साफ कहें, सुखी रहें नुगरों से बेपरवाह रहें – डॉ. दीपक आचार्य

साफ कहें, सुखी रहें  नुगरों से बेपरवाह रहें  – डॉ. दीपक आचार्य

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कलिकाल के दुष्प्रभाव से घिरे वर्तमान समय में जात-जात के असुरों का बोलबाला है।  पिछले सारे युगों के तमाम किस्मों के असुरों के आधुनिकतम और हाईटेक संस्करण सर्वत्र दिखने में आ रहे हैं। कई बार तो लगता है कि जैसे यह पूरा युग धर्म, सत्य, ईमान, शालीनता और मानवीय संवेदनाओं से जुड़े लोगों के लिए है ही नहीं, जो सज्जन लोग इसमें पैदा हो गए हैं वे किसी न किसी गलती से जन्म ले चुके हैं अथवा नरक में जगह कम पड़ जाने की वजह से भगवान से किश्तों-किश्तों में मानसिक और शारीरिक पीड़ाएं भुगतने, विभिन्न प्रकार के संत्रासों के जरिये अपनी सजा भुगतने के लिए ही भेज दिए हैं।dr. deepak

सारे के सारे लोग मूल्यहीनता में जी रहे हैं, भय, हिंसा, पाखण्ड, आडम्बर और लूट-खसोट का माहौल लगातार पाँव पसारता ही जा रहा है। हरामखोरी, नालायकियां, छीना-झपटी और आसुरी प्रवृत्तियों से कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। वैश्विक स्तर पर हर तरफ स्थितियाँ खराब हैं। जो देश स्वतंत्र हैं उनमें से कितने ही ऎसे हैं जहाँ के लोग अपनी स्वतंत्रता पर न गर्व कर सकते हैं, न इन लोगों को स्वतंत्रता का कोई मीठा अनुभव हो पाया है। उलटे ये लोग स्वीकारते हैं कि तथाकथित स्वतंत्रता से पहले स्थिति और ठीक थी। अब तो हालात खूब बिगड़ते जा रहे हैं। पहले एक राजा हुआ करता था, चंद दरबारी।

अब बहुत सारे राजा पैदा हो गए हैं और दरबारियों की विस्फोटक संख्या का कोई पार नहीं है। न कहीं कोई सुकून है, न आनंद।  अपने ही देश में हम पराये होकर जी रहे हैं। एक ही राष्ट्र में एक जगह के लोग दूसरी जगह में जाकर व्यापार, कर्म नहीं कर सकते। सब के लिए समान कानून केवल बातों का विषय होकर रह गया है। कभी धर्म के नाम पर हम गर्दन निकाल कर शोर मचाते हैं, कभी भाषा और क्षेत्र के नाम पर, कभी हमें अचानक अपने किसी अधिकार की याद आ जाती है और हुड़दंग मचाने निकल पड़ते हैं, कभी हमारी निष्ठाएं डगमगा जाती हैं, कभी आकाओं के इशारों पर हमारी उछलकूद माहौल खराब कर दिया करती है।

कोई कहता है मैकाले ने सारा मटियामेट करके रख दिया है, कोई कहता है अंग्रेज तो चले गए, काले अंग्रेजों के खिलाफ एक और स्वाधीनता का युद्ध लड़ना पड़ेगा तभी स्वराज्य आ पाएगा। मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना। हर किसी को अपनी पड़ी है, हर कोई अपनी ही अपनी बात करने का आदी हो गया है। हम न देश की बात करते हैं, न समाज की। न अपने क्षेत्र की। हमारा हर कर्म हमसे ही शुरू होता है और हम पर ही आकर खत्म हो जाता है। गरीबों और जरूरतमन्दों का उपयोग हमने पब्लिसिटी पाने के लिए छोड़ रखा है। पूंजीवादियों का हर तरफ बोलबाला होता जा रहा है। इन सभी प्रकार के हालातों के बीच शालीन और सज्जनों की हर तरफ मौत है।

कोई सा क्षेत्र हो, इन लोगों से गधों की तरह काम लिया जाता है और यही कारण है कि इनमें से अधिकतर लोगों को गधामजूरी का पर्याय माना जाता रहा है। गधा सहनशील, स्वामीभक्त, सहिष्णु, धीर-गंभीर और संवेदनशील होता है और उसकी यही शालीनता उसके शोषण के तमाम रास्ते अपने आप खोलने लगती है। यही कारण है कि कामचोर, संवेदनहीन और अक्खड़ लोग हमेशा मौज में रहते हैं लेकिन सज्जन लोग भीतर ही भीतर दुःखी, तनावग्रस्त और परेशान रहते हैं और इस कारण से मानसिक और शारीरिक पीड़ाओं को झेलते रहते हैं। इनकी मांग भी ज्यादा होती है लेकिन इसके मुकाबले इन्हें न तो आदर-सम्मान मिल पाता है, न अपने घर-परिवार के लिए कोई समय। अपनी शालीनता के कारण ये लोग मन मारकर भी काम करते रहते हैं।

वंशानुगत संस्कारों की वजह से ये सभी का आदर करते हैं, किसी को ना नहीं कह पाते हैं और जिंदगी भर बोझ ढोये रहते हैं। इनके लिए ऊपर वाले भी शोषक की भूमिका में होते हैं क्योंकि उन्हें काम चाहिए होता है। ऊपर वालों को इससे कोई सरोकार नहीं होता कि कौनसा काम किसका है, किसे करना चाहिए, कौन नहीं कर रहा है। उन्हें काम से मतलब होता है और वह काम निकलवाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल शालीनों पर ही करते हैं। कामचोर लोग हमेशा अपने हाल में मस्त रहते हुए कर्मवीरों पर हंसते हुए पूरा का पूरा गुजार दिया करते हैं।

इस स्थिति में हर शालीन और कर्मयोगी व्यक्ति को चाहिए कि हर मामले में साफ और सत्य कहे और अपनी स्थिति स्पष्ट करे। हो सकता है इससे ऊपर वाले लोगों के अहंकार का ग्राफ बढ़ जाए और वे कुछ अनुचित निर्णय लेने की सोच लें, मगर स्पष्टवादिता से सज्जनों का चित्त हल्का और शुद्ध हो जाता है और इससे उनके हृदयाकाश में भगवान की शक्तियां प्रकट होने लगती हैं जो किसी भी प्रकार से उनका नुकसान नहीं होने देती।

आज मूल्यों, सिद्धान्तों और आदर्शों पर जीने वाले सभी लोगों को चाहिए कि वे अपना पक्ष साफ और स्पष्ट रखें और किसी की परवाह न करें।  ईश्वर हमेशा शुद्ध-बुद्ध और कर्म में विश्वास रखने वाले लोगों की मदद करता

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