• July 3, 2017

राजनीति की जटिलता- पेंच में फंसे – कोरिया से सबक

राजनीति की जटिलता- पेंच में फंसे – कोरिया से सबक

वर्तमान समय में विश्व स्तर की राजनीति को समझना अत्यंत कठिन है क्योंकि वर्तमान समय में विश्व की राजनीति एक ऐसी दिशा में गतिमान है जिसे साधारण रूप से समझ पाना मुश्किल ही नहीं 1अत्यंत कठिन है। यदि इतिहास के पन्नो को पलट दिया जाए और विश्व युद्ध के अतीत पर नजर डाली जाए तो अमेरिका, सोवियत संघ, रूस और चीन जैसे देशो की क्या भूमिकाएं थीं ? उस दौरान कौन सा देश कहां पर खड़ा था और किसके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा था। क्योंकि वर्तमान समय में तेजी से बदलती हुई दुनिया की राजनीति ने सब कुछ बदल दिया है|

यदि शब्दों को बदल कर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि वर्तमान की राजनीति ने सब कुछ बदलकर नये रूप- रंग व ढंग में प्रस्तुत किया है। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश, विश्व युद्ध के दौरान चीन का धुर-विरोधी था जो इतिहास के पन्ने में समेटे हुए है| रूस और भारत की दोस्ती भी दुनिया के सामने एक मिशाल बन कर उभरी थी, पूरा विश्व रूस एवं भारत की मित्रता का साक्षी था।

वर्तमान समय की राजनीति ने बड़ी तीव्रता के साथ करवटें ली और जगत की राजनीति को पूरी तरह से उलट-पलट कर रख दिया। उत्तर कोरिया के तानाशाह किंमजोंग की मानसिकता किसी से भी छुपी हुई नहीं है। किंमजोंग और सर्वशक्तिशाली देश अमेरिका के मध्य खींचतान की स्थति भी दुनिया के सामने एक नया रंग-रूप एवं ढ़ंग से उभर रही है|

उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच खिंची हुई तलवारें विश्व स्तर की राजनीति में बहुत कुछ कह रही हैं|यदि इस राजनीति पर गंभीरता से दृष्टि डाली जाए तो सब कुछ स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ जाता है| यह खिंची हुई तलवारें अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच हैं, जिसमें चीन की बहुत बड़ी भूमिका है जो कि समय के अनुसार उभरकर सामने आती रहती है, जिससे की वास्तविक राजनीतिक मुखौटे से भी पर्दा उठ जाता है और स्पष्ट चेहरा खुलकर सामने आता है।

राजनीति के जानकार इसे अपनी तीव्र दृष्टि वाली नजरों से देखकर पहचान लेते हैं क्योंकि यह राजनीति अत्यंत जटिल है, इसको समझना साधारण रूप से बहुत ही मुश्किल है| उत्तर कोरिया के सहयोगी की भूमिका में चीन अंदरखाने उसके साथ खड़ा है, जबकि अमेरिका उसके विरोध में खड़ा है। जिसमें अधिकतर देश दर्शकों की भूमिका में अपना-अपना दायित्व निभा रहे हैं| इस स्थिति को देखने के बाद निष्कर्ष यह निकलता है कि क्या अमेरिका और चीन एक दूसरे के धुर विरोधी हैं।

अथवा नहीं ?…

इस राजनीति को लेकर यदि हम ऐशिया की धरती पर उतडते हैं और पाकिस्तान को सामने रखते हैं तो स्थिति सम्पूर्ण रूप से विपरित नजर आती है साथ ही एक नया निष्कर्ष सामने प्रकट होता है, जिससे कि राजनीति का घोर अंधेरा पूरी तरह से दूर भाग जाता है| उसके बाद सच्चाई सम्पूर्ण रूप से उभरकर सामने आ जाती है|

पाकिस्तान के ऊपर आतंकी गतिविधियां चलाने का आरोप लगातार लग रहा है| जिसका भुक्त-भोगी भारत, अफगानिस्तान, इराक, ईरान, बंग्लादेश जैसे अनेकों देश हैं| भारत अंतर-राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को लगातार उठाता रहा है| परिणाम मात्र आश्वासनों तक ही सीमित रह जाते है, जिसका निष्कर्ष शून्य ही दिखाई देता रहा है|

सबसे जटिल प्रश्न यह भी है कि, जब अमेरिका और चीन दोनों देश एक दूसरे के धुर विरोधी हैं तो पाकिस्तान जैसे देश को अमेरिका और चीन, एक साथ मिलकर सहयोग एवं समर्थन कैसे करते हैं ??

पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो दोनो देशों के साथ सम्बंध बनाए रखे है। जबकि दोनों संबंधित देश आपस में एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। तो क्या यह सम्भव है कि एक शत्रु देश की मित्रता दूसरे शत्रु देश से हो और उस देश को दोनों देश अपना मित्र स्वीकार कर लें। क्योंकि पाकिस्तान और चीन की दोस्ती जगजाहिर है|

चीन लगातार अपनी पूरी ताकत के साथ पाकिस्तान का अंर्तराष्ट्रीय मंचों पर खुलकर समर्थन करता आया है| उसके बाद अमेरिका चीन के दवाब में आकर पाकिस्तान के सामने विवशता से अपने हाथों को बांधकर खड़ा हो जाता है| जिसे गंभीरता से समझना पडेगा| चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा मित्र देश है| संकट की घडी में चीन एक विशाल पर्वत के समान पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा होता है। इसलिए कि चीन का रवैया पाकिस्तान के प्रति मित्रतापूर्ण और स्पष्ट रुप से जगजाहिर है|

जबकि राजनीति यह कहती है कि दुश्मन का दोस्त, दुश्मन ही होता है और दुश्मन का दुश्मन, मित्र| चीन और अमेरिका, पाकिस्तान के प्रति एक साथ कैसे खड़े हो सकते हैं। यह एक जटिल एवं बड़ा प्रश्न है ?…

ध्यान दीजिए ! अनुदान के नाम पर अमेरिका पाकिस्तान को धन मुहैया करवाता है। अमेरिका के द्वारा यह दलील दी जाती है कि हम जो धन पाकिस्तान को प्रदान कर रहे हैं, वह धन आतंकवाद के विरूद्ध कार्यवाही करने में प्रयोग किया जाता है, जिससे की पूरे विश्व में शांति का महौल तैयार करने में सफलता मिलती है। जबकि स्थिति जग-जाहिर है की वास्तविकता क्या है?…

यदि इन सभी बिन्दुओं पर गहनता पूर्वक अध्ययन किया जाए तो विश्व की जटिल राजनीति बहुत कुछ उभरकर सामने आ जाती है| कहीं ऐसा तो नहीं कि पूरी दुनियां को दो भागों में बाटंने के लिए, दोनों देशों ने अन्दरखाने में समझौता कर रखा हो और दिखावे के रूप में एक दूसरे के धुर-विरोधी के रूप में उभरकर अंतर्रष्ट्रीय मंचों पर आमने-सामने आ जाते हैं| उत्तर कोरिया के तानाशाह किंमजोंग इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं| अमेरिका उसका विरोधी और चीन उसका समर्थक है |…

राजनीति की दुनिया में अंदरखाने में समझौता और बाहर में दिखावटी रूप किसी से भी छिपा हुआ नहीं है, हम यों कह सकते हैं कि -राजनीति हाथी के दांत जैसा है , खाने के और, दिखाने के और | आरोप प्रत्यारोप और विवादित मुद्दों को जन्म देना तथा जब आग लग जाये तो उसमें घी डालने का काम भी दोनों दल सधे हुए रूप में करते रहते हैं| फलतः राजनीतिक हवाएं गर्म रहती हैं।

सत्य है की राजनीति का ककहरा अत्यंत कठिन है| राजनीतिक का मार्ग इतना जटिल और टेढ़ा- मेढ़ा है कि इसे शब्दों में स्पष्ट कर पाना अत्यंत कठिन है| अत: तमाम बिन्दुओं और परिणामों को देखने के बाद जगत की राजनीति बहुत कुछ कहती है। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों देशों ने विश्व को दो भागों में बांटने के लिए अंदरखाने समझौता कर रखा है। क्योंकि राजनीति में पक्ष के सामने विपक्ष का होना अत्यंत आवश्यक है|

इस मुद्दे को और सरल करके इस तरीके से समझा जा सकता है कि जब कोई भी व्यक्ति राजनीति की दुनिया में अपना कदम रखता है तो उसके मित्र निश्चित रुप से बढ़ते हैं | लेकिन इसका दूसरा रूप भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि सभी लोग हमारे मित्र नहीं हो सकते क्योंकि सत्यता कुछ और ही है|

अंतर यह है कि मित्र तो हमें दिखाई देते हैं, परंतु शत्रु दिखाई नहीं देते| शत्रु हमारे पास नहीं आते, यदि आते भी हैं तो अपना वेषभूषा बदल कर आते हैं। शत्रु सदैव मुद्दों की प्रतिक्षा करते हैं तथा षड्यंत्रों की दिशा में कार्य करते हैं| शत्रु पक्ष के इस कार्यवाई से सत्ता पक्ष पूर्णरुपेण अनभिज्ञ रहता है| इस बात कि जानकारी सत्ता पक्ष को तब मिलती है जब कोई गुप्तचर की भूमिका निभाने के लिये सामने आते हैं ।

अत: वर्तमान समय में जगत की राजनीति से सभी देशों को सावधान रहना चाहिए क्योंकि दोनों शक्तिशाली देश चीन और अमेरिका आपस में एक हो सकते हैं, इसलिए पिछ्छलग्गु की भूमिका में रहना ठीक नहीं होगा| एक वाक्य में , उचित दूरी बनायें रखने में ही भलाई है|

बाबू ०एच०एम
mh.babu1986@gmail.com

Related post

मुंबई सीमा शुल्क क्षेत्र-III से 9.482 किलोग्राम से अधिक सोना जब्त

मुंबई सीमा शुल्क क्षेत्र-III से 9.482 किलोग्राम से अधिक सोना जब्त

मुंबई (पी आई बी) —- 15-18 अप्रैल, 2024 के बीच की अवधि में, हवाईअड्डा आयुक्तालय, मुंबई…
आम चुनाव 2024: प्रथम चरण के मतदान रूझान फीका

आम चुनाव 2024: प्रथम चरण के मतदान रूझान फीका

पीआईबी (दिल्ली ):.भारत में  चिलचिलाती धूप मे मतदान केंद्रों के रंग और उत्सव से फीकी पड़…
बिहार : औरंगाबाद में 50 प्रतिशत, गया में 52 प्रतिशत, नवादा में 41.50 प्रतिशत और जमुई में जमुई 50 प्रतिशत मतदान

बिहार : औरंगाबाद में 50 प्रतिशत, गया में 52 प्रतिशत, नवादा में 41.50 प्रतिशत और जमुई…

पटना. लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान  बिहार के गया, औरंगाबाद, नवादा और जमुई लोकसभा…

Leave a Reply