लघुकथा: 1. दंगा :: 2. माँ :- विजय कुमर सत्तपत्ती, तेलंगाना

लघुकथा: 1. दंगा :: 2.  माँ :- विजय कुमर सत्तपत्ती, तेलंगाना

vijay 1कल से इस छोटे से शहर में दंगे हो रहे थे. कर्फ्यू लगा हुआ था. घर, दूकान सब कुछ बंद थे. लोग अपने अपने घरो में दुबके हुए थे. किसी की हिम्मत नहीं थी कि बाहर निकले. पुलिस सडकों पर थी.

ये शहरछोटा सा था, पर हर ६ – ८ महीने में शहर में दंगा हो जाता था. हिन्दू और मुसलमान दोनों ही लगभग एक ही संख्या में थे. कोई न कोई ऊन्हे भड़का देता था और बस दंगे हो जाते थे. पुलिस की नाक में दम हो गया था, हर बार के दंगो से निपटने में. नेता लोग अपनी अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकते थे.पंडित और मुल्ला मिलकर इस दंगो में आग में घी का काम करते थे.आम जनता को समझ नहीं आता था कि क्या किया जाए कि दंगे बंद हो जाए. उनके रोजगार में, उनकी ज़िन्दगी में  इन दंगो की वजह से हर बार परेशानी होती थी.

एक फ़क़ीर जो कुछ महीने पहले ही इस शहर में आया था, वो भी सोच में बैठा था. उससे मिलने वाले मुरीदो में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही थे और आज दो दिन से कोई भी उसके पास नहीं आ पाया था.

आज वो शहर में निकल पड़ा है, हर गली जा रहा है. और लोगो से गुहार लगा रहा है.न कोई उससे मिल पा रहा है और न ही कोई भी उसे कुछ भी नहीं दे पा रहा है. फ़कीर को दोपहर तक कुछ भी नहीं मिला.

वो थक कर एक कोने में बैठ गया. एक बच्चा कही से आया और फ़क़ीर के पास बैठ गया, फ़क़ीर ने उससे पुछा क्या हुआ, तुम बाहर क्यों आये हो, देखते नहीं शहर में दंगा हो गया है.

बच्चा बोला,“मुझे भूख लगी है, घर में खाना नहीं बना है. माँ भी भूखी है, बाबा को कोई काम नहीं मिला आज. हम क्या करे. हमारा क्या कसूर है. हम क्यों भूखे रहे इन दंगो के कारण!”

फ़क़ीर का मन द्रवित हो गया. फ़क़ीर के पास ५० रूपये थे.उसने वो ५०  रूपये बच्चे को दे दिए और कहा,“जाओ घर जाओ और बाबा को कहो कि गली के मोड़ पर पंसारी के घर में बनी हुई दूकान से कुछ ले आये और खा ले.”

बच्चा ख़ुशी ख़ुशी घर की ओर दौड़ पड़ा. फ़क़ीर उसे जाते हुए देखता रहा.

थोड़ी देर बाद कुछ सोचकर फ़क़ीर पुलिस स्टेशन पंहुचा. वहां के अधिकारी भी फ़क़ीर को जानते थे. उन्होंने फ़क़ीर को बिठाया और चाय पिलाई. फ़क़ीर ने कहा,“कर्फ्यू खोल दो बाबा.” अधिकारी बोले, “फ़कीर बाबा नहीं, दंगा बढ़ जायेंगा. पता नहीं कितने लोग घायल हो जाए.”

फ़क़ीर ने कहा,“आप शहर में खबर करवा दो कि फ़क़ीर बाबा मिलना चाहते है.”

और फिर वैसा ही हुआ लोग आये. फ़क़ीर ने बहुत सी बाते कही, एक दुसरे के साथ मिलकर रहने की बात कही, ये भी कहा कि आज के बाद कोई अगर दंगा करेंगा तो फ़क़ीर अपनी जान दे देंगे.लोगो पर असर हो ही रहा था कि किसी बदमाशने कहा,“फ़क़ीर तो नाटक करता है, सब झूठ बोलता है.” इसी तरह की बाते होने लगी और वहां फिरसंप्रदाय और जातिवाद का जहर फैलने लगा.

कुछलोगो ने गुस्से से उस बोलने पर हमला कर दिया, वो किसी और जाति का निकला, फिर उस जाति के लोगो ने इन लोगोपर हमला कर दिया, खूब मारपीटहोने लगी, फ़कीर बीच में पहुंचे बीचबचाव के लिए, तबतक मारपीट फिर से दंगे में बदल गया था.

पुलिस ने लाठीचार्ज किया, सबको अलग किया तो देखा, फ़क़ीर बाबा, इस छोटे से दंगे में फंसकर मर चुके थे.

सारे लोगो में सन्नाटा छा गया.उसी वक़्त शहर में ये तय हुआ कि कोई भी दंगा नहीं होंगा.उस  दिन से शहर में शान्ति छा गयी.फिर कभी उस छोटे शहर में दंगा नहीं हुआ.
 
                                                                           (समाप्त) 

                                                                         लघुकथा : माँ
 
मैंने रेडसिग्नल पर अपनी स्कूटर रोकी . ये सिग्नल सरकारी हॉस्पिटल के पास था . उस जगह हमेशाबहुत भीड़  रहती थी.मरीज , बीमार, उनके रिश्तेदार और भी हर किस्म के लोगो की भीड़ हमेशा वहां रहती थी,

अब चूँकि सरकारी हॉस्पिटल था तो गरीब लोग ही वहां ज्यादा दिखाई देते थे. अमीर किसी और महंगे हॉस्पिटल में जाते थे.इस संसार में गरीब होना ही सबसे बड़ी बीमारी है . ऊपर से यदि कोई भयानक शारीरिक रोग लग गया हो तो , क्या कहना , जैसे कोढ़ में खाज !

मेरे लिए ये रोज का ही दृश्य था. मैं बड़ा संवेदिनशील व्यक्ति था और मुझे ये दृश्य पसंद नहीं था, पर क्या करू और कोई रास्ता भी नहीथा ऑफिस की ओर जाने के लिए. स्कूटर बंद करके मैंने अनमने भाव से हॉस्पिटल की तरफ देखा. वही भीड़ , वही रोना , वही कराहना !

मैंने देख ही रहा था कि एक औरत के जोर जोर से हंसने की आवाज़ आई , मैंने उस ओर देखा तो एक बूढी सी औरत जोर जोर से हंस रही थी. वो गरीब तो नहीं लग रही थी. मुझे कुछ अजीब सा लगा . फिर  वो रोने लगी . मैंने अपना स्कूटर उसकी तरफ मोड़ा और उसके पास जाकर रुका .

मैंने पुछा ,  “माई क्या हुआ है . कुछ मदद चाहिए इलाज के लिए , क्या हुआ .बताओ तो सही.”

कुछ लोग और भी जमा हो गए थे . अपने देश में तमाशाई बड़े जल्दी जमा हो जाते है.

उस बूढी औरत ने कुछ नहीं कहा , वो रोते रोते चुप हो गयी , मैंने अपनी पानी की बोटल दी .उसे पीने को कहा. उसने भरी हुई आँखों से मुझे देखा और पानी पीने लगी .

वो थोडा शांत हुई तो मैंने फिर से पुछा , “क्या हुआ माई , हॉस्पिटल के लिए कोई मदद चाहिए . बोलिए तो . कुछ रुपया दे दूं. आपके साथ कोई नहीं है क्या . बच्चे कहाँ है ?”

उसने कहा , “यहाँकोई नहीं है बेटा. जब मेरेबच्चे छोटे थे तब , आपस में , मेरी माँ – मेरी माँ कह कर लड़ा करते थे… आज जब वो बड़े हो गए है तो तेरी माँ – तेरी माँ  कहकर लड़ते है और आज उन्होंने हमेशा के लिए यहाँ छोड़ दिया है . बचपन में मैं जब एक को संभालती थी , तो दूसरा भी आ जाता था ,कहता था माँ मुझे भी संभालो और आज जब मेरी तबियत ख़राब हो गयी है तो आपस में कहते है , तू संभाल , तेरी भी तो माँ है . अब मैं यहाँ हूँ. अकेली, सब है , पर कोई नहीं . मैंने जिन्हें संभालकरबड़ा किया है आज उनके पास मुझे संभालने के लिए न समय है और न ही प्यार बचा हुआ है ”

मैं स्तब्ध था . आसपास की भीड़ चुप थी और अबअपने अपनेकाम के लिए वापस जा रही थी. तमाशा ख़त्म हो गया था. अपने देश में तो ऐसा ही होता है.

मैं व्यथित था. मेरा मन भी भर आया था.मैंने धीरे से कहा, “ माई, बात सिर्फ प्यार और मोह की होती है , वो है तो सब है , वरना कुछ भी नहीं ! “

उस बूढी औरत ने फिर कहा , “मेरा कसूर क्या है , सिर्फ यही कि मैं अब बूढी हो चुकी हूँ और मैं बीमार हूँ , बचपन का मेरी माँ अब तेरी माँ में बदल चूका है. लेकिन फिर भी माँ हूँ, मेरा क्या है , आज हूँ और कल नहीं हूँ. वो जहाँ रहे खुश रहे .”

मैंने भरी हुईआँखों से उसके हाथ में कुछ रुपये रखे और चल पड़ा.

माँ पीछे ही रह गयी . अकेली !

                                                                              (समाप्त)

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