• August 22, 2017

काश ! रेल बजट तकनीक पर केन्द्रित होता——-डॉ नीलम महेंद्र

काश ! रेल बजट तकनीक पर केन्द्रित होता——-डॉ नीलम महेंद्र

बेहतर होता कि हमारी सरकारें देश के नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझतीं और सरकारी खजाने का प्रयोग दुर्घटना होने के बाद दिए जाने वाले मुआवजे और जांचो में खर्च करने के बजाय उस पैसे का उपयोग ऐसी जानलेवा घटनाओं को रोकने के लिए नई तकनीकों के आविष्कार एवं सम्पादन में करतीं

काश ! रेल बजट तकनीक पर केन्द्रित होता

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*** आगे बढ़ने के लिए यह जरूरी नहीं कि गलतियाँ न हों लेकिन यह आवश्यक है कि उनकी पुनरावृत्तियाँ न हों***

भारतीय रेल की स्थापना 1853 में की गई थी। आज वह विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है एवं रोजगार देने के क्रम में सम्पूर्ण विश्व में आठवें पायदान पर आता है।
भारत में यह यातायात के सबसे सस्ते एवं सुविधाजनक साधन के रूप में देखा जाता है।
न सिर्फ लम्बी दूरी की यात्राओं के लिए रेल एक बेहतर विकल्प है बल्कि बड़े बड़े शहरों में तो मेट्रो और शटलस् को शहर की लाइफ लाइन तक कहा जाता है। इनके पहियों के थमने से इन शहरों की रफ्तार ही थम जाती है।

लेकिन बहुत ही खेद का विषय है कि सुरक्षा की दृष्टि से भारतीय रेल विश्व में कहीं कोई स्थान नहीं रखती यह बात एक बार फिर साबित हुई 19 अगस्त की शाम जब उत्कल एक्सप्रेस उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में खतौली स्टेशन के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई।

*** ट्रैक पर काम चल रहा था लेकिन ड्राइवर को “सतर्कता सूचना” नहीं दिया गया।**

परिणाम स्वरूप जिस ढीली कपलिंग वाली पटरी पर ट्रेन की रफ्तार 15 से 20 किमी प्रति घंटा होनी चाहिए उस पर वह 105 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से गुजरी। नतीजा 14 बोगियाँ पटरी से उतरीं, 23 लोगों की मृत्यु,74 घायल और 30 की हालत गंभीर।

भारत में रेल हादसों की फेहरिस्त काफी पुरानी एवं लम्बी है। रेल मंत्रालय हमारे देश का एक महत्वपूर्ण एवं स्वतंत्र मंत्रालय होने के बावजूद हमारे सिस्टम और हमारे नेताओं का रवैया अत्यंत निराशाजनक रहता आया है।

हमारे नेताओं एवं ब्यूरोक्रेट्स के इस लापरवाही एवं उपेक्षापूर्ण रवैये का खमियाजा कैसे इस देश के आम आदमी को भुगतना पड़ता है इसका स्पष्ट उदाहरण हमारी रेल सेवा की यह ताजा दुर्घटना है।

दिसम्बर 2016 में लोकसभा में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2003 से 2016 के बीच होने वाले रेल हादसों में डीरेलिंग अर्थात पटरी से रेल का उतरना दुर्घटना का प्रमुख कारण रहा है। इसे रेल स्टाफ की लापरवाही कहें या फिर मानवीय भूल जो न सिर्फ हादसे के शिकार हुए लोगों के जीवन का अंत कर देती हैं बल्कि उनके परिवार वालों को वो दर्द दे जाती हैं जो उन्हें जीवन भर न चाहते हुए भी सहना ही होगा।

अब जब हम डिजिटल इंडिया और बुलेट ट्रेनों की बातें कर रहे हैं तो उसमें इस प्रकार की लापरवाही और मानवीय भूलों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। खास तौर पर उस संस्थान में तो कदापि नहीं जिस पर लाखों करोड़ों लोगों के सपनों और उनके जीवन की डोर बंधी हो।

बेहतर होता कि हमारी सरकारें देश के नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझतीं और सरकारी खजाने का प्रयोग दुर्घटना होने के बाद दिए जाने वाले मुआवजे और जांचो में खर्च करने के बजाय उस पैसे का उपयोग ऐसी जानलेवा घटनाओं को रोकने के लिए नई तकनीकों के आविष्कार एवं सम्पादन में करतीं।

आज जब सभी विकसित देश अपनी रेल सेवाओं में आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से एक्सप्रेस ट्रेन नहीं बल्कि बुलेट ट्रेन तक सफलतापूर्वक चला रही हैं तो हमारे देश में आज भी किसी एक व्यक्ति की लापरवाही के कारण होने वाली इन रेल दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति बार-बार क्यों हो रही हैं ?

दुर्भाग्यपूर्ण है कि वैश्विक स्तर पर रेल हादसों को रोकने में ‘यूबीआरडी तकनीक ‘ एवं ‘लिंक हावमैन बुश तकनीक ‘ से बने डब्बों का प्रयोग होता है लेकिन भारत में हर साल रेल बजट में बढ़ोत्तरी होने के बावजूद तकनीकों में बढ़ोत्तरी पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय चुनावी बजट पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

लेकिन इस सब के बीच एक बदलाव की बयार , एक रोशनी की किरण भी देखने को मिली।

कल तक हमारे देश में,इस समाज में एक खतरनाक ट्रेंड चल पड़ा था। सोशल मीडिया के इस दौर में लोगों में दुर्घटनाओं का वीडियो बनाकर उसे अपलोड करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही थी लेकिन पीड़ितों की मदद करने के नाम पर सरकार की जिम्मेदारी बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया जाता था।

ऐसी ही किसी परिस्थिति में सरकारी विभाग में फोन लगाकर उन्हें सूचित करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली जाती थी। लेकिन उप्र के इस गांव के लोगों ने मानवता का वो अद्भुत परिचय दिया जो पूरे देश के लिए एक बहुत ही सुन्दर उदाहरण बन गया।
गांव के सभी लोग तत्काल बचाव कार्य में जुट गए,आसपास के मिस्त्री बिन बुलाए ही गैस कटर लेकर पहुँच गए और डिब्बे काटने लगे ताकि फंसे हुए लोगों को बाहर निकाला जा सके।

करीब 65 प्राइवेट एम्बुलेंस आपरेटर घायलों को अस्पताल ले जाने में जुट गए। इतना ही नहीं एहतियातन बिजली बन्द किए जाने की स्थिति में जनरेटर का भी इंतजाम किया गया।
क्या यह हमारी सोच में एक खूबसूरत बदलाव नहीं है?

वो मानवीय संवेदनाएँ जो हमारे समाज में धीरे धीरे दम तोड़ रही थीं ऐसा लग रहा है, आज उन्हें नवजीवन मिला है।

हर छोटी बड़ी बात के लिए सरकार से ही अपेक्षा करना,अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता और कर्तव्यों के प्रति अनभिज्ञता दिखाने की प्रवृत्ति के बजाय खुद आगे बढ़कर न सिर्फ इस देश का नागरिक होने का फर्ज निभाना लेकिन अपने मानव होने का प्रमाण देना हम सभी के लिए,इस देश के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

क्योंकि जब हम बदलेंगे, हमारी सोच बदलेगी,
हमारे कर्म बदलेंगे तो फल भी तो बदलेंगे।

संपर्क—जरी पताका – 2
फालका बाजार,लश्कर
ग्वालियर म०प्र०- 474001
मोबाईल – 9200050232
Email -drneelammahendra@hotmail.com

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