अपनों ने नहीं स्वीकारा तो क्वारेंटाइन सेंटर बना सहारा –फौजिया रहमान खान

अपनों ने नहीं स्वीकारा तो क्वारेंटाइन सेंटर बना सहारा –फौजिया रहमान खान

वैश्विक महामारी कोरोना ने जहां लोगों को बुरी तरह भयभीत कर दिया, वहीं लॉकडाउन भी परेशानी का बड़ा सबब बन कर सामने आया। इस संकटकाल में रोजगार खोने के बाद जब प्रवासी कामगार घर लौटने लगे। तो घर लौटने की उनकी यह चाह भी उस वक्त धूमिल हो गयी जब गांव के लोगों ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। इस परेशानी की घड़ी में उनके इलाके का क्वारेंटाइन सेंटर ही एकमात्र आसरा दिखा। इन परेशानियों के दौर से गुजर कर अपने प्रखंड पहुंचे प्रवासी कामगार सरोज कुमार भी हैं जो यह मानते हैं कि क्वारेंटाइन सेंटर की वजह से ही उनकी जिंदगी संभल गयी है।

सरोज बिहार के गया जिला के आमस प्रखण्ड अंतर्गत गंगटी गाँव के हैं। उनकी उम्र लगभग 27 साल है। वह गुजरात में कई वर्षों से फिटर का काम कर रहे थे। लॉकडाउन में काम बंद होने के बाद संकट के बादल घिरने शुरू हो गये थे। कुछ दिनों तक उन्होंने अपनी जमा पूंजी से रहने और खाने का खर्च चलाया। लेकिन चैथी बार जब फिर से लॉकडाउन का ऐलान हुआ तो उनका सब्र जवाब दे गया। खाने-पीने में सारे पैसे पहले ही खर्च हो चुके थे। रोजगार भी जा चुका था। परदेस में गुजारा ना होता देख उन्होने अपने साथियों के साथ घर जाने का निर्णय लिया। घर वापस लौटने के लिए प्रवासी कामगारों द्वारा एक बस की व्यवस्था की गयी और वे भी कई लोगों के साथ पटना आ पहुंचे। यहाँ तक आने में उनकी व उनके साथियों की जेब खाली हो चुकी थी। अब समस्या अपने घर पहुंचने की थी। इस बीच स्थानीय लोगों ने बताया कि पटना स्टेशन से गया जाने के लिए रेलगाड़ी की सुविधा सरकार की ओर से मुहैया करायी जा रही है।

सरोज अपने साथियों के साथ सीधे रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां रेलवे कर्मचारियों ने उनका स्वागत किया। उनकी मदद से वह लोग बड़े आराम से गया स्टेशन तक पहुंचे। यहां पर जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। और सभी को बस से उनके प्रखंड आमस तक पहुंचाया गया। यहां उन्हें प्रोजेक्ट कन्या उच्च विद्यालय में बने क्वारंटाइन सेंटर (जिसको प्रतीक्षा-सह- सहायता केंद्र भी कहा जाता है) लाया गया। यहां के अधिकारियों ने उनका स्वागत कर उनके रहने खाने की व्यवस्था में जुट गये।

सरोज कुमार बताते हैं कि आने वाले सभी प्रवासी कामगारों को पहले यहां एक किट जिसमें बाल्टी, जग, गिलास, कटोरी, थाली, लूंगी, अंतरूवस्त्र, गंजी, गमछा, नहाने और धोने वाले साबुन, मछरदानी, टूथ ब्रश व पेस्ट, सहित शेविंग आदि के सामान मौजूद थे, दिये गये। उन्होने बताया कि यहां सभी दिनचर्या के अनुसार समय को बिताते हैं। सुबह शौच व स्नान से निवृत होकर योगा करना और फिर नाश्ता करना, इसके बाद दोपहर में खाना, शाम में चाय बिस्किट, फिर रात का खाना और सो जाना। ये उनकी दिनचर्या बन गयी है।

सरोज कुमार ने बताया कि नाश्ते में चना गुड़, दोपहर के खाने में ताजा घर की तरह बना हुआ दाल, चावल, सब्जी और शाम चार बजे चाय, बिस्किट और रात को भोजन में दाल, चावल, सब्जी के साथ एक गिलास दूध की व्यवस्था है। किसी प्रकार की कोई असुविधा नहीं है। हम प्रवासी कामगार यह सोचते हैं यदि यह सहायता केंद्र ना होता तो हम कहां जाते? हमारे लौटने के दौरान ही गांव के लोगों ने फोन कर यह भी कह रखा था कि गांव में ऐसे लोगों को बिल्कूल नहीं आने दिया जायेगा। ऐसे बुरे समय में यह क्वारेंटाइन सेंटर ही हम जैसे प्रवासियों का सहारा बना है। यहां के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों व यहां ड्यूटी कर रहे कर्मचारी प्रशंसा के योग्य है जिन्होंने हमारी हर तरह से मदद की है। वह कहते हैं ऐसे प्रवासी लोग जो क्वारेंटाइन सेंटर से अपने घर भाग जाते हैं वे ऐसा न करें पूरे 14 दिन का समय क्वारेंटाइन सेंटर में ही रहें। यह उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है।

क्वारेंटाइन सेंटर पर ड्यूटी पर तैनात व इसी स्कूल में आदेशपाल के रूप में कार्यरत देवेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि बीमार तो कोई भी हो सकता है। इंसानियत के नाते हम इन लोगों की सेवा कर रहे हैं। ये बेचारे इतनी परेशानी से अपने गांव घर पहुंचे हैं तो हमारा भी यह कर्तव्य है कि हम इनकी पूरी सेवा करें। ये लोग अछूत नहीं हैं ये लोग भी हमारे ही समाज का हिस्सा हैं। केवल यह एक संक्रमित रोग के संदिग्ध है पर हैं तो हमारे मेहमान ही।

सहायता केंद्र के प्रभारी वीरेंद्र कुमार चैधरी ने बताया कि केंद्र पर 93 लोग थे। अधिकांश क्वारेंटाइन की अवधि पूरी कर जा चुके हैं। कुछ लोग अभी यहीं हैं यहां पर उनके रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की पूरी व्यवस्था की गयी है। लगभग 150 लोगों का खाने का बंदोबस्त व पीने के लिए साफ पानी की व्यवस्था के साथ योग आदि करा कर उनका ख्याल रखा गया है। साफ-सफाई का हम भरपूर ध्यान रखते हैं क्योंकि साफ-सफाई ना होने के कारण इस संक्रमण के फैलने का खतरा बना रहता है। अब तक इस केंद्र में एक भी पॉजिटिव केस नहीं आया है इन लोगों की हमेशा स्क्रीनिंग और जांच चिकित्सको द्वारा की जा रही है।

(चरखा फीचर्स)

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