• April 25, 2018

सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की कांग्रेसिया नौटँकी – डी०सी० शर्मा

सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति  की कांग्रेसिया नौटँकी – डी०सी० शर्मा

dc sharma आज कांग्रेस द्वारा राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध लाये गये महाभियोग के प्रस्ताव को जैसे ही राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने खारिज किया है वैसे ही उनके अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘संविधान बचाओ’ का नारा लगाया है और उनके अन्य नेता भारत की जनता को यह बताने में लग गये हैं कि बीजेपी द्वारा मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग प्रस्ताव रद्द करने से संविधान को खतरा पैदा हो गया है।

आज कांग्रेसियों द्वारा संविधान व सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लेकर जो छटपटाहट दिख रही है उसका सिर्फ एक कारण है और वह यह कि पिछले 5 दशकों में यह पहली बार हुए है जब सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश कांग्रेस के प्रभाव से बाहर है।

**** यह पहली बार हुआ है कि कांग्रेस के वकीलों और बेंच को फिक्स करने वाले वकीलों की ब्लैकमेलिंग व भ्रष्ट तरीके, सुप्रीम कोर्ट में नहीं चल पा रहे हैं।***

मुझे आज कांग्रेस का इस तरह रोना चीखना बेहद अच्छा लग रहा है क्योंकि मेरी यादाश्त में वे सारे अवसर अभी तक संग्रहित हैं जब पूर्व में कांग्रेस ने बार- बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों को तोड़ा मरोड़ा और उनको भारत का न्यायाधीश न बना कर कांग्रेस का न्यायाधीश बना कर छोड़ा था।

जो कुछ भूल गया था वह आज टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख को पढ़ कर फिर से याद आ गया है।

इसी कांग्रेस ने जब 1973 में जस्टिस ए०एन०. राय को उनसे तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों जे०एम० शेलत, के०एस० हेगड़े और ए० एन० ग्रोवर को नजरअंदाज करके मुख्य न्यायाधीश बनाया था तब लोकसभा में बड़ी बेशर्मी से यह बयान दिया था कि,’ यह हमारी सरकार का दायित्व है कि हम उसी को मुख्य न्यायाधीश बनायें जो हमारी सरकार की फिलॉसफी और दृष्टिकोण के करीब है’।

जस्टिस राय ने कांग्रेस द्वारा उन पर किये गये इस उपकार का बदला आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को 1976 के ऐतिहासिक केस एडीएम,जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ल मुकदमे में सही ठहरा कर किया था।

इस केस में बहुमत से मौलिक अधिकारों को निलंबित करने के पक्ष में फैसला मुख्य न्यायाधीश ए०एन० राय, जस्टिस एच०आर० खन्ना, एम०एच० बेग, वाई०वी० चंद्रचूड़ और पी०एन० भगवती ने दिया था।

जस्टिस खन्ना ही एक मात्र न्यायाधीश ने इसको गलत ठहराया था।

इसका दण्ड भी जल्दी ही उन्हें मिल गया जब जस्टिस खन्ना की वरिष्ठता को किनारे करते हुये उनसे कनिष्ठ एम०एच० बेग को मुख्य न्यायाधीश, इंदिरा गांधी की कांग्रेस की सरकार ने बनाया था।

जस्टिस बेग जब सेवानिवृत हुये तब उनको कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड का निदेशक बना दिया गया और फिर जब 1980 में इंदिरा गांधी की कांग्रेसी सरकार वापस आयी तो जस्टिस बेग को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया और वे 1988 तक उस पद पर बने रहे।

राजीव गांधी ने 1988 में बेग साहब को उनकी सेवा के लिये पद्मविभूषण से पुरस्कृत भी किया था।

कांग्रेस और जस्टिस बेग से भी ज्यादा मजेदार किस्सा कांग्रेस द्वारा बनाये गये न्यायाधीश बहरुल इस्लाम का है।

ये इस्लाम साहब कांग्रेसी थे जिन्हें 1962 में कांग्रेस ने राज्यसभा का सदस्य बनाया था।

1967 में वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गये तब 1968 में फिर राज्यसभा भेजे गये।

1972 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और इंद्रा गांधी ने उनको गोहाटी हाईकोर्ट का न्यायाधीश बना दिया!

ये वहां अपनी सेवानिवृति, मार्च 1980 तक न्यायाधीश रहे। जब इंदिरा गांधी फिर से 1980 में प्रधानमंत्री बनी तो उन्होंने सेवानिवृति प्राप्ति के 9 महीने बीत जाने के बाद भी, जस्टिस बहरुल इस्लाम को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया!

जस्टिस इस्लाम ने कांग्रेसियों के खिलाफ मुकदमों में कानून और न्याय की ऐसी तैसी करके उन्हें बचाने में महारत हासिल थी। जस्टिस इस्लाम ने अपनी सेवानिवृति के डेढ़ महीने पहले ही इस्तीफा दिया और असम के बारपेटा से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के चुनाव में खड़े हो गये थे। लेकिन असम की अशांति के चलते वहां जब चुनाव नही हो पाया तो कांग्रेस ने उनको तीसरी बार राज्यसभा का सदस्य बनाया था।

कांग्रेस की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को उनके हितों की रक्षा करने पर पुरस्कृत करने की परंपरा रही है और उसका अनुपालन राजीव गांधी ने भी किया है।

1984 में हुये सिक्खों के नरसंहार की जांच के लिये जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को राजीव गांधी ने नियुक्त किया था और उन्हें अपनी जांच में सिवाय पुलिस की लापरवाही के अलावा किसी भी कांग्रेसी का हाथ नहीं दिख था।

इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें बाद में पुरस्कृत कर नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया।

1998 में कांग्रेस ने जस्टिस मिश्रा को राज्यसभा का सदस्य भी बनाया। यही नहीं 2004 में जब सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई तो जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को नेशनल कमीशन फ़ॉर रिलीजियस एंड लिंगविस्टिक मिनोरटीएस का अध्यक्ष बनाया और फिर नेशनल कमीशन फ़ॉर शेड्यूल कास्ट एंड शेड्यूल ट्राइब का अध्यक्ष बनाया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस खरे को गोधरा कांड में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणियां करने पर उन्हें पद्मविभूषण से पुरस्कृत किया था।

मामला यहीं तक सीमित नहीं है,

कांग्रेस का न्यायाधीशों को महाभियोग से बचाने में भी योगदान रहा है।

जब जस्टिस रामास्वामी प भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे और महाभियोग की कार्यवाही चली थी तब कपिल सिब्बल, जो आज मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव सामने लाये हैं, जस्टिस रामास्वामी के पक्ष के वकील थे और जस्टिस रामास्वामी का बचाव किया था।

सिर्फ यही नहीं, प्रशांत भूषण ने भी इस महाभियोग चलाने के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करते हुऐ कहा था कि ‘चंद कालीनों और सूटकेसों से खरीदने पर जस्टिस रामास्वामी पर महाभियोग चलाना बचकानी हरकत है’।

जब जस्टिस रामास्वामी पर 14 आरोपों में 11 सही पाये गये तब कांग्रेस ने वोटिंग से अपने आपको अलग करके, रामास्वामी को सज़ा होने से बचाया था।

कांग्रेस का पूरा इतिहास सुप्रीम कोर्ट में अपने लोगों को न्यायाधीश बनाने वा अपने हितों की रक्षा के उपलक्ष्य में उनको पुरस्कृत करने का रहा है।

आज जो कांग्रेस व कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ऐसे वकीलों का जो आक्रोश व हताश हैं वह इसी कारण से है कि आज भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा बैठे हैं, जिन्होंने कांग्रेस के 10 जनपथ से सोनिया गांधी के इशारों को समझना बन्द कर दिया है।

आज उनके अंदर यह डर भी बैठ गया है कि उनके पुराने पापों पर सुप्रीम कोर्ट के आगामी निर्णय कहीं उनको भारत की राजनीति से विलुप्त न कर दें।

आज उनको सुप्रीम कोर्ट से विश्वास उठ गया है क्योंकि जस्टिस दीपक मिश्रा उनसे न ब्लैकमेल हो रहे हैं और न उनके प्रकोप से डर रहे हैं।

(लेखक – सहायक प्रबंधक ग्रामीण बैंक हि०प्रदेश)

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