यादगार बनाएँ दीवाली की साफ-सफाई – डॉ. दीपक आचार्य

यादगार बनाएँ  दीवाली की साफ-सफाई  – डॉ. दीपक आचार्य

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 हर साल लक्ष्मी मैया को रिझाने के लिए हम दीपावली पर जमकर साफ-सफाई करते हैं। साल भर का कूड़ा-करकट ढूँढ़-ढूँढ़ कर निकालते हैं,कोना-कोना छान मारते हैं।

घर-दुकान और अपने प्रतिष्ठानों को इस कदर चमका देते हैं कि लक्ष्मी मैया जब भी वहाँ से गुजरे, उसकी नज़र हमारी ओर पड़े बिना न रह सके। उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का कोई मौका हम गँवाना नहीं चाहते।

बरसों से हमारे पुरखे और हम सभी लोग यही सब कुछ करते आ रहे हैं। सालाना साफ-सफाई का यह वार्षिक पर्व  इन दिनों हर तरफ परवान पर है। इन दिनों घर के कोनों से लेकर भारत की सीमाओं तक सर्वत्र स्वच्छता अभियान की गूँज है। सभी तरफ साफ-सफाई का दौर यौवन पर है।  अबकि बार स्वच्छता अभियान का जोर ऎतिहासिक है।

यों तो हम हर साल दीवाली की वार्षिक साफ-सफाई करते ही हैं लेकिन थोड़ी सी सकारात्मक सोच को और शामिल कर लिया जाए तो दीवाली साफ-सफाई को जिन्दगी भर के लिए यादगार बना सकते हैं, इसे बहुत सारे लोगों के लिए फायदेमंद और राहतकारी स्वरूप दे सकते हैं और भरपूर पुण्य भी प्राप्त कर सकते हैं।

हमें ज्यादा कुछ करना नहीं है, सोच में बदलाव लाने की जरूरत है। हर साल साफ-सफाई करते हुए हम उन वस्तुओं को भंगार या फेंकने लायक मान कर बाहर निकाल देते हैं जो हमारे लिए अनुपयोगी है। संसार भर में कोई वस्तु अनुपयोगी नहीं हो सकती।  जो वस्तु एक के लिए बिना काम की है वह औरों के लिए अत्यन्त जरूरी काम में आने लायक हो सकती है।

कई बार हमारे पास एक ही प्रकार की वस्तुओंं की भरमार हो जाती है और हम नई वस्तुओं  या उपकरणों को लाने के फेर में पुरानी वस्तुओं को घर से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। साफ-सफाई और तुरताफुरती की उधेड़बुन में हम लोग ऎसी बहुत सारी सामग्री या तो कौड़ियों के मोल भंगार में बेच देते हैं और ये कबाड़ियों के वहाँ पहुँच जाती है अथवा फेंक दिया करते हैं।

जबकि हमारे लिए जो सामग्री अनुपयोगी या अतिरिक्त होकर फेंकने या भंगार में देने लायक हो जाती है उस सामग्री को उन लोगोंं तक पहुंचाने का काम करें जिन्हें इनकी आवश्यकता है। बहुसंख्य लोग हैं जो धन के अभाव में जरूरी संसाधनों और सामग्री की खरीद नहीं कर पाते हैं और उनके जीवन में इनका अभाव बना रहता है। ऎसे लोगों के जीवन में अभावों के अंधकार के रहते हमारा दीवाली मनाना और रोशनी का भ्रम फैलाकर मौज-मस्ती लुटाना बेमानी है।

भंगार में बेचकर कबाड़ियों को बेच देने से जो पैसा आता है वह नगण्य होने से हमारे किसी काम  का नहीं होता। इसी प्रकार अपने लिए उपयोगी सामग्री को बाहर फेंक देने से उसकी उपयोगिता नष्ट हो जाती है।

हम थोड़ी सी मानवीय संवेदना, उदारता और परोपकार को जीवन में अपना लें तो इससे बहुत सारे लोगों के लिए हम मददगार सिद्ध हो सकते हैं। इन जरूरतमन्दों तक अपनी उस सामग्री को पहुंचाने में आगे आएं जो हमारे लिए भले ही अनुपयोगी सिद्ध हो गई हो अथवा अतिरिक्त हो, लेकिन औरों के लिए उसकी उपयोगिता अच्छी तरह सामने आ सकती है।

इस दिशा में सामाजिक और क्षेत्रीय स्तर पर दीवाली से पहले कोई स्थान , दिवस व समय निश्चित किया जा सकता है जहाँ हम इस प्रकार की सामग्री को पहुंचा दें जहाँ से जरूरतमन्द इसे प्राप्त कर सकें और अपने उपयोग में ला सकें। इससे सामग्री का उपयोग भी होगा और हमें पुण्य की प्राप्ति भी होगी। यह हमारे लिए सेवा और परोपकार का बड़ा मौका हो सकता है।

किसी जरूरतमन्द को उसके उपयोग की वस्तु या संसाधन प्रदान करने से जो आत्मतोष प्राप्त होता है उसका कहीं कोई मुकाबला नहीं। इस मामले में सामाजिक सरोकारों से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं और सामाजिक संगठनों को आगे आकर प्रभावी पहल करनी चाहिए।

लोक सेवा एवं सामुदायिक उत्थान का यह अभिनव प्रयोग हर क्षेत्र के लिए अनुकरणीय सिद्ध हो सकता है बशर्ते कि हम अपनी कृपणता, स्वार्थ और हर मामले में पैसे कबाड़ने की कबाड़ी मनोवृत्ति को त्याग कर उदारता को अपना लें।

यह अपने आप में सेवा और परोपकार धर्म का साकार स्वरूप है जिसे अपनाने वाला इंसान असीम मनःशांति और आनंद प्राप्त कर सकता है और इस बात से आश्वस्त हो सकता है कि मरने के बाद उसकी दुर्गति नहीं होगी, भूत-प्रेत बनकर भटकने की स्थिति से बचेगा और अगला जन्म अच्छा ही होगा अथवा गति-मुक्ति की संभावनाएं मूर्त रूप लेंगी ही।

जो लोग किसी क्षेत्र में जाकर कुछ नहीं कर सकते, सेवा कार्यों के लिए समय नहीं दे सकते, घर बैठे-बैठे सब कुछ करना चाहते हैं, उन लोगों के लिए यह स्वर्णिम अवसर साबित हो सकता है। दीवाली की साफ-सफाई के दिनों में हमारे पास बहुत कुछ ऎसा निकलता है जो हमारे किसी काम का नहीं होता लेकिन औरों को इसकी नितान्त आवश्यकता बनी रहती है।

इस अभिनव सोच को क्रियान्वित करने में समाज के जागरुक लोगों, स्वयंसेवी संस्थाओं, सेवाव्रतियों तथा समाजसेवकों की भूमिका बेहतर प्रभाव दिखा सकती है। आईये इस बार  दीपावली पर हम अपने आपको औरों के लिए मददगार के रूप में काम आकर नई पहचान प्राप्त करें, दूसरों के जीवन में अभावों के अंधकार को दूर कर सेवा के प्रभावों की रोशनी बिखेरें।

सच्चे अर्थों में दीवाली उसी की सार्थक है जो औरों के जीवन में उजियारा भरने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहता है। लेकिन इसके लिए हमारे अन्तर्मन में उदारता, मानव सेवा और लोक मंगल का प्रकाश होना जरूरी है। वे सभी लोग इन दिनों कर्मयोगियों की भूमिका में हैं जो किसी न किसी रूप में साफ-सफाई के कामों में लगे हुए हैं और हर कोने को रौशन करने जी-जान से परिश्रम कर रहे हैं।

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