आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के करोड़ों आधार डेटा चोरी—भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI)

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के करोड़ों आधार डेटा चोरी—भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI)

नवंबर 2017 में आधार जारी करने वाली एजेंसी भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने यह बयान तब जारी किया था, जब 201 सरकारी वेबसाइटों पर आधार से जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक किए जाने की ख़बरें मीडिया में आईं थीं.

अब एजेंसी ने ख़ुद शिकायत दर्ज कराई है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के करोड़ों आधार डेटा चोरी हो गए हैं.

यह शिकायत तेलंगाना में दर्ज की गई है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की आबादी करीब 8.4 करोड़ है और शिकायत में 7.8 करोड़ लोगों का आधार डेटा चोरी होने की बात कही गई है.

दर्ज शिकायत के मुताबिक़, आईटी कंपनी ‘आईटी ग्रिड्स इंडिया’ के पास ये डेटा अनाधिकृत रूप से मौजूद थे.

डेटा सुरक्षा क़ानून की कमी

इस मामले के बाद एक बार फिर यह सवाल उठने लगे हैं कि आधार डेटा कितना सुरक्षित है.

आधार डेटा को जमा करना एक अपराध है. एजेंसी सरकारी और कुछ ग़ैर-सरकारी कंपनियों को सत्यापन के लिए आधार डेटा का इस्तेमाल करने की अनुमति देती है और दावा करती है कि वो डेटा जमा नहीं कर सकती हैं.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता इन दावों को ग़लत मानते हैं. वो कहते हैं कि आधार हो या कोई अन्य डेटा, भारत में कोई भी डेटा सुरक्षित नहीं है.

वो इसके पीछे की वजह डेटा सुरक्षा से जुड़े कानून के नहीं होने को मानते हैं.

“डेटा सुरक्षा के मामले में सरकार को जो क़ानून पारित करना चाहिए था वो नहीं किया गया. जब क़ानून ही नहीं है तो लोगों के अंदर डर कैसे पैदा होगा.”

जुलाई 2018 में जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण समिति ने डेटा सुरक्षा क़ानून पर सुझावों के साथ अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी.

इसमें डेटा सुरक्षा और लोगों की निजता से जुड़े क़ानून बनाने की सिफ़ारिश की गई थी.

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कहां से चुराए गए डेटा
तेलंगाना में जिस आईटी कंपनी के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है, वह राजनीतिक दल तेलुगू देश पार्टी के लिए सेवा मित्र एप्प तैयार कर रही थी.

कंपनी के पास यह डेटा एक हार्ड डिस्क में थी. फॉरेंसिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह डेटा ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से केंद्र या राज्य के सरकारी डेटा सेंटर से चुराए गए हैं.

हालांकि तेलुगू देशम पार्टी का कहना है कि उसने आधार डेटा का इस्तेमाल सिर्फ़ कल्याणकारी योजनाओं को लाभार्थियों को सत्यापन के लिए किया है.

जब्त किए गए हार्ड डिक्स में करीब 7.8 करोड़ लोगों के डेटा का साइज उतना ही पाया गया है जितना UIDAI के पास मौजूद डेटा का.

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राजनीति लाभ के लिए इस्तेमाल
विशेषज्ञों का मानना है कि आधार डेटा का इस्तेमाल अब राजनीतिक लाभ के लिए किया जाने लगा है.

अर्थशास्त्री और आधार के मामले में याचिका दायर करने वाली रितिका खेड़ा कहती हैं कि डेटा का इस्तेमाल न सिर्फ मार्केटिंग के क्षेत्र में किया जा रहा है बल्कि वोटरों को प्रभावित करने के लिए भी इसका इस्तेमाल शुरू हो गया है.

वो कहती हैं कि आधार के जरिए पार्टियां यह पता लगाती हैं कि कौन कैसी-कैसी सुविधाएं ले रहा है, किन-किन योजनाओं के तहत सब्सिडी प्राप्त कर रहा है.

यह जानकारी जुटा कर पार्टियां वोटरों के मत को प्रभावित करने की कोशिश में लगी हैं.

वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता मानते हैं कि पार्टियों के साइवर रूम इन डेटा का ख़ूब इस्तेमाल कर रहे हैं. वो इन डेटा के आधार पर अपने प्रचार अभियान की रूपरेखा तैयार करती हैं.

कई स्रोत से जुटाई जानकारियों के आधार पर वे विरोध और समर्थन का पता लगाती हैं और उसके आधार पर वोटरों के मत को प्रभावित किया जाता है.

यह पूरी तरह से लोकतंत्र की आत्मा को प्रभावित करने जैसा है.

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आधार नंबर से क्या चुराया जा सकता है
अगर किसी के पास किसी का आधार नंबर है तो वो उसके बारे में कौन सी जानकारियां हासिल कर सकता है?

अब तक सरकार ने आधार को लेकर जो कहा है, उसके हिसाब से आपके आधार नंबर के ज़रिए कोई भी आप से जुड़ी कोई जानकारी नहीं हासिल कर सकता है.

आपके और सरकार के सिवा अगर किसी और के पास आपका आधार नंबर और नाम या फ़िंगरप्रिंट है, तो वो आधार के डेटाबेस से उसकी तस्दीक भर कर सकता है.

सरकार के मुताबिक़ ऐसी बात पूछे जाने पर सिस्टम उसके जवाब में हां या ना ही कहेगा कि ये आंकड़े मिलते हैं.

वहीं रितिका खेड़ा का कहना है कि आधार नंबर की मदद के आइडेंटिटी फ्रॉड के मामलों को अंजाम दिया जा रहा है.

वो कहती हैं, “आधार के जरिए आइडेंटिटी फ्रॉड के कई मामले सामने आए हैं. कोई किसी का आधार नंबर जान कर, उसकी उंगलियों के निशान ग्लास या दरवाजे से लेकर नकली फिंगर प्रिंट बनवा सकता है और आसानी से बैंक खाते से पैसे निकाल सकता है.”

(बीबीसी हिन्दी)

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