यक्ति से अयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विवश या विलुब्ध किया जाएगा तो वह कारावास की अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी।

376 .. किसी भी महिला के साथ बलात्कार करने के आरोपी का अपराध सिद्ध होने की दशा में दोषी को कम से कम पांच साल व अधिकतम 10 साल तक कड़ी सजा का प्रावधान हैं। किसी भी कारण से संभोग क्रिया पूरी हुई हो अथवा नहीं कानूनन वो बलात्कार ही कहलाएगा। इस अपराध को अलग.अलग हालात और श्रेणी के हिसाब से धारा 375, 376, 376क, 376ख, 376ग, 376घ के रूप में विभाजित किया गया है।

376 क अलग रहने के दौरान किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग करता है तो वो भी बलात्कार की श्रेणी में आता है। जिसके लिए दो वर्ष तक की सजा और जुर्माना देना पड़ेगा।

376 ख लोक सेवा द्वारा अपनी अभिरक्षा में किसी स्त्री के साथ संभोग करने की दशा में ये अपराध की श्रेणी में आएगा। जिसके लिए पांच वर्ष तक की जेल के साथ जुर्माना भी देना पड़ेगा।

376 ग जेल में अधिकारी द्वारा किसी महिला बंदी से संभोग करना भी बलात्कार की श्रेणी में आता है। जिसमें पांच साल तक की सजा का प्रावधान है।

376 घ अस्पताल के प्रबंधक या कर्मचारी आदि से किसी सदस्य द्वारा उस अस्पताल में किसी स्त्री के साथ संभोग करेगा तो वह भी बलात्कार की श्रेणी में आएगा। जिसकी सजा अवधि पांच साल तक हो सकती है।

धारा 406 आईपीसी (विश्वास का आपराधिक हनन) सजा की समय सीमा 3 बर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।

धारा 407 और 408 में सात . सात बर्ष की कारावास की साधारण और कठिन सज़ा लिखी गयी है और धारा 409 में दोषी व्यक्ति को कम से कम 10 बर्ष की कारावास की सजा और अधिकतम आजीवम कारावास जैसे भीषण दंड का प्रावधान दिया गया है।

धारा 406 .. अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 की धारा 406 के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके जांच को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता … सुप्रीम कोर्ट

न्यायमूर्ति रॉय ने श्रामचंद्र सिंह सागर बनाम तमिलनाडु सरकार (1978, 2 एससीसी 35) मामले में दिये फैसले का हवाला दिया जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 406 कोर्ट को देश के एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन जांच स्थानांतरित करने का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं देती क्योंकि प्रथम सूचना या रिमांड रिपोर्ट कोर्ट का अग्रसारित किया जाना होता है।

बिहार सरकार ने रिया चक्रवर्ती की स्थानांतरण याचिका की स्वीकार्यता का यह कहकर विरोध किया था कि सीआरपीसी की धारा 406 में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके जांच कार्य स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

**** सभी प्रकार के अपराध के बारे मे एक अभियान चलाना आवश्यक है । इसलिए की नए युवा जो इस क्षेत्र मे कदम रखते है उनको यह जानकारी होनी चाहिए की अगर इस क्षेत्र मे कदम रखा जाता है तो मेरे और मेरे बाद की परिवार पर क्या प्रभाव पड़ेगा । ****

साइबर सेल का जागरूकता कार्यक्रम 2013 मे इंदौर से शुरू हुआ । पिछले वर्ष 2020ए बिहार मे भी वेबनायर के द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित की गई लेकिन इसमे समान्य यूजर्स की सहभागिता नहीं रहा।

साइबर क्राइम जो अब मोबाइल इंटरनेट यूजेर्स पर पूर्णत: आधारित है के संबंध मे हर नए सत्रह मे आने वाले छात्रों के लिए स्कूल और कॉलेज मे सेमिनार आयोजित करनी चाहिए ।

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